
'महीने में 20 दिन गंदे खून में ही सनी रहोगी तो मुझे सुख कब दोगी?' 23 साल की मुन्नी के पति ने ये कहते हुए उनसे मुंह मोड़ लिया. इस बात को 9 साल से ज्यादा हो चुके हैं और अब मुन्नी के पति का कहीं अता-पता नहीं है. मुन्नी राजधानी दिल्ली के फुटपाथ पर फूल बेचकर गुजारा करती हैं. हां लेकिन फूल बेचने का काम महीने में ज्यादा से ज्यादा 8-10 दिन ही कर पाती हैं. बाकी दिन वो न तो ज्यादा चल फिर पाती हैं, न ही कोई काम कर पाती हैं.
जब मैंने पहली बार मुन्नी को देखा तो वे अपने जैसी ही कुछ महिलाओं के साथ फुटपाथ पर बैठी थीं. आसपास उनके बच्चे धमा-चौकड़ी मचा रहे थे. गुलाबी सूट, रंग-बिरंगा पजामा जिसके किनारों पर छोटे-छोटे पैबंद लगे थे और बाल जूड़े में गुंथे हुए...ऐसा लग रहा था जैसे बालों में कई दिन से कंघी न फिराई हो. मैंने पास बैठते हुए नाम पूछा...मैं अजनबी थी, लेकिन मुझे देख चेहरे के भाव में कोई बदलाव नहीं...सड़कों पर ही रहने वाली इन महिलाओं को लिए पहचान का कौन और अजनबी कौन.
कमजोर आवाज में मुन्नी ने अपना नाम बताया. इससे पहले कि मैं कुछ पूछती, उनके पास बैठी दूसरी महिला बोल पड़ी, 'अभी पीड़ा में है, कुछ देर पहले पटा-पटाकर (लेटकर) रो रही थी. बेचारी...महीने में 15-20 दिन यही हालत होता है इसका, दीदी. कभी-कभी तो एक महीना भी हो जाता है. पति भी छोड़ गया. न कमा पाती है, न सही से खा पाती है. हम लोग भी कितनी ही मदद करें.'
'खून रुकता नहीं, लत्ता भी कम पड़ जाता है...'
अपनी उम्र से कहीं ज्यादा बड़ी दिख रहीं 32 साल की मुन्नी ने मुझे बताया कि एक महीने में उन्हें कम से कम 15 दिन पीरियड्स होते हैं. मुन्नी ने बताया, 'शादी से पहले मुझे ये दिक्कत होने लगी थी और अब तक ठीक नहीं हुई. कभी एक महीना भी हो जाता है, खून नहीं रुकता...लत्ता (कपड़ा) भी कम पड़ जाता है, फिर इन लोगों (दूसरी महिलाओं की तरफ इशारा कर) से मांगती हूं.'

कपड़ा लेने से कभी इंफेक्शन नहीं हुआ?
ना दीदी, हम तो बचपन से लत्ता ही ले रहे. हुआ भी हो तो महीनेभर के 'खून गिरने' और दर्द के आगे कुछ पता नहीं चलता.
मैं मुन्नी से बात कर ही रही थी कि हाथ में गुलाब के फूल लिए 3-4 छोटी लड़कियां आईं और मुझसे ऐसे चिपककर बात करने लगीं जैसे कई बार मिल चुकी हों.
फूल बेचकर कितना कमा लेती हो?
मुस्कान नाम की एक लड़की ने छूटते ही कहा, 'कभी 50 तो कभी ज्यादा मिल गए तो 100...'
कितने साल की हो?
नहीं पता? पास बैठी अधेड़ महिला ने बताया कि 12-13 साल की है और इसे भी 'होता है' यानी पीरियड्स आता है.
माहवारी समझती हो...पीरियड्स? पहली बार कब आई थी माहवारी?
मेरी बात सुन मुस्कान, अधेड़ महिला, जिन्होंने अपना नाम शीला बताया, की तरफ देखने लगी. शीला ने अपनी भाषा में उससे पूछा, 'कै फेरे हुई है तू (अब तक कितनी बार पीरियड्स आए हैं)'
यह सुन 11-12 साल की दिखने वाली मुस्कान झेंप गई. फिर बोली, 'याद नहीं. लेकिन जब पीरियड्स आता तो कमजोरी लगती है. कमर टूटता है, हाथ-पैर झन-झन करते हैं. मैं तो फूल भी नहीं बेच पाती...बस पड़ी रहती हूं. पांच-सात दिन में छूट जाता है... लेकिन मेरी बुआ को (मुन्नी की तरफ इशारा कर) 20-20 दिन, एक-एक महीने होता ही रहता है.'
मुन्नी के बगल में बैठी महिला ने बताया कि छह महीने पहले मुन्नी की तबीयत बहुत खराब हो गई थी. महीनाभर हो गया, 'खून गिरना' रुका ही नहीं. जब हालत बहुत खराब हुई तो वो लोग उसे सरकारी अस्पताल ले गए. अस्पताल वालों ने एक महीने की दवाई देकर वापस भेज दिया.
मुन्नी बताती है, 'दवा जब तक खाई, सब ठीक रहा लेकिन दवा खत्म होते ही फिर वही हाल शुरू हो गया. दोबारा अस्पताल गई तो बोले अल्ट्रासाउंड कराना होगा, इस दिन आना, उस दिन आना कहकर टालते रहे. हम सड़क पर रहने वालों की कोई नहीं सुनता.'

मुन्नी ने बताया कि सरकारी अस्पताल के बाद किसी प्राइवेट अस्पताल में भी गई. डॉक्टर ने बताया कि अल्ट्रासाउंड करना पड़ेगा. मुन्नी रुआंसी होकर कहती हैं, 'अब अल्ट्रासाउंड के पैसे कहां से आएंगे मेरे पास.'
पीरियड्स अगर सात दिन या इससे ज्यादा खिंचे और भारी ब्लीडिंग हो तो यह एक मेडिकल कंडीशन है. मेनोरेजिया की कई वजहें हो सकती हैं, जिसमें कैंसर से लेकर हार्मोनल गड़बड़ी भी शामिल है. मुन्नी को इसकी कोई जानकारी नहीं. वे बस इतना चाहती हैं कि पखवाड़े भर खून आने से काम का जो हर्जा होता है, वो रुक जाए.
मुन्नी के मामले को लेकर मैंने फोर्टिस हॉस्पिटल, कल्याण, मुंबई में स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. सुषमा तोमर से बात की. उन्होंने बताया कि 15-20 दिन तक लगातार पीरियड्स रहने के कई कारण हो सकते हैं.
डॉक्टर ने बताया, 'पता लगाने के लिए हम सोनोग्राफी करते हैं. कारण का पता चलने पर ही हम इलाज शुरू करते हैं कि क्या महिला को कोई ट्यूमर है या अल्सर है या वो किसी हार्मोनल असंतुलन से गुजर रही है. ये सभी कारण लंबे समय तक पीरियड्स रहने के हो सकते हैं. सोनोग्राफी, हार्मोन और ब्लड रिपोर्ट के बाद इसका इलाज किया जा सकता है. अगर सोनोग्राफी में भी कुछ निकलकर नहीं आता तो हम डी एंड सी कराते हैं ताकि पता चल सके कि महिला को कहीं कैंसर या कुछ और बड़ी दिक्कत तो नहीं है. सबसे जरूरी है कि कारण का जल्द से जल्द पता लगाकर उसका इलाज किया जाए.'
अगली शाम मैं दिल्ली-एनसीआर के एक मेट्रो स्टेशन पहुंची जहां बिहार के पटना और मधुबनी से आए कई परिवार आसरा लिए हुए थे. इनमें से कुछ लोग महीनेभर पहले ही यहां पहुंचे हैं. शाम के 7 बज रहे थे और बारिश इतनी तेज थी कि छाता लेने के बावजूद मैं आधी भीग चुकी थी.
मूसलाधार के बीच मेट्रो के नीचे इत्मीनान पसरा हुआ था. छोटे बच्चे बारिश को धता बता इधर-उधर भटक रहे थे, तो बड़े बेपरवाह लेटे-बैठे बतिया रहे थे. मैं एक महिला के पास ठहर गई...
बारिश बहुत तेज है... मैंने बात शुरू करने के मकसद से कहा. महिला बोली, 'हां, हमारे लिए क्या बारिश, क्या आंधी... यही अपना घर है.'

कब से रह रही हैं, अपने 'इस घर' में?
हमें तो सालों हो गए... यहीं रहते हैं, मधु (शहद) बेचते हैं, लकड़ी काटते हैं, ऐसे ही गुजारा करते हैं.
नहाना धोना हो तो...?
तो यहां मेट्रो के पास बाथरूम है, वहीं चले जाते हैं. महिला, जिसने अपना नाम सीमा बताया, पास ही बने टॉयलेट की तरफ इशारा करते हुए कहती है.
'स्वच्छ भारत अभियान' के तहत सरकार ने कई मेट्रो स्टेशनों पर टॉयलेट्स की व्यवस्था की है. बकौल सीमा, सड़क, फुटपाथ पर रहने वाले लोगों के लिए ये टॉयलेट बहुत मददगार हैं.
अच्छा, जब माहवारी आती है तब कैसे मैनेज करती हैं?
मैनेज क्या करना है, कपड़ा-लत्ता है, वही लेते हैं.
कपड़ा लेने से इंफेक्शन का डर नहीं होता?
बेटी, ये सब तो अमीरों के चोंचले हैं... जब से शुरू हुआ (जब से पीरियड्स आने शुरू हुए) तब से मैं तो लत्ता ही ले रही, मुझे तो कुछ न हुआ. साफ लत्ता लेते हैं, कुछ नहीं होता. सीमा सहज ही बोल रही हैं. उन्हें टीवी पर दिखते सुगंधित या रातभर टिकने वाले पैड्स का कोई अंदाजा नहीं, न ही इससे मतलब है. वे बस इतना जानती हैं कि चूंकि वे अफोर्ड नहीं कर सकतीं तो ये अमीरों का झंझट है.
डॉ. सुषमा तोमर से जब मैंने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा, 'पुराने कपड़े लेने से इंफेक्शन हो सकता है, लेकिन अगर कोई सैनिटरी नैपकिन नहीं खरीद पा रहा तो वो कपड़ों का इस्तेमाल कर सकता है, बशर्ते कि कपड़े साफ हों और उन्हें समय-समय पर बदला जाए...पुराने जमाने में हमारी दादी-नानी के पास नैपकिन्स नहीं हुआ करते थे, लेकिन पॉइंट ये है कि वो साफ-सफाई का ध्यान रखती थीं और इंफेक्शन से बची रहती थीं. लेकिन जो महिलाएं सड़कों पर रह रही हैं, और पीरियड्स में कपड़े ले रही हैं तो वो दिन में चार बार कपड़े तो चेंज नहीं कर पाती होंगी. इसलिए उनमें इंफेक्शन का डर ज्यादा रहता है.'
सीमा से कुछ दूर ही तकरीबन 14-15 साल की लड़की बैठे-बैठे अपने बैग में कपड़े सहेज रही थी. मैं उसके पास जाकर बैठ गई. मासूम आंखों से उसने मुझे देखा, बोली कुछ नहीं. फिर मैंने ही कहा- क्या नाम है तुम्हारा?
प्रियंका नाम है. पटना से आए हैं.
प्रियंका ने बताया कि दो महीने पहले वो अपने मां-बाप और तीन भाई-बहनों के साथ यहां आई थी.

माहवारी के वक्त पैड कहां चेंज करती हो?
पैड नहीं होता, हम लोग कपड़ा लेते हैं. यहां एक बाथरूम है, वहीं जाते हैं लोग.
अच्छा कभी सोचती हो कि कपड़े की जगह पैड लेते तो ज्यादा अच्छा होता?
हां, मन तो करता है पैड लेने का... एक बार एक दीदी आई थी, वो पैड देकर गई. मेरी बड़ी बहन है न... उसने ले लिया. मुझे नहीं मिला. मन करता है कभी कपड़े की जगह पैड लेते. दीदी, कपड़ा लेने के बाद चलने-फिरने में भी दिक्कत होती है न.
पीरियड्स के वक्त दर्द भी होता है?
हां, जब आता है तो बहुत दर्द होता है लेकिन दवा ले लेते हैं तो ठीक हो जाता है.
हर बार दवा लेती हो?
हां दीदी, नहीं लेंगे तो शहद बेचने कैसे जाएंगे. इस बार उसकी आंखों में मासूमियत के साथ-साथ बेचारगी भी झलक रही थी.
पीरियड्स में दर्द होने पर हर बार पेनकिलर्स लेना क्या सही है? डॉ. सुषमा तोमर का कहना है, 'हर बार पेनकिलर्स लेना बिल्कुल भी सही नहीं. पीरियड्स की शुरुआत में गर्भाशय में सिकुड़न होती है जिससे हल्का दर्द होना सामान्य बात है. इस दौरान मांसपेशियों को राहत देने के लिए हॉट फर्मेंटेशन (हीट थेरेपी) का इस्तेमाल होना चाहिए. लेकिन फिर भी दर्द रहता है तो किसी डॉक्टर को दिखाना चाहिए.'
एक तरफ जहां पीरियड लीव की मांग, दूसरी तरफ, सैनिटरी नैपकिन को तरसती महिलाएं!
फुटपाथ-मेट्रो के नीचे रहने वाली इन महिलाओं से बात करते वक्त मैंने सोचा कि जहां एक तरफ हम कामकाजी महिलाएं पीरियड लीव की मांग कर रही हैं ताकि मुश्किल दिनों में हमें राहत हो, वहीं इन महिलाओं के पास बेसिक हाइजीन तक की गुंजाइश नहीं.
मेल-मुलाकात के बीच मुझे सुहानी भी मिलीं. वे मेट्रो के नीचे बारिश के बीच ईंटें जोड़कर चूल्हा जलाने में लगी हुई थी. सलीके से बंधे हुए बाल, पीले सिंदूर से भरी मांग... दोनों हाथों में लाल-हरी कांच की चूड़ियां और पैरों में मोटी पायल... मैंने पूछा- बारिश हो रही है, आग कैसे जलाओगी? पास ही खड़े तकरीबन 20-21 साल के लड़के ने सवाल को लपक लिया, तपाक से बोला- जला लेगी, घर के काम में माहिर है.
आप इनके कौन लगते हैं?
मेरी पत्नी है.
नई-नई शादी हुई लगती है.
हां, तीन महीने हुए.
अब मैंने सुहानी से पूछा- अंदाजा था कि शादी के बाद कहां रहना है! इन्होंने शादी से पहले बताया था कि मेट्रो के नीचे रखेंगे!
मेरी बात सुन दुबली-पतली सुहानी पति के पीछे छिप गई. फिर लजाती हुई बोलीं- हां, सब बताया था.
अच्छा, ये बताओ कि माहवारी में कपड़ा कहां से लाती हो?
मैं तो पैड लेती हूं...
कौन खरीद लाता है?
सास ला देती हैं. ये पैसे कमाते हैं, शहद बेचकर, तो वो ला देती हैं.
सुहानी की बात सुन मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर गई.

मैं वहां से निकलने की तैयारी करने लगी. बारिश अब भी तेज थी लेकिन जैसा कि सुहानी के पति ने कहा था, ये घर के काम में माहिर है, उसने छींटों के बीच भी चूल्हा जला लिया था...चूल्हे से लाल लपटें निकल रही थीं और देगची चढ़ चुकी थी.