
मेरी रूममेट एक छोटे से गांव से थी जो कभी अकेले बाहर नहीं जाती थी और रात को तो बिल्कुल भी नहीं. एक रात मेरी तबीयत खराब हो गई... उसने अपने किसी डॉक्टर रिश्तेदार को फोन किया तो उन्होंने तुरंत 2-3 दवाएं लाने को कहा. रात के 11:30 बज रहे थे और उसे बाहर जाने में थोड़ी हिचक हुई लेकिन मेरी खराब तबीयत देखकर वो चली गई. अगले दिन उसने मुझे बताया कि सड़क पूरी खाली थी और उसे बाहर जाने में डर लगा लेकिन जरा भी दिक्कत नहीं हुई... बिना किसी परेशानी के आराम से दवा लेकर आ गई... झारखंड की रहने वाली अंकिता बीते 6 सालों से बेंगलुरु में रह रही हैं और जब मैंने उनसे बेंगलुरु शहर को लेकर अपना अनुभव बताने को कहा तो इस घटना के जरिए उन्होंने मुझे 'अपने' शहर की झलकी दिखाई.
भारत का 'आईटी हब' कहे जाने वाले बेंगलुरु में अंकिता एक आईटी प्रोफेशनल हैं और काम के सिलसिले में वो शहर के कई इलाकों में रह चुकी हैं. वो बताती हैं कि जब-जब नौकरी बदली, घर बदलना पड़ा और इस बीच लड़की होने की वजह से न तो उन्हें वर्कप्लेस पर कोई दिक्कत आई और न ही घर ढूंढने में कोई परेशानी हुई.
वो कहती हैं, 'मैं अभी जहां रह रही हूं, वहां से एयरपोर्ट काफी दूर है तो कई बार रात को या सुबह 3-4 बजे निकलना पड़ता है. मैं कैब लेती हूं और अकेले जाती हूं, मुझे कभी डर नहीं लगा या मैंने असुरक्षित महसूस नहीं किया.'
कामकाजी महिलाओं के लिए टॉप का शहर है बेंगलुरु
बेंगलुरु को लेकर अंकिता के अनुभव शहर की हालिया रैंकिंग को जस्टिफाई करते हैं. वर्कप्लेस कल्चर कंसल्टिंग फर्म 'The Avtar Group' की हालिया रिपोर्ट में बेंगलुरु को महिलाओं के रहने और काम करने के लिए सबसे अच्छा शहर बताया गया है.

रिपोर्ट में भारत के 120 शहरों को सरकारी आंकड़ों और अवतार ग्रुप के रिसर्च के आधार पर स्कोर दिए गए. इसमें यह देखा गया कि कोई शहर महिलाओं के रहने के लिए कितना सुरक्षित है, वहां महिलाओं के नौकरी के अवसर कितने हैं, यातायात की कितनी सुगमता है, रहने के लिए घर आदि की कैसी व्यवस्था है, सरकारी संस्थाएं कितनी क्षमता से काम कर रही हैं और महिलाएं शहर में कितनी सुरक्षित हैं.
इन सभी पैमानों पर बेंगलुरु ने भारत के किसी भी दूसरे शहर से बेहतर प्रदर्शन हासिल किया है और टॉप रैंकिंग हासिल की है. लिस्ट में बेंगलुरु के बाद मुंबई, हैदराबाद, पुणे, कोलकाता, अहमदाबाद, दिल्ली, गुरुग्राम और कोयंबटूर का स्थान है.
टॉप के 25 शहरों में 16 शहर दक्षिण भारत के हैं जिससे पता चलता है कि दक्षिण भारत लिंग समानता के मामले में देश के अन्य हिस्सों से कहीं आगे हैं. केरल की रहने वाली अर्चना भी काम के सिलसिले में कुछ सालों पहले बेंगलुरु पहुंची थीं. जब वो पहली बार बेंगलुरु पहुंचीं तो अकेली लड़की होने के नाते उन्हें घर ढूंढने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई लेकिन घर का किराया सुन उन्हें थोड़ी निराशा हुई.
'केरल से महंगा है बेंगलुरु'
मलयालम एक्सेंट वाली अंग्रेजी में अर्चना बताती हैं, 'मेरे लिए बेंगलुरु में रहना केरल में रहने से थोड़ा मुश्किल था. पहली बात तो ये कि केरल बेंगलुरु से सस्ता था. मुझे यहां घर का किराया ज्यादा देना पड़ा. केरल में ट्रैवल का खर्च कम आता है, हां विकल्प थोड़े कम हैं बेंगलुरु से. केरल में काम करने का माहौल बेंगलुरु से ज्यादा खुशनुमा है. मैं ये इसलिए नहीं बोल रही क्योंकि मैं केरल से हूं बल्कि मैंने सच में ऐसा महसूस किया है.'
वो आगे कहती हैं, 'बेंगलुरु में हमेशा मुझे केरल से अच्छी सैलरी मिली. ऑफिस में कभी भेदभाव का सामना नहीं किया...हां, काम का प्रेशर था लेकिन यह प्रेशर कंपनी टू कंपनी बदलता रहता है. बेंगलुरु में रहने के लिए बहुत से ऑप्शन हैं लेकिन केरल में किसी बैचलर के लिए किराए का घर ढूंढना बेहद मुश्किल होता है.'

अर्चना बताती हैं कि केरल भले ही उनका घर है लेकिन बेंगलुरु में एक लड़की होने के नाते उन्होंने जितना सुरक्षित महसूस किया, उतना केरल में कभी नहीं किया.
वो कहती हैं, 'केरल में अगर आपने घुटनों के ऊपर कपड़े पहने हैं तो कुछ लोग आपको जज कर सकते हैं, आपको उनकी नजर चुभती है लेकिन बेंगलुरु में मैंने देखा कि लोगों को इस बात से कोई मतलब नहीं कि आप क्या पहन रहें, कैसे रह रहे. ये एक अच्छी बात है. कुल मिलाकर कहूं तो मेरे लिए बेंगलुरु केरल से थोड़ा अच्छा शहर है.'
'और सुधार की जरूरत...'
रांची की रहने वाली आकांक्षा मिश्रा पिछले चार सालों से बेंगलुरु में रह रही हैं. वो एक प्रतिष्ठित गेमिंग कंपनी में मार्केटिंग का काम संभाल रही हैं. आकांक्षा कहती हैं कि भारत के जितने भी शहरों में वो रहीं, बेंगलुरु सबसे ज्यादा सुरक्षित लगा.
वो कहती हैं, 'मैंने अब तक दिल्ली, बेंगलुरु और नवी मुंबई में काम किया है. 4 से ज्यादा शहरों में रही हूं जिसमें रांची भी शामिल है. सभी शहरों में मुझे बेंगलुरु बेहतर लगा, क्योंकि यहां मैं सुरक्षित महसूस करती हूं. काम करने के लिए भी बेंगलुरु बाकी शहरों से बेहतर लगता है. यहां अच्छे अवसर हैं और वर्कप्लेस का माहौल पॉजिटिव और सपोर्टिव लगता है. मैंने यहां कभी भी वर्कप्लेस से जुड़ी समस्याएं नहीं झेलीं.'
आकांक्षा कहती हैं कि बेंगलुरु के लोगों के साथ उनका अनुभव काफी अच्छा रहा है और उन्होंने कभी ऐसा महसूस नहीं किया कि कपड़ों या रहन-सहन को लेकर उन्हें जज किया जा रहा है. वो कहती हैं कि बेंगलुरु में वो सुरक्षित महसूस करती हैं.
बकौल आकांक्षा, 'रात के 12 बजे के बाद अगर मुझे ट्रैवल करना है तो मेरी आदत रही हैं कि मैं घरवालों के साथ लोकेशन शेयर करती हूं पर यहां रात के 12 बजे ट्रैवल करना भी पॉसिबल लगता है और ये बड़ी बात है. बेंगलुरु में रात के 1 बजे भी मैं अपने गली या मोहल्ले के पास अकेले सड़क पर टहलने या आइसक्रीम खाने निकल जाती हूं. बाहर निकलने के लिए मुझे जरा भी सोचना नहीं पड़ता.'

हालांकि, आकांक्षा ये भी कहती हैं कि किसी भी शहर को पूरी तरह सेफ नहीं कहा जा सकता और ये बात बेंगलुरु के साथ भी लागू होती है. आकांक्षा शहर में हुई हालिया घटनाओं की तरफ ध्यान दिलाती है जिसका शिकार महिलाएं हुई हैं.
साल की शुरुआत में ही एक ऑटो रिक्शा ड्राइवर के महिला यात्री के साथ दुर्व्यवहार की खबर आई थी. 30 वर्षीय महिला को पूर्वी बेंगलुरु में चलते रिक्शा से कूदना पड़ा क्योंकि नशे में धुत ड्राइवर उसके बार-बार कहने के बावजूद गलत दिशा में गाड़ी ले जा रहा था.
महिला के पति ने सोशल मीडिया पर घटना की जानकारी देते हुए बताया था कि उनकी पत्नी रात के 9 बजे के करीब ऑफिस से निकली और ऑटो बुक किया. थोड़ी दूर जाने के बाद ही ड्राइवर ने रास्ता बदल दिया. बार-बार कहने के बावजूद भी ड्राइवर ने रास्ता नहीं बदला जिसके बाद शख्स की पत्नी ऑटो से कूद गई. पुलिस ने ड्राइवर को गिरफ्तार कर लिया था.
इस तरह के वाकये से आकांक्षा परेशान होती हैं. वो कहती हैं कि इन घटनाओं से बेंगलुरु के एक 'सुरक्षित शहर' के टैग पर सवाल खड़े होते हैं.
'सुरक्षा के लिहाज से बेंगलुरु से बिल्कुल उलट है उत्तर भारत'
भूमिका बेंगलुरु की रहने वाली हैं और पढ़ाई के सिलसिले में राजधानी दिल्ली और पंजाब के जालंधर में रह चुकी हैं. वो आईटी सेक्टर में काम करती वो कहती हैं कि उन्होंने अपने शहर में कभी असुरक्षित महसूस नहीं किया जबकि राजधानी दिल्ली समेत बाकी जगहों में उन्होंने सुरक्षा की यह भावना महसूस नहीं की.
वो बताती हैं, 'बेंगलुरु में हमेशा सुरक्षित महसूस किया. अगर मैं अकेले भी ट्रैवल कर रही हूं तो आसपास के लोगों ने मुझे सेफ फील कराया. लेकिन मैंने दिल्ली और जालंधर जैसे उत्तर भारत के शहरों को बेंगलुरु से एकदम उलट पाया है. अपने इंजिनियरिंग के दिनों में मैं इन दोनों शहरों में रही और मुझे वहां कई बार असुरक्षित महसूस हुआ. दिल्ली, जालंधर में बाहर निकलते वक्त हमेशा मैं अधिक सावधानी बरतती थी और एक डर मेरे साथ चलता था जो कि बेंगलुरु में कभी नहीं हुआ.'
अकेली महिला के लिए बेहतरीन शहर है बेंगलुरु
कनार्टक के शिमोगा की रहने वाली प्रार्थना पिछले 7 सालों से बेंगलुरु में रहकर आईटी सेक्टर में जॉब कर हैं. वो कहती हैं, 'अकेली कामकाजी महिला के लिए बेंगलुरु बेहतरीन शहर है. मैं यहां पीजी में रही, किराए पर कमरा लेकर रही, अकेले रहने में कभी कोई दिक्कत नहीं हुई.'
प्रार्थना आगे बताती हैं, 'शहर काफी सुरक्षित है जहां महिलाओं को आधी रात को भी आसानी से कैब मिल जाता है. दिन-रात कभी भी आपको कहीं आने-जाने के लिए सोचना नहीं पड़ता. यहां के लगभग सभी अपार्टमेंट्स और घरों में गार्ड तैनात हैं.'