महिला के जीवन के शुरुआती 20 वर्ष स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण होते हैं. यही वह दौर होता है जिसमें वह भोजन के बारे में जानती है और खाने का ऐसा तौर-तरीका सीखती है जो जीवन भर चलता रहता है.
पहले दो दशक शरीर के बढ़ने के लिहाज से भी महत्वपूर्ण अवस्थाओं को पार करते हैं. इस दौरान शरीर के अंग, हड्डियों का ढांचा, मांसपेशियां और लड़की की सेहत की नींव पड़ती है. किशोरावस्था शरीर के बारे में सबसे पहले जागरूकता लाती है. लड़कियां खास तौर से खुद में 'साइज जीरो' वाली हीरोइनों, मॉडलों और अपनी हमजोलियों की छवि ढूंढ़ती हैं. जिम खासा लोकप्रिय रहता है जबकि वजन कम करने के भोजन के पीछे लड़कियां भागती हैं.
किशोरावस्था ऐसा समय है जब 11 से 16 वर्ष की उम्र में शरीर का विकास बड़ी तेजी से होता है. लड़कियों की लंबाई एक साल में 10 सेंटीमीटर (4 इंच) तक और वजन 8 किलोग्राम (18 पाउंड) बढ़ जाता है.
इसी दौरान मासिक धर्म शुरू होता है, जिसमें लड़कियों को लौह, कैल्शियम और जिंक की अधिक जरूरत पड़ती है. पौष्टिक तत्वों की कमी के कारण अनियमित और भयानक दर्द के साथ मासिक धर्म हो सकता है.
घर के बने भोजन के स्थान पर नियमित मिठाई खाना, पैकेट में बंद स्नैक्स और गैस मिले हुए पेय पदार्थों का सेवन करने से पौष्टिक तत्वों की कमी हो सकती है. फास्ट फूड में में अधिक नमक, वसा, रासायनिक एडिटिव होते हैं, प्रिजरवेटिव्स और चीनी होती है. इनमें रेशा भी कम मात्रा में पाया जाता है.
जैसे-जैसे महिलाओं की उम्र बढ़ती है, वे पत्नी और मां बनती हैं, उन पर सभी क्षेत्रों में खुद को अच्छा साबित करने का दबाव बढ़ता है.
उनकी प्राथमिकता में सेहत का नंबर सबसे बाद में आता है. दुर्भाग्यवश, एक अस्वस्थ मां न केवल कमजोर बच्चों को जन्म देती है बल्कि पूरे घर का कामकाज भी प्रभावित होता है. मेनोपॉज की अवस्था में महिलाओं की सेहत खराब होने लगती है.
हार्मोन का सुरक्षा कवच जो प्रजनन की उम्र में महिला को सुरक्षा प्रदान करता है, खत्म हो जाता है. कोई भी बीमारी होने का खतरा पुरुषों की तुलना में महिलाओं को अधिक होने का खतरा हो जाता है. चाहे वह ऑस्टियोपोरोसिस हो, दिल की बीमारी, डायबिटीज या हाइपरटेंशन हो.
उम्र के किसी-न-किसी पड़ाव में महिला इस बात को समझ्ने लगती है कि स्वस्थ रहने के लिए खुद का ध्यान रखना होगा. यानी वह क्या, कब और कितना खाती है और उसके अनुसार कितना शारीरिक श्रम करती है. जरूरी है कि सही दिशा में कुछ महत्वपूर्ण छोटे कदम उठाए जाएं.
डॉ. रूपाली दत्ता फोर्टिस हेल्थकेयर (इंडिया) लि., नई दिल्ली में हेड क्लीनिकल न्यूट्रिशनिस्ट हैं
अपने किचन की देवी बनें, सही दिशा में छोटे-छोटे कदम उठाएं
नाश्ते से लेकर सुबह और शाम के भोजन में बेसन, दाल, पनीर, चीज, अंडा, चिकन, मछली, मांस के रूप में प्रोटीन शामिल करें.
हरी पत्तेदार सब्जियों, इमली और अमरूद जैसे फलों से लौह की जरूरत पूरी करें.
स्वास्थवर्धक अनाज से शरीर की ऊर्जा बढ़ाएं.
विटामिन सी के लिए काला चना, हरी सब्जियां, शलगम, शकरकंदी, करेला और संतरा, मौसमी आदि लें.
कैल्शियम का एकमात्र अच्छा स्त्रोत दूध है. प्रतिदिन 600 मिलीलीटर दूध पिएं.
खाने के तेल देखकर चुनें. ऑलिव, मूंगफली, सोयाबीन के तेल में थोड़ा सरसों या तिल का तेल मिलाएं.
ऑफिस ले जाने वाले फल
विटामिन और इलेक्ट्रोलाइट से भरपूर हों, ये अच्छे स्नैक हो सकते हैं.
हर हफ्ते एक या दो बार खाने में फास्ट फूड लें. इससे खाने में बदलाव मिलेगा और शरीर को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा.