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अब तलाक शाप नहीं, जरूरत और समझदारी

एक समय हुआ करता था, जब तलाक का नाम सुनते ही महिलाएं सहम उठती थीं. पति को परमेश्‍वर मानने वाली भारतीय नारी ने कभी उससे अलग अपने अस्तित्‍व को तलाशा ही नहीं था. पति की दूसरी शादी को वह सहर्ष स्‍वीकार कर लेती थी, पर तलाकशुदा कहलाना उसके लिए किसी शाप से कम न था.

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Sleeping-disorder
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एक समय हुआ करता था, जब तलाक का नाम सुनते ही महिलाएं सहम उठती थीं. पति को परमेश्‍वर मानने वाली भारतीय नारी ने कभी उससे अलग अपने अस्तित्‍व को तलाशा ही नहीं था. पति की दूसरी शादी को वह सहर्ष स्‍वीकार कर लेती थी, पर तलाकशुदा कहलाना उसके लिए किसी शाप से कम न था. लेकिन अब वक्‍त बदल चुका है.

महिलाएं महज शहरों में ही नहीं कस्‍बों में भी अपने स्‍वतंत्र अस्तित्‍व को तलाश रही हैं. पुरुषों से परे अपने परों को सहलाना अब उन्‍हें आ गया है. महिलाएं समझ गई हैं कि तलाक से डर कर एक ही छत के नीचे तिल-तिल मरने से बेहतर है स्‍वतंत्रता से जीना और जीने देना.

शायद यही वजह है कि आज तलाक पहले से कहीं ज्‍यादा सहज क्रिया मानी जाती है. पहले तलाक और दूसरी शादी जैसी बातें एक समय में भले ही ‘सेलिब्रिटीज’ तक सीमित हों, पर अब समाज का मध्यम वर्ग भी इसे आसानी से स्वीकार कर रहा है. विशेषज्ञों का मानना है कि दूसरा साथी मिलने का विकल्प खुले होने और तनाव से बचने के लिए लोगों के बीच तलाक अब हौव्वा नहीं रह गया है. {mospagebreak}

विशेषज्ञों के मुताबिक, तलाक की दर अब बढ़ रही है, क्योंकि मध्यम वर्ग में इससे जुड़ी जो गलतफहमियां थीं, वह अब दूर हो रही हैं. दिल्ली के शादी और रिश्ते संबंधी थेरेपिस्ट डॉक्‍टर कमल खुराना के मुताबिक, संयुक्त परिवार न होने से, लोग जानते ही नहीं हैं कि परिवार और शादी की कीमत क्या है. उन्हें इस बात को समझने की फुरसत ही नहीं है.

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दिल्ली में कितने तलाक हो रहे हैं, इस जानकारी के लिए कोई आधिकारिक आंकड़ा उपलब्ध नहीं है, लेकिन तलाक संबंधी मामलों के वकील ओसामा सुहैल के मुताबिक इनकी संख्या छह से आठ हजार हर साल तक हो सकती है. सुहैल के मुताबिक परिवारों में महिलाओं की भूमिका बदल रही है, क्योंकि वह नौकरियां करते हुए पति के साथ कदम से कदम मिला कर चल रही हैं. वे अपनी बात मनवाना चाहती हैं और कई मामलों में यह तलाक का कारण बन रहा है.

भारत में तलाक की दर लगभग 1.1 फीसदी है, जबकि अमेरिका में यह लगभग 50 फीसदी है. खुराना ने कहा, ‘गांवों में पारिवारिक ताना-बाना ज्यादा मजबूत है क्योंकि वहां संयुक्त परिवार हैं, लेकिन महानगरों में दंपति उपभोक्तावादी मानसिकता वाले हो गए हैं. वे शादी को भी दूसरी सेवाओं की तरह लेते हैं और इसके सही काम न करने पर वे इसे बदलना चाहते हैं.

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