महंगाई से परेशान लोग अब स्कूलों की बढ़ती फीस को देखते हुए परिवार की संख्या सीमित करने लगे हैं.
निजी स्कूलों, विशेषकर महानगरों के स्कूलों के शुल्क में दो गुना की वृद्धि हुई है, जिससे दंपत्ति अब एक बच्चे के परिवार को ही तरजीह दे रहे हैं. उद्योग मंडल एसोचैम के अध्ययन के अनुसार एक बच्चे पर स्कूल का खर्च 2011 में बढ़कर 1.2 लाख सालाना हो गया है, जबकि 2005 में यह 60,000 रुपये था.
अधिकतर निजी स्कूलों में बढ़ता फीस धनी माता-पिता को भी एक बच्चे ही रखने पर मजबूर कर रहा है. एसोचैम ने सर्वे में 1,000 महलाओं को शामिल किया. इसमें कामकाजी और घरेलू महिलाएं शामिल हैं. सर्वे दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई और पुणे जैसे शहरों में किया गया. शिक्षा व्यय में यूनिफार्म, किताब, लेखन-सामग्री, परिवहन, खेल गतिविधियां, स्कूल यात्रा आदि शामिल हैं.
एसोचैम के महासचिव डीएस रावत ने कहा, ‘‘एक अनुमान के मुताबिक 6 करोड़ से अधिक बच्चे निजी स्कूलों में पढ रहे हैं और उनकी फीस दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. इससे माता-पिता का बजट पर खासा असर पड़ रहा है.’’
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि निजी ट्यूशन फीस में पिछले छह साल में 60 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज की गयी है.