देश का सबसे बड़ा सूबा उत्तर प्रदेश. इसके पूर्वी छोर पर एक जिला है गोरखपुर. गोरखपुर का जिक्र होते ही जेहन में पहला ख्याल गीता प्रेस का आता है. यहां से रामायण और गीता जैसे हिंदू धर्म के ग्रंथों और पुस्तकों का बड़े स्तर पर प्रकाशन होता है. इन सबसे इतर गोरखपुर की पहचान एक ऐसे शख्स से भी है जो दुनिया में योग का पहला ब्रांड अंबेसडर बना. इस शख्स का नाम मुकुंद नाथ घोष था, जो आगे चलकर परमहंस योगानंद नाम से मशहूर हुए थे.
गोरखपुर में हुआ था परमहंस योगानंद का जन्म
असल मायने में अगर योग की डुगडुगी पूरी दुनिया में किसी ने पीटी है, तो परमहंस योगानंद ही थे. वह इसके पहले गुरु भी माने जाते हैं. वेस्ट कल्चर का योग से किसी ने असल परिचय कराया तो वह योगानंद ही थे. उन्होंने अमेरिका में एक संस्था की शुरुआत की थी और वहां लोगों को योग सिखाने लगे थे. मुकुंद नाथ घोष यानी योगानंद का जन्म 5 जनवरी 1893 को गोरखपुर के मुफ्तीपुर मोहल्ले में कोतवाली के पास किराए के एक मकान में हुआ था. उनके पिता भगवती चरण घोष रेलवे कर्मचारी थे, जिनकी पोस्टिंग उस वक्त गोरखपुर में थी.
बचपन से ही सधुक्कड़ी मिजाज के थे
'ऑटोबायोग्राफी ऑफ योगी' किताब को परमहंस योगानंद ने खुद ही लिखा था. यह अब तक योग पर लिखी गई सबसे ज्यादा बिकने वाली किताबों में पहले स्थान पर है .इस किताब के मुताबिक योगानंद शुरुआत से ही सधुक्कड़ी मिजाज के थे. बचपन में ही घर से गुरु खोजने निकल गए थे. 17 साल की उम्र में उनकी मुलाकात हुई स्वामी युक्तेश्वर गिरि से. योगानंद युक्तेश्वर गिरि के शिष्य बन गए. उनके साथ रहने लगे.
अमेरिका जाने का कैसे आया विचार
इधर परमहंस योगानंद की आध्यात्मिक यात्रा चल रही थी, उधर उन्होंने 1915 में यूनिवर्सिटी ऑफ कलकत्ता से ग्रेजुएशन कर लिया. फिर वापस अपने गुरु के पास लौट आए और योग और ध्यान का प्रशिक्षण लिया. साल 1917 में छात्रों को योग और ध्यान सिखाने के लिए पश्चिम बंगाल के दिहिका में एक स्कूल खोला. 1 साल बाद ही ये स्कूल रांची शिफ्ट हो गया. इसके कुछ सालों बाद ही उन्हें अहसास हुआ कि भारत के आध्यात्मिक ज्ञान को पश्चिम देशों के सामने लाने का यही सही समय है.
कैसे अमेरिका में किया योग का प्रचार-प्रसार
परमहंस योगानंद 1920 में अमेरिका गए. यहां बोस्टन में इंटरनेशनल कांग्रेस ऑफ रिलीजियस लिबरल्स में भारत का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया. योगानंद ने अमेरिका में घूम-घूमकर लोगों को योग को लेकर जागरुक करना शुरू किया. इस दौरान साल 1924 में वह लॉस एंजेलिस पहुंचे. साल 1925 में माउंट वॉशिंगटन होटल को खरीदा और तभी वहां एक संस्था शुरू की. सेल्फ रियलाइजेशन फेलोशिप के नाम से. इस होटल को उसका मुख्य सेंटर बनाया. उन्होंने 1920 से लेकर 1952 तक का समय अमेरिका में बिताया और यहां योग का झंडा बुलंद किया. इसके अलावा यूरोप में भी उनकी वजह से ही योग को लेकर लोगों के अंदर जागरुकता में इजाफा हुआ. उस वक्त अमेरिका और यूरोप के बड़े -बड़े प्रभावशाली लोग परमहंस योगानंद से योग की शिक्षा लेते थे.
अब भी कायम है परमहंस योगानंद की लोकप्रियता
7 मार्च 1952 की शाम को परमहंस योगानंद की लॉस एंजेलिस के होटल में स्पीच देते हुए मृत्यु हो गई थी. हालांकि, मौत के 72 साल बाद भी वह अमेरिका में बहुत लोकप्रिय हैं. उनकी लोकप्रियता का आलम ये है कि एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स ने अपनी मौत के बाद मेमोरियल सर्विस में आने वालों को ऑटो बायोग्राफी ऑफ योगी की एक प्रति देने को कहा था. साल 2011 में स्टीव जॉब्स की मृत्यु के बाद ऐसा किया भी गया. इसके अलावा भारतीय क्रिकेट स्टार विराट कोहली भी परमहंस योगानंद के काफी मुरीद हैं. उन्होंने खुद अपनेे इंस्टाग्राम अकाउंट पर उनकी किताब शेयर करते हुए इस बात की जानकारी दी थी.
क्रिया योग को देश-दुनिया तक पहुंचाया
क्रिया योग के पूरी दुनिया में प्रचार-प्रसार का श्रेय सबसे ज्यादा परमहंस योगानंद को ही जाता है. इसमें योग की वे प्रणालियां शामिल हैं जिनसे सेहत, आध्यात्मिक विकास, या एकता-चेतना का अनुभव हो. पतंजलि के 2000 साल पुराने योग सूत्र में लिखा है कि क्रिया योग का मतलब है मन और इन्द्रियों को वश में रखना, स्वयं विश्लेषण, स्वाध्याय, ध्यान का अभ्यास और अहंकार की भावना का ईश्वर प्राप्ति के लिए त्याग करना.