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खनिज और फाइबर वाला भोजन किडनी रखेगा मजबूत

लाइफस्टाइल और खानपान में बदलाव कर किडनी की बीमारी से बचा जा सकता है. जानिये कैसे...

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Represtational Photo
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सोसायटी ऑफ रीनेल न्यूट्रीशियन एंड मेटाबॉलिज्म (एसआरएनएमसी) से जुड़े वरिष्ठ चिकित्सकों का मानना है कि गुर्दे की बीमारियों के उपचार के साथ-साथ मरीजों के पोषण पर भी विशेष ध्यान देना जरूरी है.

दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में शनिवार से शुरू हुए सोसायटी के राष्ट्रीय सम्मेलन में गुर्दे की बीमारियों से बचाव के आधुनिक उपायों पर भी चर्चा हुई. इस सम्मेलन में दुनिया के सात सौ से ज़्यादा नेफ्रोलॉजिस्ट पहली बार जमा हुए हैं. कॉन्फ्रेंस में पहली बार आयुर्वेदिक चिकित्सा जगत में हुए शोध पर भी चर्चा हुई.

चिकित्सकों ने अपने तजुर्बे से ये माना कि आयुर्वेदिक पद्धति से निर्मित दवा नीरी केएफटी गुर्दे फेल होने से बचाने में काफी कारगर साबित हुई है.

सम्मेलन में पांडिचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के प्रोफेसर जार्ज अब्राहम ने कहा कि देश भर में गुर्दे की बीमारियों में करीब 16 फीसदी की दर से इजाफा हो रहा है.

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हमारा जोर उपचार पर तो है लेकिन बचाव पर नहीं. जबकि जीवनशैली में बदलाव करके किडनी के रोगों से बचा जा सकता है. इसी प्रकार जो गुर्दा रोगी हैं, उनके बेहतर पोषण से उनकी मृत्यु दर कम की जा सकती है.

इसके लिए पानी और तरल पदार्थों का समुचित सेवन जरूरी है.

सम्मेलन में पहली बार गुर्दे के उपचार में प्रभावी दवा नीरी केएफटी पर पावर पॉइन्ट प्रजेंटेशन दिया गया. इस दवा का आविष्कार एवं निर्माण करने वाली कंपनी एमिल फार्मास्युटिकल के कार्यकारी निदेशक संचित शर्मा ने प्रजेंटेशन देते हुए बताया कि इसके काफी रिसर्च हैं कि जिन लोगों को गुर्दे की बीमारी शुरूआती अवस्था में है, वे यदि इस दवा का सेवन करें तो बीमारी बढ़ती नहीं है.

बल्कि गुर्दे को जो क्षति हुई है, धीरे-धीरे उसकी भरपाई भी हो जाती है. लेकिन इसके लिए जीवनशैली और खानपान को भी संयमित रखना जरूरी है. नीरी में एक जड़ी पुनर्नवा है जो गुर्दे की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को फिर से सक्रिय करने में मदद करती है.

नीरी केएफटीको को लेकर इंडो अमेरिकन जर्नल ऑफ फार्मास्युटिकल रिसर्च में प्रकाशित शोध के अनुसार दवा पांच आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियों गोखरू, वरुण, पत्थरपूरा, पाषाणभेद और पुनर्नवा से बनी है.

चूहों पर हुए परीक्षण में पाया गया है कि जिन चूहों को नीरी केएफटी की खुराक दी गई उनके गुर्दो की कार्यप्रणाली शानदार पाई गई. उनमें भारी तत्वों, मैटाबोलिक बाई प्रोडक्ट जैसे क्रिएटिनिन, यूरिया, प्रोटीन आदि की मात्रा नियंत्रित थी.

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जिस समूह को दवा नहीं दी गई, उनमें इन तत्वों का प्रतिशत बेहद ऊंचा था.

ये कॉन्फ्रेंस आज भी यानी कि रवि‍वार को भी जारी है. इसमें चिकित्सक दुनिया भर में किडनी की बीमारियों से बचाव और उपचार पर हुए शोध की चर्चा कर रहे हैं.

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