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कभी दवा के रूप में इस्तेमाल होता था रूह अफ़ज़ा, बन गया पसंदीदा शरबत! जानें पाकिस्तान पहुंचने की कहानी

शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जिसने रूह अफ़ज़ा का नाम नहीं सुना हो. बचपन की यादों में रूह अफ़ज़ा की अपनी एक अलग जगह है. हर किसी की कोई न कोई याद इस शरबत से जरूर जुड़ी होगी. आइए जानते हैं इस शानदार रूह अफ़ज़ा शरबत की कहानी.

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Rooh Afza Sharbat (Pic Credit: hamdardfoods)
Rooh Afza Sharbat (Pic Credit: hamdardfoods)

चिलचिलाती धूप और उमस वाली गर्मी में हर किसी का गला सूखने लगता है. ऐसे में लोग कुछ ठंडा पीना चाहते हैं. आज मार्केट में भले ही तमाम तरह की सॉफ्ट ड्रिंक्स और जूस उपलब्ध हैं, लेकिन रूह अफ़ज़ा का स्वाद सबसे ऊपर रहता है. हर कोई रूह अफ़ज़ा को अपने-अपने तरीके से पीना पसंद करता है. कोई इसे पानी और बर्फ के साथ शरबत की तरह पीता है तो कुछ दूध में मिलाकर इसका लुत्फ उठाते हैं. आज मार्केट में रूह अफ़ज़ा शरबत के अलावा बहुत से और प्रोडक्ट्स भी आ गए हैं. जैसे रूह अफ़ज़ा आइसक्रीम, रूह अफ़ज़ा श्रीखंड, रूह अफ़ज़ा योगर्ट. हर किसी को रूह अफ़ज़ा का स्वाद बेहद पसंद होता है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि रूह अफ़ज़ा का इतिहास क्या है. कैसे रूह अफ़ज़ा मार्केट में आया. आइए जानते हैं इसकी दिलचस्प कहानी. 

कैसे इजाद हुआ रूह अफ़ज़ा
साल था 1907.. जब यूनानी हर्बल चिकित्सा और हमदर्द दवाखाना के संस्थापक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद ने इस शानदार शरबत का इजाद किया. 1907 में दिल्ली में भीषण गर्मी से लोग परेशान रहने लगे थे. उस वक्त कई लोग स्ट्रोक, डायरिया और डिहाइड्रेशन के चलते दम तोड़ रहे थे. इसी को देखते हुए हाफिज अब्दुल मजीद एक ऐसी दवाई बनाना चाहते थे जिसे लोग हर रोज गर्मी में पी सकें. बस यहीं से देश को रूह अफ़ज़ा मिला. 

Hakeem Hafiz Abdul Majeed
हमदर्द दवाखाना के संस्थापक हकीम हाफिज अब्दुल मजीद (Pic Credit: hamdard.com)

आज रूह अफ़ज़ा को भले ही शरबत के रूप में मार्केट में बेचा जा रहा है, लेकिन एक वक्त था जब इसे दवाई की तरह इस्तेमाल किया जाता था. दरअसल, गर्मी की वजह से बीमार पड़ रहे लोगों को हकीम अब्दुल मजीद रूह अफ़ज़ा की खुराक देने लगे. लू और गर्मी से शरीर को बचाने में रूह अफ़ज़ा बेहद शानदार साबित हुआ. देखते ही देखते रूह अफ़ज़ा ने लोगों के दिलों में अपनी एक अलग जगह बना ली. चूंकि, रूह अफ़ज़ा पीने में स्वादिष्ट लगता था और गर्मी से शरीर का बचाव करता था, इसलिए धीरे-धीरे ये हर घर का हिस्सा बनता चला गया. 

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Sharbat Rooh Afza
शरबत रूह अफ़ज़ा (Pic Credit: hamdard.com)

बंबई में बनता था रूह अफ़ज़ा का लोगो
साल 1910 में रूह अफ़ज़ा का लोगो बनाने के लिए मिर्ज़ा नूर अहमद की मदद ली गई. उस वक्त दिल्ली के प्रिंटिंग प्रेस इतने उन्नत नहीं थे, इसलिए लोगो को ठीक से प्रिंट नहीं किया जा सकता था. यही वजह थी कि लोगो की छपाई का काम बेहतर तरीके से हो सके इसलिए लोगो को मुंबई (पहले बंबई) में छापा जाता था. 

1906 में शुरू हुआ हमदर्द दवाखाना
हकीम अब्दुल मजीद ने रूह अफ़ज़ा को यूनानी दवा के रूप में अपने दवाखाना में ही पहली बार बनाया था. रूह अफ़ज़ा सिर्फ दवा न होकर लोगों को गर्मी से राहत देने का नायाब नुस्खा बन गया और हमदर्द दवाखाना से बड़ी कंपनी बन गई. हकीम अब्दुल मजीद ने साल 1906 में पुरानी दिल्ली की गलियों में एक छोटे से यूनानी क्लीनिक की शुरुआत की, जिसका नाम उन्होंने हमदर्द रखा. हमदर्द का अर्थ है- 'दुख का साथी'. इसके बाद जब 1907 में हकीम मजीद ने रूह अफ़ज़ा बनाया तो देखते ही देखते हमदर्द ने देश में अपनी अलग पहचान बना ली. 

हमदर्द दवाखाना
हमदर्द दवाखाना (Pic Credit: hamdard.com)

पाकिस्तान कैसे पहुंचा रूह अफ़ज़ा?
रूह अफ़ज़ा ने जैसे भारत में अपनी अलग पहचान बनाई हुई है. वैसे पाकिस्तान में भी इस शरबत को काफी पसंद किया जाता है. आइए जानते हैं भारत में इजाद हुआ ये शरबत कैसे पाकिस्तान पहुंचा. दरअसल, 1947 में जब विभाजन हुआ तो अब्दुल मजीद के एक बेटे (अब्दुल हमीद) ने भारत में रहने का फैसला किया, जबकि दूसरे बेटे (मोहम्मद सईद) पाकिस्तान चले गए. मोहम्मद सईद ने पाकिस्तान के कराची में हमदर्द की शुरुआत की. इस तरह भारत में इजाद हुआ रूह अफ़ज़ा पाकिस्तान पहुंचा और वहां भी एक जाना-माना नाम बन गया. 

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क्या है रूह अफ़ज़ा की रेसिपी?
द हिंदू के मुताबिक, रूह अफ़ज़ा की रेसिपी एक सीक्रेट है. हालांकि, ये बात सबको पता है कि रूह अफ़ज़ा फलों और जड़ी बूटीयों से बनता है. द हिंदू को दिए एक इंटरव्यू में हमदर्द के सीईओ हमीद अहमद ने बताया था कि रूह अफ़ज़ा की रेसिपी केवल तीन लोगों को पता है और इसकी शुरुआत से अबतक रूह अफ़ज़ा की रेसिपी में कोई बदलाव नहीं किया गया है.  बता दें, 1948 से हमदर्द कंपनी भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में रूह अफ़ज़ा का उत्पादन कर रही है. रूह अफ़ज़ा के अलावा कंपनी के जाने-माने उत्पादों में साफी, रोगन बादाम शिरीन और पचनौल जैसे उत्पाद शामिल हैं.

1906 में स्थापित, हमदर्द लेबोरेटरीज (भारत) हर्बल, प्रकृति आधारित उत्पादों और दवाओं का एक अग्रणी निर्माता और विपणनकर्ता है. हमदर्द उत्पाद आज दुनिया भर के 75 से अधिक देशों में उपलब्ध है. 

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