जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए विधान सभा क्षेत्रों के परिसीमन के लिए परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को कहीं भी चुनौती नहीं दी जा सकती है. केंद्र सरकार और भारत के निर्वाचन आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के नोटिस के जवाब में दाखिल हलफनामे में यह बात कही है.
श्रीनगर के रहने वाले हाजी अब्दुल गनी खान ने जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिहाज से विधानसभा क्षेत्रों की संख्या 83 से 90 बढ़ाने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. उन्होंने परिसीमन की पूरी प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
अब्दुल की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया. इसके जवाब में केंद्र सरकार और निर्वाचन आयोग में यह दलील दी है कि डेलिमिटेशन एक्ट 2002 के मुताबिक आयोग के आदेश को सरकारी गजट में प्रकाशित होने के बाद उसे चुनौती नहीं दी जा सकती.
केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि हाजी अब्दुल अली खान की याचिका गलत नीयत से दाखिल की गई है. जब आयोग ने आम जनता से सुझाव और आपत्तियां मांगी थीं, तब तो इन्होंने कुछ नहीं किया.
सुप्रीम कोर्ट में 13 मई 2022 को जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस एमएम सुन्दरेश की पीठ में याचिका सुनवाई के लिए आई. पीठ ने निर्वाचन आयोग और केंद्र सरकार से इस पर जवाब-तलब किया. 30 अगस्त को इस मामले में सुनवाई हुई तो केंद्र ने जवाब दाखिल नहीं किया था.
पीठ ने केंद्र सरकार के रवैए पर नाराजगी जताते हुए कहा था कि अब सरकार को जवाब के साथ 25,000 जुर्माने की रकम भी देनी पड़ेगी. केंद्र सरकार ने अपना जवाब दाखिल करते हुए कहा है कि याचिकाकर्ता की दलील और आधार सही नहीं हैं.
उन्होंने कहा कि परिसीमन आयोग और सरकार ने पूरी प्रक्रिया यह प्रक्रिया का पालन भी किया है. क्योंकि आयोग ने जब सुनवाई की थी तब आयोग के मसौदे पर हर नागरिक को आपत्तियों और सुझाव के लिए पर्याप्त समय देकर आमंत्रित किया था.
अब जब परिसीमन आयोग आयोग की रिपोर्ट गजट में प्रकाशित हो चुकी है तो इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का कोई मतलब नहीं बनता. परिसीमन आयोग का गठन और परिसीमन की प्रक्रिया संविधान में उल्लेखित अनुच्छेद 170 के मुताबिक ही की गई है.
निर्वाचन आयोग ने अपने जवाब में सुप्रीम कोर्ट को यह बताया है कि आयोग के इस आदेश पर निर्वाचन आयोग अपनी कोई राय या टिपण्णी नहीं देना चाहता, क्योंकि संविधान के मुताबिक सारी शब्दों का पालन किया गया है.