वकालत के पेशे के लिए सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाते हुए कहा कि राज्य की बार काउंसिल कानून द्वारा तय नामांकन शुल्क से ज्यादा फीस नहीं वसूल सकतीं. नए लॉ ग्रेजुएट के लिए नामांकन शुल्क के रूप में सामान्य श्रेणी के लिए 750 रुपये और SC/ST श्रेणी के लिए 125 रुपये से ज्यादा नहीं वसूले जा सकते.
यह फैसला CJI डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने सुनाया. विभिन्न राज्य बार काउंसिलों द्वारा हाई एनरोलमेंट फीस से जुड़ी याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने 10 याचिकाओं पर फैसला सुनाया. इनमें विवाद का मुद्दा अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 24 है, जिसमें कहा गया है कि कानून स्नातक को वकील के रूप में नामांकित करने के लिए शुल्क 600 रुपये है और केवल संसद कानून में संशोधन करके इसे बढ़ा सकती है.
'पहले से ली गई राशि वापस करने की जरूरत नहीं'
शीर्ष अदालत ने यह भी कहा कि अधिवक्ता अधिनियम के तहत विविध शुल्क वसूलने का कोई प्रावधान नहीं है और यह अधिवक्ता अधिनियम के विपरीत है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बार काउंसिल द्वारा फीस संरचना नहीं अपनाना मौलिक समानता का उल्लंघन है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य बार काउंसिल को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि किसी अन्य शुल्क की आड़ में प्रावधान का उल्लंघन न हो. यह भी स्पष्ट किया गया कि इस निर्णय का भावी प्रभाव है और इसलिए बीसीआई और एसबीसी को पहले से एकत्र की गई राशि वापस करने की आवश्यकता नहीं है.
'अपनी पसंद का पेशा अफनाने का अधिकार'
सुनवाई के दौरान CJI ने कहा,'गरिमा वास्तविक समानता के लिए अहम है. किसी व्यक्ति की गरिमा में व्यक्ति के अपनी क्षमता को पूरी तरह से विकसित करने का अधिकार शामिल है. अपनी पसंद का पेशा अपनाने और आजीविका कमाने का अधिकार व्यक्ति की गरिमा का अभिन्न अंग है.'