उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल का लैंसडाउन टाउन पर्यटकों के लिए आकर्षण का मुख्य केंद्र रहा है. अब इस शहर का नाम बदलकर जसवंतगढ़ करने का प्रस्ताव रखा गया है. लैंसडाउन छावनी बोर्ड ने इस टॉउन का नाम 1962 के भारत-चीन युद्ध के नायक शहीद जसवंत सिंह के नाम पर रखने की गुजारिश की है. छावनी परिषद के अध्यक्ष ब्रिगेडियर विजय मोहन चौधरी की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह प्रस्ताव लाया गया. बोर्ड ने इस प्रस्ताव को रक्षा मंत्रालय को भी भेज दिया है.
रक्षा मंत्रालय ने नाम बदलने के लिए मांगा था सुझाव
रक्षा मंत्रालय ने कैंटोनमेंट बोर्ड से राज्य के उन सैन्य क्षेत्रों के नाम बदलने का सुझाव मांगा था, जिनका नामकरण ब्रिटिश शासनकाल में किया गया था. 132 साल पहले तत्कालीन वायसराय के समय इस शहर का नाम लैंसडाउन रखा गया था. इससे पहले, शहर को "कलौं का डांडा" (काले बादलों से घिरा पहाड़) कहा जाता था.
नाम बदलने के विरोध में स्थानीय
कैंटोनमेंट बोर्ड ने लैंसडाउन का नाम जसवंतगढ़ रखने का प्रस्ताव दिया है. प्रस्ताव में बोर्ड ने इस बात का भी जिक्र किया है कि स्थानीय जनता इस लैंसडाउन का नाम बदलने के विरोध में है. हालांकि, अगर नाम बदलना ही है तो लैंसडाउन की जगह इसका नाम जसवंतगढ़ रखना ज्यादा सही होगा.
शहर का नाम बदलने का विरोध करने वालों की क्या है राय?
शहर का नाम बदलने का विरोध करने वालों का मानना है कि इससे शहर की पहचान खत्म हो जाएगी. पर्यटन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. लैंसडाउन का नाम बदलने की पहले भी कोशिशें की गई थीं. पहले इसका नाम "कलौं डंडा" और "लॉर्ड सूबेदार बलभद्र सिंह" करने के संबंध में प्रस्ताव रखे गए थे. स्थानीय लोगों के विरोध के कारण ऐसा नहीं हो सका.
सीएम धामी भी नाम बदलने को लेकर दे चुके हैं बयान
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी पहले ही कह चुके हैं कि राज्य में गुलामी की याद दिलाने वाले ब्रिटिश काल के नाम बदले जाएंगे. उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में ब्रिटिश काल के गुलामी की गवाही देने वाले नामों को बदलने की प्रक्रिया चल रही है. उत्तराखंड में भी ऐसा ही किया जाएगा.
कौन हैं शहीद जसवंत सिंह उर्फ जसवंत बाबा?
पौड़ी जिले के बैरयूं गांव के रहने वाले शहीद जसवंत सिंह उर्फ जसवंत बाबा 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान गोरखा राइफल्स की चौथी बटालियन में कार्यरत थे. उन्होंने 17 नवंबर को अरुणाचल प्रदेश के तवांग में चीनी सेना को 72 घंटे तक रोके रखा था. जसवन्त बाबा को मरणोपरान्त महावीर चक्र से सम्मानित किया गया.
शहीद जसवंत सिंह ने इस प्रस्ताव का किया स्वागत
इंडिया टुडे से बात करते हुए शहीद जसवंत रावत के परिवार ने कैंटोनमेंट बोर्ड इस कदम का स्वागत किया है. उनका कहना है कि हम बहुत लंबे समय से बाबा जसवन्त सिंह को समर्पित एक स्मारक की मांग कर रहे हैं. अगर लैंसडाउन का नाम बदलकर जसवंतगढ़ कर दिया जाए तो यह गर्व की बात होगी.