आजतक धर्म संसद के सत्र में उत्तराखंड के गायक प्रीतम भरतवाण ने कहा कि गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ धाम, केदारनाथ धाम, ये हिमालय का मुकुट है. भारत का भाल है. यह भूमि कोई साधारण भूमि नहीं है. ये देवनगरी है और इस भूमि का ये मुख्य द्वार है. ये भूमि वैश्विक चेतना को जागृत करने वाली भूमि है.
उन्होंने जागर की उत्पत्ति को लेकर कहा कि ये आदिकाल से है, देव काल से है. पहाड़ तो हजारों साल से है. हमारा तो शिव भी पहाड़ी है न. मां जगदंबा, भगवती गंगा, मैया यमुना पहाड़ी. सब पहाड़ी ही तो हैं.
उन्होंने कहा कि ऐसे वंश में जन्मा जहां पीढ़ियों से जागर की परंपरा रही है. जागर मुझे विरासत के रूप में मिल गया और इसकी सेवा कर रहा हूं. जागर की परंपरा को आगे ले जाने वाली पीढ़ी को लेकर सवाल पर प्रीतम भरतवाण ने कहा कि कुछ युवा हैं जो बड़ी अच्छा कर रहे हैं. जागर यथार्थ है, सत्य है, गीत है. देवभूमि की हमारी भौगोलिक स्थिति, जो ऊर्जा हमारे पूर्वजों को मिली है, पीढ़ी दर पीढ़ी बढ़ रहा है. इसका कारण देवभूमि है.
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'हर श्रोता में नजर आते हैं भगवान'
उन्होंने जागर गायन के क्षेत्र में अपनी उपलब्धियों को प्रसाद बताते हुए कहा कि मुझे हर श्रोता में भगवान नजर आता है. जो सम्मान मिला है, उसके लिए आभारी हूं कि एक ऐसे दास को चुना गया जिसके दादा-परदादा ने जागर के लिए जीवन खपा दिया. मैं तो दास हूं, मैं बस चरणों की ओर देखता हूं.
'जो किसी को पीड़ा न पहुंचा वो धर्म है'
धर्म को लेकर सवाल पर प्रीतम भरतवाण ने कहा कि मेरी नजर में धर्म वह है जो किसी को पीड़ा न दे. जो किसी को हानि न पहुंचाए, मैं उसको धर्म मानता हूं. इससे पहले प्रीतम भरतवाण ने चार धाम यात्रा को लेकर अपना जागर भी सुनाया. उन्होंने जागर गीत के माध्यम से उत्तराखंड की महिमा का भी वर्णन किया.