यूपी के पश्चिमी जिलों में दलितों और मुस्लिमों का खासा समर्थन पाने वाली बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की अध्यक्ष मुजफ्फरनगर दंगों के बाद से बेहद खामोश हैं. मुजफ्फरनगर दंगे में दलित और मुसलमान आमने-सामने आ खड़े हुए हैं और इन परिस्थितियों में मायावती को दोनों को एक साथ साध पाना काफी मुश्किल हो रहा है.
मायावती ने अपनी राजनीति की शुरुआत पश्चिमी यूपी के मुजफ्फरनगर, बिजनौर जैसे जिलों से ही की थी. गौतमबुद्घनगर के बादलपुर में उनका गांव है. मायावती की पार्टी के एक सांसद और दो विधायकों पर दंगा भड़काने के आरोप में एफआईआर है. इसके बावजूद न तो मायावती और न ही उनकी पार्टी के किसी बड़े नेता ने मुजफ्फरनगर का रुख किया. पिछले साल सपा सरकार बनने के बाद यह पहला मौका है जब बीएसपी का आक्रामक रुख हवा हो गया है और वह वर्तमान में सूबे के राजनीतिक पटल से गायब सी दिख रही है, वह भी तब जब मामला दलित और पार्टी के नेताओं से जुड़ा हो.
बीएसपी के लिए इधर कुआं और उधर खाई
अपने सांसद कादिर राणा, विधायक नूर सलीम राणा और जमील अहमद कासमी के खिलाफ एफआइआर दर्ज होने के बावजूद बीएसपी का विरोध प्रतीकात्मक ही रहा. पार्टी ने इसे बीजेपी की तरह मुद्दा नहीं बनाया. राजनीतिक विश्लेषक सुरेंद्र राजपूत कहते हैं कि बीएसपी के लिए इधर कुआं और उधर खाई वाले हालात पैदा हो गए हैं.
अगर पार्टी अपने मुस्लिम विधायकों और सांसदों के साथ खड़ी होती है तो उसका परंपरागत दलित वोट बैंक खिसक सकता है. अगर इनका विरोध करती है तो वह मुस्लिम वोट बैंक नाराज हो सकता है जो दलित के साथ जुडक़र बीएसपी को पश्चिमी यूपी में एक मजबूत ताकत बनाता है.
अपने आप होगा फायदा
राजपूत कहते हैं ‘दंगे के बाद यूपी में पैदा हालात में मायावती ‘ न काहू से दोस्ती, न काहू से दुश्मनी’ की तर्ज पर राजनीति कर रही हैं.’ बीएसपी के एक जोनल कोआर्डिनेटर बताते हैं कि सपा सरकार के खिलाफ जो नाराजगी है उसका पूरा फायदा पार्टी को ही मिलेगा क्योंकि लोगों के सामने फिलहाल बीएसपी ही एकमात्र विकल्प है, ऐसे में ज्यादा हाथ पांव मारने की जरूरत नहीं है.
यूपी से फोकस हटाकर मायावती ने दिल्ली, राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपना फोकस कर लिया है. मायावती खुद दिल्ली में रह कर चार राज्यों में चुनावी प्रबंधन की कमान संभाल ली है. बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष राम अचल राजभर को दिल्ली में बीएसपी का प्रभारी बनाकर दलित और दिल्ली में रह रहे पूर्वांचल के लोगों में पार्टी की पैठ का जिम्मा सौंपा गया है.
आगामी विधानसभा चुनावों की तैयारी में है पार्टी
इन राज्यों में 2008 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान यूपी में मायावती की सरकार थी. मुख्यमंत्री रहते हुए मायावती ने इन राज्यों में कई सभाएं की थीं फिर भी मध्य प्रदेश की 7, राजस्थान की 6 और दिल्ली-छत्तीसगढ़ की 2-2 सीटों पर हाथी विजयी हुआ था. दिल्ली में पार्टी को 14 प्रतिशत वोट मिले थे लेकिन अन्य राज्यों में 6-8 प्रतिशत वोट बीएसपी की झेली में आए थे.
अब चूंकि बीएसपी यूपी की सत्ता से बाहर हो चुकी है और आगे चलकर लोकसभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर मायावती अपना पूरा ध्यान चार राज्यों के विधानसभा चुनाव में लगा रही हैं. पार्टी के एक राष्ट्रीय महासचिव बताते हैं कि चुनाव के बाद मायावती यूपी में एक बड़ी रैली कर बीएसपी के पक्ष में माहौल तैयार कर देंगी.