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दांव ब्राह्मणों पर, दोष मुस्लिमों पर.. हार पर मायावती का बयान रणनीति है या मजबूरी?

बसपा अपने सियासी इतिहास में सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा को करारी मात का सामना करना पड़ा है तो पार्टी का कोर वोटर जाटव समुदाय भी मायावती से छिटका है.

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बसपा अध्यक्ष मायावती (फोटो-पीटीआई)
बसपा अध्यक्ष मायावती (फोटो-पीटीआई)
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बसपा को यूपी चुनाव 2022 में मिली करारी हार
  • बसपा के विधायक ही नहीं बल्कि वोट भी घट गए
  • मायावती का कोर वोटर जाटव भी छिटक गया है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी 'लूजर' बसपा को कहा जा रहा है. सूबे में बसपा का पूरी तरह से सफाया हो गया है, पार्टी को अपने अब तक के इतिहास में सबसे करारी हार का सामना करना पड़ा है. बसपा को सिर्फ एक सीट मिली है, जो कि बलिया जिले के रसड़ा विधानसभा क्षेत्र से उमाशंकर सिंह ने हासिल की है. बसपा सूबे में अपना दल (एस), निषाद पार्टी, सुभासपा और आरएलडी जैसे छोटे दलों से भी पीछे रह गई है. बसपा की हार के लिए मायावती ने मुस्लिम समुदाय को जिम्मेदार ठहराया है. यहां तक कि उत्तराखंड के नतीजों के लिए भी बसपा ने मुस्लिम समाज के वोटरों को जिम्मेदार बताया है.

यूपी चुनाव नतीजे के दूसरे दिन शुक्रवार को मायावती ने बयान जारी कर कहा कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में नतीजे बसपा की उम्मीद के विपरीत आए. मुस्लिम समाज ने उत्तर प्रदेश में बसपा से ज्यादा सपा पर भरोसा कर बड़ी 'भारी भूल' की है. मायावती ने कहा कि अगर मुस्लिम समाज का वोट दलित समाज के वोट के साथ मिल जाता तो जिस तरह से बंगाल में टीएमसी ने बीजेपी को धराशायी किया था, वैसे ही परिणाम यूपी में भी दोहराये जा सकते थे.

बसपा ही भाजपा को रोक सकती है- मायावती

मायावती ने दावा करते हुए कहा कि केवल बसपा ही उत्तर प्रदेश में भाजपा को रोक सकती है. बसपा के खिलाफ दुष्प्रचार से पार्टी को बहुत नुकसान हुआ. बसपा समर्थक उच्च जाति, पिछड़ा वर्ग समाज में यह संदेश गया कि सपा के सत्ता में आने से दोबारा जंगल राज आ जाएगा, जिससे लोगों का वोट बीजेपी की तरफ चला गया. बीजेपी के अति-आक्रामक मुस्लिम-विरोधी चुनाव प्रचार से मुस्लिम समाज ने सपा को एकतरफा वोट दे दिया तो मेरे खुद के समाज को छोड़कर दलित और बाकी सभी हिंदू समाज ने बीजेपी को वोट दे दे दिया. मायावती ने कहा कि मुस्लिम समाज के इस रुख से सीख लेकर इस कड़वे अनुभव को खास ध्यान में रखकर बसपा अब अपनी रणनीति में बदलाव करेगी. 

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मुसलमानों को ही जिम्मेदार क्यों ठहरा रहीं मायावती?

वरिष्ठ पत्रकार फिरोज नकवी aajtak.in से बातचीत करते हुए कहते हैं कि हार के लिए मायावती अपने कोर वोटर को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकती हैं. ऐसे में हार के लिए किसी न किसी को तो जिम्मेदार ठहराना ही था, जिसके लिए मुस्लिमों के जिम्मे मढ़ दिया. ये हकीकत भी है कि एक दो सीटों को छोड़ दें तो मुस्लिमों ने बसपा को वोट नहीं दिया. बसपा को वोट न देने की वजह भी रही है, क्योंकि मुस्लिम समुदाय यूपी चुनाव को दो ध्रुवी रखना चाहता था. मायावती का राज्यसभा और एमएलसी चुनाव व तमाम मुद्दों पर प्रो-बीजेपी होने के चलते मुस्लिम समुदाय ने बसपा से दूरी बनाई और सपा उनकी पहली पसंद बनी. 

फिरोज नकवी कहते हैं कि बसपा ने ब्राह्मण वोटों को जोड़ने के लिए तमाम ब्राह्मण सम्मेलन किए. 2007 में बसपा की जीत का सारा श्रेय मायावती ने ब्राह्मणों को दिया, लेकिन इस बार सतीष चंद्र मिश्रा ने कितने ब्राह्मणों का वोट दिला सके. ऐसे ही मायावती को बताना चाहिए कि बसपा का कोर वोटर खासकर जाटव समुदाय क्यों उनसे छिटककर बीजेपी के साथ चला गया, जिस पर उनका सियासी असर था. मुस्लिम समुदाय न तो कभी बसपाा के एजेंडे में रहा और न ही उन्हें जोड़ने के लिए किसी तरह की पहल मायावती ने की. ऐसे में मुस्लिम क्यों उनके साथ जाता जबकि बसपा के सियासी प्रयोगशाला के केंद्र रहे सहारनपुर और बिजनौर में उनका कोर वोटर उनके साथ नहीं रहा. ऐसे में मायावती को दूसरों को दोष देने से बजाय अपने गिरेबान में झांकना चाहिए. 

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वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि मायावती ने पहली बार हार के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार नहीं ठहराया है बल्कि हर चुनाव के बाद मुस्लिमों के सिर हार का ठीकरा फोड़ती हैं. इसकी वजह यह है कि वो बड़ी संख्या में मुस्लिमों को टिकट देती हैं. इस बार भी बड़ी संख्या में मुस्लिमों को चुनाव में उतारा गया था. इस बार का चुनाव दो ध्रुवी होने के चलते मुस्लिम ने बसपा के बजाय सपा के साथ जाना पसंद किया, क्योंकि मायावती न तो सक्रिय दिखीं और न ही बीजेपी को हराने का किसी तरह का कोई एजेंडा रख सकीं.

वह कहते हैं कि मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराकर मायावती दलितों के बीच अपने सियासी आधार को बचाए रखना चाहती हैं जबकि हकीकत यह है कि बसपा का कोर वोटर जाटव है और वो बीजेपी में चला गया. बसपा के ज़रिए बीजेपी को मिले अप्रत्यक्ष लाभ की ओर इशारा करते हुए सैय्यद कासिम कहते हैं कि बसपा का कमजोर होना बीजेपी के लिए अच्छा संकेत था जो चुनाव नतीजो में दिखा भी. ऐसे में मायावती को अपनी सियासत को जिंदा रखना है तो अपने कोर वोटबैंक पर काम करना होगा, क्योंकि उसपर बीजेपी की नजर है. बीजेपी पूर्व राज्यपाल और आगरा से विधायक बनीं बेबी रानी मौर्य को मायावती के विकल्प के तौर पर पेश कर रही है, जिस पर उन्हें सोचना चाहिए. 

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बता दें कि 2017 के चुनाव में बसपा को 22 फीसदी से ज़्यादा वोट मिले थे और 19 सीटें हासिल हुई थीं. 2022 के चुनाव में बसपा को 12 फीसदी वोट और महज एक सीट मिली है. इस तरह से साल 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले बसपा को करीब 10 फ़ीसदी वोट कम मिले हैं. ऐसे में साफ है कि 2017 में गैर-जाटव दलित बसपा से छिटका तो इस बार जाटव वोट भी दूर हुआ है, जिसने सपा के बजाय बीजेपी के साथ जाना पसंद किया. ऐसे में मायावती अपनी नाकामी छुपाने के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराकर दलितों को सियासी संदेश देना चाहती हैं ताकि वो बसपा के साथ खड़े रहें.

 

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