वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में कथित 'शिवलिंग' को लेकर नए-नए दावे किए जा रहे हैं. हालांकि, एडवोकेट कमिश्नर की रिपोर्ट के बाद अभी ये बात साबित होना बाकी है कि वह शिवलिंग हैं या फव्वारा. पिछले हफ्ते ज्ञानवापी-विश्ववनाथ मंदिर मामले में मंदिर पक्ष से वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने वजूखाने में पाए पत्थर को तारकेश्वर महादेव होने का दावा किया था, तो अब BHU के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान के प्रोफेसर माधन जनार्दन रटाटे ने इसे नंदीकेश्वर शिवलिंग होने का दावा किया है.
काशी हिंदू विश्व विद्यालय के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के प्रो. माधव जनार्दन रटाटे के मुताबिक, वजूखाने में दिख रही आकृति शिवलिंग ही है. इसमें कोई संदेह नहीं है. उन्होंने बताया कि अब यह कौन सा शिवलिंग हो सकता है, यह सवाल है? इस शिवलिंग को काशी विशेश्वर का पुराना शिवलिंग मानने में इसलिए दिक्कत हो रही है, क्योंकि ऐसा सुना जाता है कि उस शिवलिंग को लेकर कोई पुजारी ज्ञानवापी में कूद गया था और शिवलिंग काशी विशेश्वर का इतना बड़ा शिवलिंग नारायण भट्ट ने स्थापित कराया हो, यह मानने में भी कठिनाई आती है.
दूसरा यह भी संभावना हो सकती है कि यह शिवलिंग अविमुक्तेश्वर का हो, लेकिन तीसरी प्रबल संभावना नंदीकेश्वर की है. क्योंकि काशी खंड में ज्ञानवापी से ठीक उत्तर की ओर नंदी नाम के गण का स्थान बताया गया है और उनके द्वारा स्थापित नंदीकेश्वर का भी जिक्र है. काशी खंड के अलावा कृत्य कल्पतरू में भी इस बात का जिक्र है कि ज्ञानवापी के समीप जिस बड़े नंदी की स्थापना नेपाल नरेश ने की थी, उसके ठीक बगल में ज्ञानवापी है और ज्ञानवापी से ठीक उत्तर यह शिवलिंग मिला है, इसलिए निश्चित रूप से वजूखाने में मिला शिवलिंग नंदीकेश्वर का ही होना चाहिए.
चूंकि नंदी बहुत सामर्थ्यशाली थे और स्वयं शिव को उठाते थे तो इतने बड़े शिवलिंग की स्थापना नंदी ने की होगी. काशी खंड के श्लोक में भी यह बताया गया है कि ज्ञानवापी से उत्तर की दिशा में नंदीकेश्वर का लिंग था और यही बात कृत्य कल्पतरू में भी कही गई है. कुबेर नाथ शुक्ल की किताब में भी शिवलिंग के लुप्त होने की बात का जिक्र मिलता है, लेकिन वे आज हमको मिल चुके हैं.