उत्तर प्रदेश की सियासत में बीजेपी को चुनौती देते हुए कांग्रेस एक बार फिर अपनी सियासी जमीन मजबूत करने की कवायद में है. वहीं, उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांग्रेस के अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम को सोमवार को गिरफ्तार कर लिया था. उन पर सीएए के खिलाफ दिसंबर 2019 में लखनऊ में हुए एक हिंसक प्रदर्शन में शामिल होने का आरोप है. गिरफ्तारी को लेकर कांग्रेस कार्यकर्ता और पुलिस प्रशासन के बीच कई बार झड़प हुई. ऐसे में सवाल उठता है कि शाहनवाज की गिरफ्तारी सूबे की सियासत में कांग्रेस के लिए कोई राजनीतिक असर दिखाएगी?
उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस तीस सालों से ज्यादा समय से सत्ता से दूर है. कांग्रेस के तमाम दिग्गज नेता पार्टी छोड़कर चले गए हैं या फिर सक्रिय राजनीति से दूर हैं. ऐसे में कांग्रेस सूबे में अपना राजनीतिक वजूद के लिए जद्दोजहद कर रही है. कांग्रेस की कमान यूपी में पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के हाथों में है और उनकी नजर पार्टी की सियासी जमीन को पुख्ता करने के लिए मुस्लिम मतदाताओं पर है, जो फिलहाल सपा का कोर वोट बैंक माना जा रहा है.
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कांग्रेस के नेता सड़क पर हैं और तमाम मुद्दों को लेकर योगी सरकार के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं और जेल भी जा रहे हैं. शाहनवाज आलम की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस ने अखिलेश यादव के मुस्लिम वोट बैंक पर सेंध लगाना शुरू कर दिया है. शाहनवाज को यूपी पुलिस नागारिकता कानून मामले में गिरफ्तार किया है. ऐसे में कांग्रेस ने सूबे के मुस्लिम के बीच शाहनवाज की गिरफ्तारी को मुद्दा बनाकर राजनीति को एक नई करवट दिलाने की कवायद शुरू कर दी है. ऐसे में अखिलेश यादव का शांत बैठना उनपर भारी पड़ सकता है.
यूपी के वरिष्ठ पत्रकार सैय्यद कासिम कहते हैं कि कांग्रेस की यूपी में बढ़ती सक्रियता सपा पर ही भारी नहीं पड़ेगा, बल्कि बसपा के लिए भी बेचैनी का सबब बन गया है. बसपा का वोटर फिलहाल बीजेपी की तरफ आकर्षित दिख रहा हो, लेकिन वो भी देर सवेर कांग्रेस के पास आ सकता है. प्रियंका गांधी जिस तरह से अपने पुराने वोट बैंक को वापस लाने की रणनीति पर चल रही है और उसमें पूरी तौर पर सफल होती दिख रही हैं. कांग्रेस का पुराना वोटबैंक था दलित मुस्लिम और ब्राह्मण. प्रियंका इन दिनों तीनों समुदाय को अपने पाले में लाने की हरसंभव कोशिश कर रही हैं.
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कासिम कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुस्लिम मतदाताओं तक अपनी बात को पुख्ता तौर पर पहुंचाने के लिए कांग्रेस अपने नेताओं की गिरफ्तारी को आधार बना रही. इसके जरिए पार्टी के नेता बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनकी जरूरत के वक्त सपा-बसपा नहीं बल्कि कांग्रेस उनके साथ खड़ी थी और उसके नेता जेल भी जाने से पीछे नहीं हटे.
सीएए-एनआरसी के खिलाफ शुरू से कांग्रेस खड़ी रही है. लखनऊ में भले ही अब शाहनवाज की गिरफ्तारी हुई हो, लेकिन सदफ जफर से लेकर कांग्रेस के तमाम नेताओं की यूपी में गिरफ्तारी हुई थी. यूपी में सीएए-एनआरसी के प्रदर्शनकारियों के साथ प्रियंका गांधी शुरू से खड़ी रही थी. सीएए को खिलाफ बिजनौर से लेकर मेरठ और मुजफ्फरनगर में हुई प्रदर्शनकारियों की मौत के बाद उनके परिवार वालों से प्रियंका गांधी खुद मिलीं थीं या फिर फोन पर बात की थी.
प्रियंका गांधी लखनऊ में सीएए के खिलाफ गिरफ्तार किए गए एसआर दारापुरी के आवास पर जाकर उनकी पत्नी से मिलीं थीं और उन्होंने योगी सरकार पर तमाम सवाल खड़े किए थे. इतना ही नहीं अखिलेश यादव के संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ के बिलरियागंज कस्बे पहुंचकर मुस्लिम महिलाओं से मुलाकात कर उन्होंने राजनीतिक तौर पर बड़ा संदेश दिया था. वाराणसी में भी सीएए और एनआरसी विरोधी आंदोलन में भाग लेने वाले प्रदर्शनकारियों से उन्होंने मुलाकात की थीं.
कांग्रेस नेता सीएए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिसिया कार्यवाई को लेकर राज्यपाल से मिले थे और बाद में प्रियंका गांधी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके योगी सरकार पर जमकर बरसीं थीं. इसी दौरान कांग्रेस ने एक लीगल सेल का भी ऐलान किया था जो सीएए के विरोध में देशभर में जेल जाने वालों को मुकदमा लड़ने में विधिक सहायता दे सके.
दरअसल अस्सी के दशक तक कांग्रेस के साथ दलित और मुस्लिम मतदाता मजबूती के साथ जुड़ा रहा. लेकिन बसपा के उदय के साथ ही दलित वोट कांग्रेस से छिटकता ही गया. ऐसे ही मुस्लिम मतदाता भी 1992 के बाद से कांग्रेस से दूर हो गया और सपा और बसपा जैसे दलों के साथ जुड़ गया. इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस सूबे में चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई. ऐसे में प्रियंका गांधी ने जब से कांग्रेस और उत्तर प्रदेश की सक्रिय राजनीति में कदम रखा है तब से वो मुस्लिमों को साधने की लगातार कोशिश कर रही हैं.