उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. योगी सरकार अपने चार साल की उपलब्धियों को गिना रही हैं और उसे गांव-गांव में लोगों को बताने का अभियान शुरू कर रही है. वहीं, सपा प्रमुख अखिलेश यादव अपने सहयोगी दलों के नेताओं के साथ चुनावी रण में उतर रहे हैं. महान दल के केशव मोर्य के बाद अखिलेश आरएलडी के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के साथ पहली बार मथुरा में कोरकी इंटर कॉलेज में किसान महापंचायत को संबोधित करेंगे.
कृषि कानून के खिलाफ देश में चल रहे किसान आंदोलन के समर्थन में तमाम विपक्षी दल उतर आए हैं. ऐसे में भारतीय किसान यनियन के प्रमुख नरेश टिकैत के साथ मुजफ्फरनगर में मंच शेयर करने के बाद से ही जयंत चौधरी सूबे के तमाम इलाकों में किसान रैली कर अपना राजनीतिक समीकरण को दुरुस्त करने में जुटे हैं. वहीं, अब जयंत और अखिलेश एक साथ किसानों के बीच उतरकर सियासी संदेश दने की कवायद करने जा रहे हैं, क्योंकि सपा और आरएलडी ने 2022 के चुनाव में एक साथ मिलकर किस्मत आजमाने का फैसला किया है.
मथुरा में हो रही किसान महापंचायत को सफल बनाने के लिए आरएलडी और सपा ने पूरी ताकत झोंक दी है. महापंचायत के लिए गुरुवार शाम को ही अखिलेश यादव मथुरा में आ गए थे. उन्होंने वृंदावन में श्रीबांकेबिहारी के जाकर दर्शन किए और योगी सरकार पर जमकर हमले किए.
सपा प्रमुख ने गंगा-यमुना और गोवंश सरंक्षण के नाम पर बीजेपी सरकार को घेरते हुए कहा कि इनके नाम पर सत्ता में आई सरकार इन्हीं के साथ धोखा कर रही है. गंगा-यमुना और गोवंश संरक्षण की स्थिति किसी से छिपी नहीं है. योगी जी अपनी नाकामी को छुपाते हुए दिल्ली सरकार पर ठीकरा फोड़ रहे हैं. अखिलेश बीजेपी के हथियार से बीजेपी को ही घेरने की कवायद करते नजर आए.
बता दें कि आरएलडी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने मथुरा से अपनी राजनीतिक पारी का आगाज किया था. वो इसी सीट से 2009 में चुनकर संसद पहुंचे थे, लेकिन 2014 का लोकसभा चुनाव हारने के बाद उन्होंने यह सीट छोड़कर अपने पिता चौधरी अजित सिंह की परंपरागत सीट बागपत से उतरे थे. इसके बाद भी वो नहीं जीत सके थे जबकि सपा और बसपा उनके साथ थी.
जयंत चौधरी के हार के पीछे सबसे बड़ी वजह यह रही कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे के बाद जाट समुदाय ने आरएलडी का साथ छोड़ दिया और बीजेपी के साथ जुड़ गए. वहीं, अब किसान आंदोलन के चलते जाट समुदाय के बीच बीजेपी को लेकर नाराजगी बढ़ी है, जिसके बाद आरएलडी को उन्हें अपने साथ जोड़ने का मौका मिल गया है. यही वजह है कि जयंत चौधरी इन दिनों सूबे में घूम-घूमकर किसान पंचायत कर रहे हैं और अब अखिलेश यादव के उतरकर चुनावी बिगुल भी फूंकने जा रहे हैं.