यूपी सरकार चुनावी मौसम में मुसलमानों को किसी भी तरह से नाराज नहीं करना चाहती है. सत्ता से लेकर सड़क तक अखिलेश यादव इसके लिए सारे दांव आजमा रहे हैं. इसके तहत राज्य मंत्रियों के नाम पर रेवडि़यों की तरह बांटी गई लाल बत्तियों की राजनीति जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के चलते ध्वस्त हो गई तो प्रदेश सरकार ने फिर से नया रास्ता निकाल लिया है.
प्रदेश सरकार ने मुसलमानों का खयाल रखने वाले अल्पसंख्यक आयोग और एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष को लाल बत्ती दे दी है. सरकार ने यह संशोधन सुप्रीम कोर्ट में दायर एसएलपी में दिए गए आदेशों के बाद किया है. इसके तहत लाल-नीली बत्ती के संबंध में सरकार ने तीन शासनादेश किए हैं. सरकार ने 23 अगस्त 2007, 4 जुलाई 2008 व 22 जुलाई 2010 के शासनादेशों को निरस्त करते हुए 10 मार्च 2014 को नए शासनादेश जारी कर दिए. इनमें एक लाल बत्ती, दूसरा नीली बत्ती व तीसरा शासनादेश हूटर व बहुरंगी (नीली, सफेद व नारंगी) बत्तियों को लेकर है.
परिवहन विभाग के प्रमुख सचिव कुमार अरविंद सिंह देव की ओर से जारी आदेश में महाधिवक्ता की लाल बत्ती से सरकार ने केवल फ्लैशर हटाया है, जबकि मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व सदस्य लाल बत्ती लगी गाड़ियोंका प्रयोग नहीं कर पाएंगे. पहले सरकार ने इन्हें फ्लैशर के साथ लाल बत्ती प्रदान की थी. राज्य निर्वाचन आयुक्त व अध्यक्ष लोकसेवा आयोग की लाल बत्ती सरकार ने बरकरार रखी है.