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'पप्‍पू' स्‍टाइल से आहत रीता ने हाथ में लिया कमल, अब इनके लिए फर्स्‍ट इंप्रेशन इज लास्‍ट इंप्रेशन

रीता बहुगुणा जोशी के कांग्रेस छोड़ने की अटकलों को तब विराम लग गया जब वो दिल्‍ली में बीजेपी भवन में राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह के बगल में भगवा चोला पहने खड़ीं नजर आईं. उन्‍होंने कांग्रेस छोड़ने का मन अचानक यूं हीं नहीं बनाया.

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रीता बहुगुणा जोशी
रीता बहुगुणा जोशी

जगह: बीजेपी भवन नई दिल्‍ली, तारीख: 20 अक्‍टूबर और दिन: गुरुवार.....दोपहर सवा तीन बजे के आसपास कांग्रेस को लगा झटका भुलाए नहीं भूलेगा. यूपी में अपनी खोई जमीन तलाशने में जुटी कांग्रेस से एक और उसका बड़ा नेता छिटक गया.

काफी दिनों से रीता बहुगुणा जोशी के कांग्रेस छोड़ने की अटकलों को तब विराम लग गया जब वो दिल्‍ली में बीजेपी भवन में राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष अमित शाह के बगल में भगवा चोला पहने खड़ीं नजर आईं. उन्‍होंने कांग्रेस छोड़ने का मन अचानक यूं हीं नहीं बनाया. जिस तरह कांग्रेस यूपी में अपनी खोई जमीन तलशाने में जुटी थी, ठीक उसी तरह वो पार्टी में अपने आप को तलाशने में जुटीं थीं. 67 वर्षीय इस कद्दावर नेत्री की संभावनाएं उस समय धूमिल पड़ गईं जब उन्‍हें यूपी की कांग्रेस टीम में कोई जगह न दी गई.

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....और बची-खुची कसर तब पूरी हो गई जब अचानक एक बाहरी उम्‍मीदवार (दिल्‍ली की पूर्व मुख्‍यमंत्री शीला दीक्षित) को लाकर सिर पर बैठा दिया गया. पूर्व सीएम हेमवती नंदन बहुगुणा की बेटी को ये रास नहीं आया. कांग्रेस के रणनीतिकार जिस पैमाने पर शीला दीक्षित को खरा बताते हैं, उस लिहाज से तो वो पहले से ही फिट बैठती थीं. अपने आपको जमीनी कार्यकर्ता मानने वालीं रीता के पास अब कांग्रेस छोड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं बचा था. और उन्‍होंने यह कहकर कांग्रेस से इस्‍तीफा दे दिया कि कम से कम मोदी सरकार में कुछ फैसले लेने की हिम्‍मत तो है.

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इतिहास पढ़ा चुकीं रीता अपना बेहतर इतिहास बनाना चाहती हैं. वो जानती थीं कि उनकी काबिलियत को कांग्रेसियों ने पूरी तरह से दरकिनार किया है. उनके पास बताने को तो बहुत सी बातें हैं जो उन्‍हें कांग्रेस में रहते हुए खलीं लेकिन इस समय वो यदि सबसे ज्‍यादा आहत हैं तो वो है कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी और उनके 'पप्‍पू' वाले बयानों से.

पांच साल तक इलाहाबाद की मेयर और वर्तमान में लखनऊ कैंट से विधायक रीता ने जमकर राहुल गांधी के खिलाफ भड़ास निकाली. एक ओर जहां उन्‍होंने सोनिया गांधी को सराहा वहीं युवराज और उनके नेतृत्‍व को सिरे से नकार दिया. फर्स्‍ट इंप्रेशन इज लास्‍ट इंप्रेशन.... की थ्‍योरी उन्‍हें बीजेपी में भी रास आई. चंद दिनों पहले अमित शाह से हुई पहली मुलाकात में ही वो उनके खुले विचारों की कायल हो गईं...उनकी स्‍ट्रेटजी ने उन्‍हें मोहित कर लिया.

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