लद्दाख में चीन और भारतीय सेना के बीच झड़प को लेकर कांग्रेस मोदी सरकार को घेरने में जुटी है. ऐसे में चीन मामले पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) मोदी सरकार के पक्ष में खुलकर खड़ी है तो कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने मायावती पर सीधा हमला बोलते हुए उन्हें बीजेपी की अघोषित प्रवक्ता बता दिया है. प्रियंका गांधी ने मायावती को बीजेपी का पिछलग्गू बताकर एक बड़ा राजनीतिक दांव खेला है, जिसके पीछे कांग्रेस की सोची समझी रणनीति मानी जा रही है.
बीएसपी प्रमुख मायावती ने सोमवार को कहा था कि भारत-चीन सीमा विवाद में बीएसपी, बीजेपी सरकार के साथ खड़ी है. कांग्रेस के लोग बेहूदी बातें करते हैं. आपसी विवाद से चीन को फायदा मिलेगा. दलगत राजनीति से ऊपर उठ हमने हमेशा देशहित के मुद्दों पर केंद्र सरकार का साथ दिया है. चीन पर आरोप-प्रत्यारोप बंद होने चाहिए.
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मायावती के बयान पर प्रियंका गांधी ने ट्वीट करते हुए कहा, 'जैसा कि मैंने कहा था कि कुछ विपक्ष के नेता बीजेपी के अघोषित प्रवक्ता बन गए हैं, जो मेरी समझ से परे है. इस समय किसी राजनीतिक दल के साथ खड़े होने का कोई मतलब नहीं है. हर हिंदुस्तानी को हिंदुस्तान के साथ खड़ा होना होगा, हमारी सरजमीं की अखंडता के साथ खड़ा होना होगा और जो सरकार देश की सरजमीं को गंवा डाले उस सरकार के खिलाफ लड़ने की हिम्मत बनानी पड़ेगी.'
प्रियंका गांधी की नजर मायावती के वोट पर
मायावती के इस रुख के बाद प्रियंका गांधी ने जिस तरह उन पर सीधा और तीखा हमला किया उससे साफ है कि उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस बीएसपी को बीजेपी के पिछलग्गू के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है. प्रियंका गांधी ने इस दांव से बीएसपी से पहले मुस्लिम वोटबैंक और फिर बीजेपी विरोधी दलित वर्ग को साधने की कवायद की है. उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम समुदाय एक दौर में कांग्रेस के कोर वोटर माने जाते थे, जिनके दम पर उसने सूबे की सत्ता में लंबे समय तक राज किया है.
उत्तर प्रदेश में दलित-मुस्लिम वोट बैंक
उत्तर प्रदेश में मुस्लिम 20 फीसदी और दलित मतदाता करीब 22 फीसदी हैं. अस्सी के दशक तक कांग्रेस के साथ दलित और मुस्लिम मतदाता मजबूती के साथ जुड़ा रहा. लेकिन बसपा के उदय के साथ ही दलित वोट कांग्रेस से छिटकता ही गया. ऐसे ही मुस्लिम मतदाता भी 1992 के बाद से कांग्रेस से दूर हो गया और सपा और बसपा जैसे दलों के साथ जुड़ गया. इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस सूबे में चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई.
प्रियंका गांधी वाड्रा के सक्रिय राजनीति में कदम रखने के बाद से कांग्रेस इन्हीं दोनों अपने पुराने वोट बैंक को फिर से जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है. हालांकि सपा और बसपा दोनों की राजनीतिक आधार इन्हीं दोनों वोटबैंक पर फिलहाल टिका हुआ है. इसीलिए प्रियंका की सक्रियता से अखिलेश और मायावती बेचैन हैं. वहीं, कांग्रेस किसी भी सूरत में इन्हें साधने की कोशिश कर रही है.
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प्रियंका गांधी का मिशन 2022 पर नजर
दरअसल, कांग्रेस महासचिव व उत्तर प्रदेश की पार्टी प्रभारी प्रियंका गांधी मिशन 2022 पूरा करने के लिए बसपा−सपा को दरकिनार करके योगी सरकार पर लगातार हमलावर हैं. सोनभद्र में जमीन मामले को लेकर हुए नरसंहार के मामले से लेकर उन्नाव में रेप पीड़िता को जलाने तक का मामला हो या फिर सीएए के खिलाफ प्रदर्शन में पुलिसिया कार्रवाई में पीड़ितों की आवाज उठाने का मामला और अब लॉकडाउन में घर लौटने वाले श्रमिकों और चीन के साथ विवाद पर प्रियंका गांधी विपक्षी दलों से आगे रही हैं.
यही वजह है कि योगी सरकार और बीजेपी नेताओं से लेकर बसपा सुप्रीमो मायावती तक प्रियंका गांधी को निशाने पर ले रहे हैं. वहीं, प्रियंका सिर्फ योगी सरकार पर ही तेवर सख्त किए हुए हैं और अखिलेश और मायावती के हमलों को अभी तक नजरअंदाज करती हैं, लेकिन अब कांग्रेस ने सोची समझी रणनीति के तहत बसपा से दो-दो हाथ करने की राजनीति दांव चल दिया है.
प्रियंका के दांव से सपा-बसपा का बिगड़ता गणित
प्रियंका गांधी अपने मंसूबों में कितना कामयाब होंगी यह तो समय ही बताएगा, लेकिन इतना तो है कि लोकसभा चुनाव में करारी मात के बाद कांग्रेस को यूपी में दोबारा खड़ा करने की कवायद में जुटी प्रियंका अब स्वयं कांग्रेस को लीड कर रही हैं जिससे कांग्रेसी नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले भी बुलंद हुए हैं. यूपी की कमान जब से प्रियंका गांधी को मिली है, तब से सूबे में कांग्रेस सड़कों पर आंदोलन करती नजर आ रही है. कांग्रेस के पहले प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू जेल गए और अब योगी सरकार के कांग्रेस के अल्पसंख्यक सेल के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम को गिरफ्तार कर लिया गया है.