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कोरोनाः लखनऊ में रॉ के पूर्व जासूस को नहीं मिला CMO का रेफरल लेटर, मौत

लखनऊ के सीएमओ से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की गुहार भी लगाई गई थी लेकिन सिस्टम का मायाजाल ऐसा कि सीएमओ साहब का पत्र मिलते-मिलते 18 घंटे का समय गुजर गया.

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कोरोना संक्रमित थे मनोज रंजन
कोरोना संक्रमित थे मनोज रंजन
स्टोरी हाइलाइट्स
  • सीएमओ का रेफरल लेटर मिलने में लग गए 18 घंटे
  • यूपी में कई जगह अब भी लागू सीएमओ रेफरल सिस्टम

कोरोना वायरस की बीमारी आबादी के लिहाज से देश के सबसे बड़े सूबे यूपी में भी कोहराम मचा रही है. अस्पतालों में ऑक्सीजन की किल्लत है, वहीं कोरोना संक्रमितों को बेड तक नहीं मिल पा रहे हैं.

यूपी की राजधानी लखनऊ के अस्पतालों में बेड ना मिलने के कारण कोरोना की चपेट में आए रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व जासूस मनोज रंजन की सोमवार मौत हो गई.

जानकारी के मुताबिक, रॉ के पूर्व जासूस मनोज रंजन कोरोना की चपेट में आ गए थे. मनोज रंजन की तबीयत बिगड़ गई. उन्हें न तो अस्पताल मिले और ना ही किसी अस्पताल में बेड. सरकारी सिस्टम के जाल में उलझकर रॉ के इस पूर्व जासूस ने लखनऊ में दम तोड़ दिया. मनोज रंजन की उपचार के अभाव में आज यानी 26 अप्रैल को तड़के 4 बजे भोर में मौत हो गई.

बताया जाता है कि मनोज रंजन को अस्पताल में भर्ती कराए जाने के लिए मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) का पत्र नहीं मिला. मनोज रंजन के परिजनों ने उनकी हालत का उल्लेख करते हुए लखनऊ के सीएमओ से उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की गुहार भी लगाई थी लेकिन सिस्टम का मायाजाल ऐसा कि सीएमओ साहब का पत्र मिलते-मिलते 18 घंटे का समय गुजर गया.

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मनोज रंजन के लिए एक-एक सेकंड भारी हो रहे थे, ऐसे में 18 घंटे का इंतजार. रॉ में बतौर जासूस सेवाकाल में देश की सेवा करने वाले मनोज रंजन आखिरकार सिस्टम से हार गए और दम तोड़ दिया. यूपी के कई अस्पतालों में अब भी सीएमओ रेफरल लागू है. यह हाल तब है, जब सीएम योगी आदित्यनाथ खुद कह चुके हैं कि अस्पताल किसी भी मरीज को भर्ती करने से इनकार नहीं कर सकते. सीएम ने निर्देश दे रखा है कि सरकारी अस्पताल में जगह न हो तो मरीजों को निजी चिकित्सालयों में भर्ती कराया जाए. इसका खर्च सरकार वहन करेगी.

 

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