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कैराना-नूरपुर में अखिलेश नहीं करेंगे प्रचार, मायावती 27 को कर सकती हैं समर्थन

बीजेपी ने भले ही कैराना उपचुनाव में गोरखपुर और फूलपुर न दोहराने की ठान रखी हो मगर विपक्ष इसे बिना अखिलेश और मायावती के हराकर एक नजीर पेश करना चाहता है.यही वजह है कि अखिलेश यादव की तरफ से यह ऐलान कर दिया गया है कि वह कैराना और नूरपुर के उपचुनाव में चुनाव प्रचार नहीं करेंगे.

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अखिलेश यादव और मायावती
अखिलेश यादव और मायावती

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और पूरी बीजेपी ने भले ही कैराना उपचुनाव में गोरखपुर और फूलपुर न दोहराने की ठान रखी हो मगर विपक्ष इसे बिना अखिलेश और मायावती के हराकर एक नजीर पेश करना चाहता है. यही वजह है कि अखिलेश यादव की तरफ से यह ऐलान कर दिया गया है कि वह कैराना और नूरपुर के उपचुनाव में चुनाव प्रचार नहीं करेंगे.

बता दें कि कैराना लोकसभा सीट से तबस्सुम हसन चुनाव लड़ रही हैं. वे सपा की नेता रही हैं और उनके बेटे नाहिद हसन मौजूदा समय में सपा से ही विधायक हैं. उपचुनाव में आरएलडी-सपा के साथ हुए गठबंधन पर तबस्सुम हसन को जयंत चौधरी ने अपना प्रत्याशी घोषित किया. जबकि नूरपुर में सपा ख़ुद चुनाव लड़ रही है लेकिन अखिलेश यादव दोनों सीटों पर चुनाव प्रचार करने नहीं जाएंगे.

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अखिलेश के उलट योगी आदित्यनाथ ने इस बार कैराना का किला बचाने की जिद ठान रखी है. कैराना में योगी आदित्यनाथ की दो बड़ी सभाएं हो चुकी हैं. आपस में कोई मतभेद ना दिखे इसलिए एक ही हेलीकॉप्टर से योगी आदित्यनाथ और केशव मौर्य साथ-साथ प्रचार करते भी दिखे हैं.

हालांकि बसपा प्रमुख मायावती ने औपचारिक तौर पर आरएलडी उम्मीदवार को समर्थन का ऐलान नहीं किया है. लेकिन माना जा रहा है कि मायावती की तरफ से कार्यकर्ताओं को संकेत दे दिए गए हैं. एक चर्चा यह भी है कि 27 मई को होने वाले पार्टी के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में मायावती औपचारिक तौर पर अजीत सिंह की पार्टी आरएलडी की उम्मीदवार तबस्सुम हसन को समर्थन का ऐलान कर सकती हैं.

योगी आदित्यनाथ के करीबी और पार्टी प्रवक्ता डॉ चंद्र मोहन ने कहा कि इस बार कैराना की जीत तय है. यह गोरखपुर और फूलपुर में हुए चुनावी नतीजों का बदला भी होगा, क्योंकि इस बार पूरा विपक्ष एक हो चुका है. यहां तक की लोक दल के उम्मीदवार और दूसरे निर्दलीय उम्मीदवारों को भी ये लोग येन केन प्रकारेण आरएलडी के समर्थन में जबरदस्ती बैठा रहे हैं. बावजूद इसके बीजेपी की बड़ी जीत होगी.

समाजवादी पार्टी का खेमा इस बार अखिलेश यादव के चुनाव प्रचार किए बगैर यह जीत दिलाना चाहता है,  ताकि 2019 के लिए माहौल और तेज किया जा सके. मायावती और अखिलेश के गए बगैर यह जीत होती है तो बीजेपी के लिए और भी दबाव की स्थिति पैदा हो सकती है.

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