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वाराणसी: गंगा किनारे धंसते मकानों और काली पड़ती गंगा के पीछे क्या है वजह?

पंप बंद हो जाने से अब सारा अवजल गंगा में सीधे गिर रहा है. जिसके चलते गंगा का पानी न केवल काला होगा बल्कि सारे पैरामीटर भी गड़बड़ हो जाएंगे. फिकल पॉलीफॉर्म काउंट भी बढ़ जाएगा. यह समस्या इस तरह खत्म होने वाली नहीं.

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वाराणसी के गंगा किनारे क्षतिग्रस्त होते मकान.
वाराणसी के गंगा किनारे क्षतिग्रस्त होते मकान.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • गंगा के नजदीक 10 मकान क्षतिग्रस्त
  • पर्यावरणविद् विशंभरनाथ ने बताया कारण

वाराणसी के गंगा किनारे नगवां इलाके में गंगोत्री विहार कॉलोनी के करीब 10 मकानों के क्षतिग्रस्त होने की वजह पंपिंग स्टेशन की पाइप लाइन को माना जाता है. यह लाइन गंगा में गिरने वाले अस्सी नाले को टैप करके वाराणसी के रमना सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट तक ले जाती है. इसके अलावा पंपिंग स्टेशन के बंद हो जाने के चलते लगभग 70 एमएलडी अस्सी नाले के सीवेज का 4 दिनों से गंगा में गिरने से नदी भी काली पड़ती जा रही है. इन सब के लिए पर्यावरणविद ने गलत डिजाइन और मानक के विपरीत पंपिंग स्टेशन और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को बनाया जाना बताया है और गंगा को अभी भी मौजूदा समय में प्रदूषणयुक्त ठहराया है.

इस बारे में पर्यावरणविद और आईआईटी-बीएचयू के प्रोफेसर विशंभरनाथ मिश्र ने बताया, वाराणसी में अस्सी और वरुणा मुख्य डिस्चार्ज चैनल हैं. सबसे ज्यादा डिस्चार्ज वरुणा से होता है. उसके बाद वाराणसी में अस्सी नाले का नंबर आता है. आज से 10 साल पहले हम लोगों की ओर से अस्सी का मेजरमेंट जब किया गया था, तो उस समय 64 से 65 एमएलडी डिस्चार्ज पाया गया. आज वह डिस्चार्ज 80 एमएलडी के करीब होगा. लेकिन बनाया गया पंपिंग स्टेशन 50 एमएलडी का ही है. अगर यह पूरी क्षमता से पंप भी करते हैं तो 50 एमएलडी ही कर पाएंगे बाकी सीवेज गंगा में बहाया जाएगा. 

पाइप मिट्टी में धंस रहा है
प्रोफेसर मिश्र ने आगे कहा कि पंपिंग स्टेशन से लेकर रमना एसटीपी तक डाली गई पाइप की ना तो पाइलिंग ठीक से की गई है और ना ही पिचिंग ही ठीक से की गई है. इसी वजह से पाइप मिट्टी में धंस रहा है और पाइप में जहां भी जॉइंट है, वहां से पंप के चलते वक्त पानी लीकेज कर रहा है और मिट्टी धंस रही है. यह तो बड़ा ही जनरल फिनोमिना है. आसपास के मकानों में क्रेक आ चुके हैं और फर्स भी धंस रहे हैं. यह तो स्थानीय मुद्दा है लेकिन गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के मकसद से जितने भी काम हो रहे हैं, उसके तहत अंडर कैपसिटी का पंप बनाया गया है. 

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बैक्टीरिया को खत्म करने का कोई तरीका नहीं
विशंभरनाथ मिश्र के मुताबिक, जो एसटीपी प्लांट काम कर भी रहा है, वह पुरानी टेक्नोलॉजी पर काम कर रहा है जिसमें फिकल कॉलीफॉर्म बैक्टीरिया को खत्म करने का कोई तरीका नहीं है. इस तरह गंगा प्रदूषण मुक्त नहीं हो पाएगी. पंप बंद हो जाने से अब सारा अवजल गंगा में सीधे गिर रहा है. जिसके चलते गंगा का पानी न केवल काला होगा बल्कि सारे पैरामीटर भी गड़बड़ हो जाएंगे. फिकल पॉलीफॉर्म काउंट भी बढ़ जाएगा. यह समस्या इस तरह खत्म होने वाली नहीं. 

गंगा को प्रदूषण मुक्त करने के 3 टिप्स 
गंगा को अगर प्रदूषण मुक्त करना है तो इसके तीन स्टेप हैं- पहला प्रॉपर इंटरसेक्शन, दूसरा डायवर्जन और फिर एसटीपी में फिकल पॉलीफॉर्म बैक्टीरिया को खत्म करके पानी को रीयूज करिए या या तो फिर डाउनस्ट्रीम में डाल दीजिए. अभी अपस्ट्रीम में फिकल कोलीफॉर्म 40 से 50 हजार मिलेगा जो कि गर्मी में एक लाख तक चला जाता है. जबकि स्टैंडर्ड के लिए कहा गया है कि पर हंड्रेड एमएल में इसका काउंट 500 के अंदर होना चाहिए. इसलिए प्रॉपर इंटरसेप्शन, डायवर्जन और लेटेस्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करना बेहद जरूरी है.

 

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