देशभर में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के विरोध के बीच उत्तर प्रदेश में नए कॉलम के एनपीआर के साथ जनगणना शुरू करने को हरी झंडी मिली गई है. पूरे प्रदेश में 16 मई से जनगणना शुरू होगी और 30 जून तक चलेगी.
इस बार मैनुअल के साथ-साथ डिजिटल जनगणना भी होगी. डिजिटल जनगणना करने वाले कर्मचारियों को ज्यादा मानदेय मिलेगा. एक डिजिटल ऐप होगा जिसे परिवारों में बैठकर भरा जाएगा और वहीं से डाटा सीधा कंट्रोल रूम भेजा जाएगा. अगर किसी ने जनगणना में किसी तरह का बाधा डालने की कोशिश की तो जनगणना एक्ट की धारा 11 के तहत कार्रवाई होगी. इसमें 3 महीने की जेल और एक हजार रुपये का जुर्माने का प्रावधान है.
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लखनऊ के डिविजनल कमिश्नर ने अपने कमिश्नरी के सभी 6 जिलों में एनपीआर के साथ जनगणना कराने को हरी झंडी दी. बताया जा रहा है कि 15 मार्च से जनगणना में शामिल होने वाले कर्मचारियों का प्रशिक्षण चलेगा. लखनऊ कमिश्नरी में करीब 10000 लोग जनगणना के कार्य में लगाए जाएंगे जिन्हें डिजिटल जनगणना के लिए अलग से ट्रेनिंग दी जा रही है.
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इस बार ज्यादातर काम डिजिटल तरीके से होंगे. यानी मोबाइल के ऐप के जरिये घरों से सीधे डाटा कंट्रोल रूम को भेजा जाएगा. संवेदनशील या अति संवेदनशील इलाके के लिए अलग से टीमें बनाई जाएंगी जहां जनगणना का काम होगा.
बता दें कि विपक्ष एनपीआर को भी एनआरसी का हिस्सा बता रहा है. समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का कहना है कि सरकार जो कम एनआरसी से नहीं कर पाई, वह अब एनपीआर से करने जा रही है. अखिलेश ने 29 दिसंबर को सवाल उठाया था कि जातीय जनगणना कराने में सरकार को दिक्कत क्यों है? एनपीआर में कई ऐसे बिंदु लाए गए हैं, जिनके कागज मिलेंगे ही नहीं. ये जो काम एनआरसी से नहीं कर पाए, वो एनपीआर से कर रहे हैं.