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CAA Protest: SC के फैसले को आधी जीत क्यों बता रहे हैं 65 लाख का नोटिस पाने वाले एक्टिविस्ट

नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को क्षति पहुंचाने के नुकसान की भरपाई के लिए जारी किए गए नोटिस को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से वापस लेने का आदेश दिया है.

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लखनऊ में यूपी सरकार ने वसूली का पोस्टर भी लगाया था
लखनऊ में यूपी सरकार ने वसूली का पोस्टर भी लगाया था
स्टोरी हाइलाइट्स
  • SC ने यूपी सरकार को दिया झटका
  • यूपी सरकार के पास फिर भी 'मौका'

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के दरमियान योगी सरकार को एक बड़ा झटका लगा है. मामला नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्तियों को क्षति पहुंचाने के नुकसान की भरपाई के लिए जारी किए गए नोटिस से जुड़ा है. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यूपी सरकार से सभी नोटिस को वापस लेने का फरमान जारी किया है.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद नोटिस का सामना कर रहे लोगों में खुशी के साथ ही एक चिंता है. दरअसल, इस चिंता की वजह समझने से पहले पूरा मामला समझना होगा. 2019 में केंद्र सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) बनाया था. इसका विरोध पूरे देश में हुआ. उत्तर प्रदेश के कई शहरों में भी प्रदर्शन हुआ था.

क्या है पूरा मामला

यूपी की राजधानी लखनऊ समेत कई शहरों में भी प्रदर्शन हुआ. इस दौरान कई जगह पर सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया गया था. इस पर सख्त रुख अपनाते हुए यूपी सरकार ने कई लोगों को सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस जारी किया था. पैसा जमा करने की तारीख निकल जाने के बाद कुर्की के आदेश जारी कर दिए गए.

लखनऊ के दीपक को 65 लाख का नोटिस

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लखनऊ के सामाजिक कार्यकर्ता दीपक कबीर को भी यूपी सरकार ने नोटिस जारी किया था. उनका कहना है कि मुझे 16 जून 2020 को 65 लाख रुपये की रिकवरी का नोटिस मिला था, जिस समय पूरी दुनिया कोरोना जैसी महामारी से जूझ रही थी और लड़ रही थी, तभी हमें नोटिस मिला, जबकि यह नोटिस पूरी तरह से कानूनी रूप से अवैध था.'

एडीएम स्तर पर जारी हुआ था नोटिस

दीपक कबीर समेत कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इन नोटिस को लेकर हाई कोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाई कोर्ट ने कुछ लोगों के नोटिस पर स्टे दे दिया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस नोटिस जारी करने की प्रक्रिया को ही अवैध बता दिया है. खास बात है कि रिकवरी नोटिस को एडीएम के स्तर पर जारी किया गया था.

सरकार ने रिकवरी के लिए बना दिया था कानून

कोर्ट में पेंच को फंसते देख यूपी सरकार ने 'उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अध्यादेश 2020' बना दिया. हालांकि नोटिस पहले ही एडीएम स्तर पर जारी कर दिया गया था, इस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने इस अवैध माना और सभी नोटिस को वापस लेने के साथ ही रिकवरी किए गए पैसे को वापस देने का फरमान जारी किया है.

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एक्टिविस्ट इसे बता रहे हैं आधी जीत

सामाजिक कार्यकर्ता दीपक कबीर कहते हैं कि यह आधी जीत है, क्योंकि सरकार अब वसूली अध्यादेश के जरिए लोगों को नोटिस जारी कर सकती है, ऐसे में हमने इस अध्यादेश को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. यानि सुप्रीम कोर्ट ने भले ही रिकवरी नोटिस को वापस लेने का फरमान जारी कर दिया हो, लेकिन यूपी सरकार के पास अभी एक और रास्ता है.

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को दिया मौका

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुआई वाली बेंच ने यूपी सरकार को इस बात की इजाजत दे दी है कि वह एंटी-सीएए प्रदर्शनकारियों के खिलाफ नए कानून यूपी रिकवरी ऑफ डैमेज टू प्रॉपर्टी एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी एक्ट के तहत कार्यवाही कर सकती है. यानी सरकार के पास मौका है कि वह नए कानून के तहत रिकवरी नोटिस जारी करे.

कानून को भी सुप्रीम कोर्ट में दी गई चुनौती

दीपक कबीर ने कहा कि पहले यूपी सरकार ने मनमाने तरीके से नोटिस भेज दिया था, नोटिस को लेकर कोई कानून ही नहीं था, लेकिन फिर उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी सम्पत्ति क्षति वसूली अध्यादेश 2020 बनाया गया और अब यूपी इस कानून के जरिए लोगों को फिर से नोटिस जारी कर सकती है, इस कानून को हमने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिस पर सुनवाई बाकी है.

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