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दलितों के साथ खिचड़ी भोज कर BJP नेताओं ने मनाई अंबेडकर जयंती

उत्तर प्रदेश में अंबेडकर जयंती मनाने की परंपरा अब से पहले तक बीएसपी में ही रही है. मगर इस साल पहली बार बीएसपी के अलावा बीजेपी और कांग्रेस सरीखी पार्टियों में भी अंबेडकर जयंती मनाने को लेकर जबरदस्त गर्मजोशी दिखाई दी.

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डॉ. भीमराव अंबेडकर (फाइल फोटो)
डॉ. भीमराव अंबेडकर (फाइल फोटो)

उत्तर प्रदेश में अंबेडकर जयंती मनाने की परंपरा अब से पहले तक बीएसपी में ही रही है. मगर इस साल पहली बार बीएसपी के अलावा बीजेपी और कांग्रेस सरीखी पार्टियों में भी अंबेडकर जयंती मनाने को लेकर जबरदस्त गर्मजोशी दिखाई दी.

समाजवादी पार्टी सरकार ने अम्बेडकर की पुण्य तिथी 6 दिसंबर के मौके पर छुट्टी का ऐलान कर दिया. वहीं, कांग्रेस ने अंबेडकर की 125वीं जयंती को पूरे सालभर मनाने की घोषणा कर दी. आखिर ऐसे में बीजेपी भला कैसे पीछे रहती, तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी के स्थानीय नेताओं ने आज के दिन दलितों के साथ खिचड़ी भोज कर 'सामाजिक समरसता अभियान' के तहत उन्हें पार्टी से जुड़ने का न्योता दे दिया.

हालांकि, प्रदेश स्तर के नेता इन कार्यक्रमों में शामिल नहीं हुए, मगर यूपी में सभी जिला इकाइयों की ओर से दलितों के घर जा कर उनके साथ मेलजोल बढ़ाने, पार्टी की नीतियां बताने और साथ खाना खाने का कार्यक्रम रखा गया. लखनऊ में ऐसे ही एक कार्यक्रम में राजधानी की मोहनलालगंज लोक सभा सुरक्षित सीट से सांसद कौशल किशोर और बीजेपी के जिला अध्यक्ष राम निवास यादव ने बीजेपी कार्यकर्ताओं के साथ चिनहट के भैंसोरा गांव में दलितों के साथ खिचड़ी भोज किया.

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हालांकि, बीजेपी के अंबेकर प्रेम और दलितों को लेकर बाबा अम्बेडकर की नीतियों के जिक्र के साथ साथ बीजेपी नेताओं ने बसपा सुप्रीमो मायावती और उनकी पार्टी बीएसपी को जी भर कर कोसा. बीजेपी सांसद कौशल किशोर ने मायावती पर दलितों को गुमराह करने का इल्जाम तो लगाया ही यूपी में दलितों की खराब स्थिति का ठीकरा भी उन्हीं पर फोड़ दिया. जाहिर है, बीजेपी की नजरें 2017 में आने वाले विधान सभा चुनावों पर हैं और पार्टी लोकसभा में बीएसपी के खिलाफ मिली बढ़त का फायदा इन चुनावों में उठा कर बीएसपी को पूरी तरह खत्म कर देना चाहती है.

जमीनी हकीकत देखें तो सचमुच दलितों और बीजेपी के बीच नजदीकियां बढ़ती दिखाई देती हैं. दलित समाज से जुड़े लोग भी इस बात से इंकार नहीं करते कि पिछले लोकसभा चुनावों में दलितों की राजनीति को लेकर अलग सोच दिखाई दी है. दलित अब खुद को समाज का शोषित हिस्सा मानने के बजाए अपनी पहचान बतौर हिंदू मानकर मुख्यधारा का हिस्सा बनने में ज्यादा गर्व महसूस कर रहे हैं. दूसरी ओर, बीएसपी का वोटबैंक 2012 विधानसभा चुनावों के बाद लगातार खिसकता दिखाई दिया है.

2007 में 403 सीटों वाली यूपी विधानसभा में 207 सीटें से बहुमत पाने वाली पार्टी 2012 चुनावों में 80 सीटों पर सिमट गई. जबकि, 2014 लोकसभा चुनावों में एक भी सीट न जीत पाने के बाद बीएसपी का राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी खतरे में पड़ चुका है. ऐसे में 'सामाजिक समरसता अभियान' के तहत दलित वोट बैंक को लुभाने की बीजेपी की कोशिश अब बीएसपी के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकती है.

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बीजेपी सांसद कौशल किशोर ने कहा, 'बीजेपी भारत में समतामूलक समाज की स्थापना चाहती है. यही बाबा भीमराव अंबेडकर का भी सपना था. इसके लिए पार्टी ने कई बार मायावती को मौका दिया, यहां तक की अपनी पार्टी को कमजोर कर बाबा का मिशन पूरा करने की कोशिश की पर उन्होंने दलितों के उत्थान के लिए कुछ नहीं किया. इस कार्यक्रम से पार्टी अपना दलित वोटबैंक तो मजबूत करना ही चाहती है साथ ही दलितों को ये भी बताना चाहती है कि आप अभी तक जिन लोगों के पीछे चलते आए उन्होंने आपके लिए कुछ नहीं किया पर अगर आप बीजेपी के साथ जुड़ेंगे तो 'सबका साथ और सबका विकास' के तहत दूसरों के साथ-साथ आपका भी विकास और उत्थान होगा.'

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