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बाबरी विध्वंस केस: साजिश-भड़काऊ भाषण के आरोपी हैं बीजेपी और हिंदूवादी संगठनों के कई बड़े नेता

राम जन्मभूमि थाने में जो एफआईआर दर्ज की गई थी, उसी आधार पर यह मुकदमा बना. जिसमें तत्कालीन सभी मौजूद बड़े नेताओं और साधु-संतों को आरोपी बनाया गया, जो उस सांकेतिक कार सेवा के लिए वहां मौजूद थे.

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30 सितंबर बाबरी विध्वंस केस में फैसला
30 सितंबर बाबरी विध्वंस केस में फैसला
स्टोरी हाइलाइट्स
  • बाबरी विध्वंस केस में फैसला
  • 30 सितंबर को आएगा फैसला
  • कई नेता हैं मामले में आरोपी

28 सालों की सुनवाई के बाद आखिरकार बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले पर फैसला 30 सितंबर को सीबीआई की विशेष अदालत में लखनऊ में सुनाया जाएगा. इस मामले में कुल 49 आरोपी बनाए गए थे, जिसमें राम मंदिर आंदोलन से जुड़े सभी बड़े नाम शामिल थे.

बाला साहब ठाकरे, लालकृष्ण आडवाणी, कल्याण सिंह, अशोक सिंघल, विजयाराजे सिंधिया, मुरली मनोहर जोशी, आचार्य गिरिराज किशोर, विष्णु हरि डालमिया, राम विलास वेदांती, महंत अवैद्यनाथ, महंत नृत्य गोपाल दास, उमा भारती, साध्वी ऋतंभरा, विनय कटियार, साक्षी महाराज, आचार्य धर्मेंद्र, चंपत राय सरीखे तमाम बड़े नाम इस मामले में आरोपी थे. हालांकि 49 लोगों में से 17 आरोपियों की मौत हो चुकी है और 32 लोगों के लिए यह फैसला आने वाला है. एक सितंबर तक केस की सुनवाई पूरी हो चुकी है और दो सितंबर से इस मामले का जजमेंट लिखा गया है. 30 सितंबर को इस पर आखिरी फैसला आने वाला है. 

दरअसल, 6 दिसंबर 1992 को उच्च न्यायालय के आदेश के बाद अयोध्या में एक सांकेतिक कारसेवा की अनुमति दी गई थी. जिसमें सरयू तट से सरयू का जल और मिट्टी लाकर सांकेतिक पूजा की शुरुआत की जानी थी लेकिन साधु संत महंत और बीजेपी के बड़े नेता ये सांकेतिक कार्यसेवा की तैयारी करते रहे और उधर हजारों की तादाद में आए कारसेवकों ने फावड़े, कुदाल, रस्सी, पाइप और दूसरे विध्वंस के उपकरणों से देखते-देखते बाबरी मस्जिद को जमींदोज कर डाला.

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इसके बाद राम जन्मभूमि थाने में जो एफआईआर दर्ज की गई थी, उसी आधार पर यह मुकदमा बना. जिसमें तत्कालीन सभी मौजूद बड़े नेताओं और साधु-संतों को आरोपी बनाया गया, जो उस सांकेतिक कार सेवा के लिए वहां मौजूद थे या फिर जिन्होंने भड़काऊ बयान दिए थे. बाल ठाकरे हालांकि अयोध्या में मौजूद नहीं थे लेकिन बयानों की वजह से उन्हें भी आरोपी बनाया गया था.

1992 में गिरी बाबरी मस्जिद

6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद गिरी थी. करीब सात दिनों तक सीबीसीआईडी ने इस मामले की जांच की थी लेकिन 13 दिसंबर को यह जांच सीबीआई को सौंप दी गई और तब से इस केस ने लंबा सफर तय किया है. पहली सुनवाई ललितपुर से शुरू हुई फिर रायबरेली में यह मामला चला और आखिर में लखनऊ की सीबीआई की विशेष अदालत में इस मामले की परिणति होने जा रही है.

सभी 49 नेताओं पर भड़काऊ भाषण देने के आरोप लगे. अज्ञात लोगों पर, कारसेवकों पर, पत्रकारों, छायाकारों और मीडिया के लोगों पर हमला करने, कैमरा तोड़ने छीनने के भी आरोप लगे. हालांकि बाद में इस मामले में साजिश का एंगल भी जोड़ा गया और 120बी सभी लोगों पर लगा.

कई नेताओं पर आरोप

लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार और साध्वी ऋतंभरा इन पांच लोगों पर जो धाराएं लगाई गई थी उसमें 120बी यानी विध्वंस के लिए साजिश रचने 147, 149, 153a, 153b और 505 की उपधारा 1 यानी सभी तरह के भड़काऊ भाषण और विध्वंस की साजिश के आरोप थे. इन्हीं आरोपों के तहत पहले आरोप तय हुए और उसके बाद बहस शुरू हुई.

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राम विलास वेदांती, धर्मदास जी महाराज, महंत नृत्य गोपाल दास, सतीश प्रधान, चंपत राय जैसे दूसरे हिंदूवादी नेताओं पर भी लगभग यही मुकदमे दायर हुए जबकि अज्ञात कारसेवकों पर लूट मारपीट की धाराएं लगाई गई. यह धाराएं मीडिया पत्रकारों और छायाकारों के साथ मारपीट और उनके कैमरे छीनने और तोड़ने के मामले में लगे.

पिछले 5 सालों में विध्वंस का यह मामला पहले ललितपुर में चला, फिर रायबरेली में और आखिर में सुप्रीम कोर्ट ने सभी मामलों को एक साथ जोड़कर लखनऊ में सुनवाई के आदेश दिए. तब सीबीआई की विशेष अदालत ने पूरी सुनवाई एक साथ की और अब फैसले को तैयार है.

लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार के वकील विमल श्रीवास्तव के मुताबिक बचाव पक्ष ने अपनी पूरी दलील पेश की है. यह भी कहा कि साजिश और साथ-साथ भड़काऊ भाषण दोनों के आरोप सही नहीं है क्योंकि कार सेवा करने गए लोग वहां कार सेवकों को रोकते नजर आए, जो उस वक्त विवादित ढांचा गिरा रहे थे. साजिश के भी कई पक्ष रहे. बचाव पक्ष के मुताबिक इन नेताओं ने कोई साजिश नहीं रची थी और यह सब कुछ अनायास और अचानक ही हुआ था.

हालांकि अब फैसले का वक्त है और सब कुछ सीबीआई के विशेष जज पर ही कि वो क्या फैसला करते हैं. इस पर सबकी नजर होगी. इस मामले में कुल 24 लोगों की पैरवी करने वाले केके मिश्रा कहते हैं कि हम लोगों ने पूरी शिद्दत से इस केस को लड़ा है और साजिश से लेकर भड़काऊ भाषणों के आरोप को काउंटर किया है लेकिन अब हमें अदालत के फैसले का इंतजार करना चाहिए.

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कोर्ट जाना मुश्किल!

बता दें कि 32 जीवित आरोपियों में कुछ लोगों की उम्र काफी ज्यादा हो चुकी है. लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी 90 साल की उम्र में है और सेहत की वजह से शायद ही फैसला सुनने लखनऊ की विशेष अदालत आएं जबकि कल्याण सिंह, उमा भारती और महंत नृत्य गोपाल दास इस वक्त कोरोना से जूझ रहे हैं. वहीं सतीश प्रधान बीमार है और मुंबई में है. ऐसे में उम्मीद यह की जा रही है कि विनय कटियार, साध्वी ऋतंभरा, ब्रिज भूषण, शरण सिंह, चंपत राय, लल्लू सिंह, राम विलास वेदांती, आचार्य धर्मदास जी महाराज, आचार्य धर्मेंद्र जैसे लोग अदालत आएंगे और फैसले को सुनेंगे.

वहीं सबकी निगाहें इस बात पर टिकी है कि सीबीआई की विशेष अदालत क्या फैसला लेती है. अगर किसी को सजा हुई तो वह क्या होगी. कानून के जानकारों के मुताबिक इसने 120बी यानी साजिश के मामले में सबसे बड़ी 5 साल की सजा हो सकती है और बाकी मामलों में 3 साल तक की सजा हो सकती है. अगर 3 साल तक की सजा हुई तो फिर निचली अदालतें जमानत दे सकती है लेकिन अगर किसी को 5 साल की सजा हुई तो फिर उसके लिए हाईकोर्ट जाना पड़ेगा. माना यह जा रहा है कि फैसले को सुनने के लिए लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए जुड़ सकते हैं.
 

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