अयोध्या में करीब 28 साल पहले बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने ढहा दिया था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राममंदिर का निर्माण हो रहा है और पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भूमि पूजन करेंगे. ऐसे में रामजन्मभूमि से महज दो किलोमीटर की दूरी पर भी एक 'आलमगीर मस्जिद' है, जिसे शाह आलम मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है. इसका हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास ने अपनी जेब से पैसे देकर पुनर्निमाण कराने का काम किया है.
सैकड़ों साल पुरानी आलमगीर मस्जिद अपनी जर्जर हालत के चलते इसे 1992 की तरह ढहाने की भी जरूरत नहीं थी. वह खुद ही कभी भी ढह जाती. 2016 में अयोध्या प्रशासन ने दो टूक शब्दों में कहा 'या तो मस्जिद को संभाल लो या फिर हमें मजबूरन इसे ढहाना पड़ेगा, क्योंकि इससे आपके नमाजियों को खतरा है.' अब दिक्कत यह थी कि इस मस्जिद की मिलकियत किसी मुसलमान के पास नहीं बल्कि हिंदू समुदाय के पास थी और वो भी 'हनुमानगढ़ी' के पास थी.
ऐसे में बिना मालिक की इजाजत के मस्जिद का पुनर्निमाण कराना संभव नहीं था. ऐसे में अयोध्या के मुसलमान अपनी समस्या लेकर हनुमान गढ़ी के महंत के पास पहुंचे. महंत ने फरियाद सुनते ही, बिना कोई वक्त गंवाए कहा, जाइए मस्जिद का जीर्णोद्धार कीजिए. मुसलामानों ने मस्जिद की मरम्मत की तैयारी शुरू कर दी, लेकिन उन्हें जल्द ही एहसास हो गया था कि चंद मुस्लिम घरों की मदद से मस्जिद की तामीर हो पाना मुश्किल है ऐसे में बिना किसी बड़े सहयोग के ये संभव नहीं होगा.
हाशिम अंसारी के साथ महंत ज्ञानदास
आलमगीर मस्जिद के लिए हनुमानगढ़ी के महंत ज्ञानदास खुद आगे आए. उन्होंने अयोध्या मुस्लिम वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष सादिक अली बाबू खां को बुलाया, इसके बाद हनुमानगढ़ी के धन से मस्जिद को भव्य रूप देने का आदेश दिया. मस्जिद के लिए करीब 16 लाख रुपये हनुमानगढ़ी के महंत के द्वारा खर्च कर इस मस्जिद को सहेजने का काम किया गया है और करीब एक साल से ज्यादा इस मस्जिद को दोबारा से तामीर करने में लगे.
बता दें कि अयोध्या के स्वर्गद्वार मोहल्ले के अड़गड़ा चौराहे पर एक आलीशान मस्जिद आलमगीर बरबस ही आपको अपनी ओर आकर्षित करती नजर आएगी. यह मस्जिद शाहजहां के बाद मुगल बादशाह बने शाह आलम द्वितीय (1728-1806) ने बनवाई थी. मस्जिद का नाम बादशाह ने अपने पिता आलमगिरी के नाम पर रखा था, जिसे शाह आलम मस्जिद भी कहा जाता है.
साल 1803 में शाह आलम द्वितीय जिसे अली गौहर के नाम से भी जाना जाता था, उनकी पूरी सल्तनत को ब्रिटिश साम्राज्य ने जीत लिया. इसके बाद हनुमानगढ़ी के महंतों ने अपनी जमीन वापस लेने का मुकदमा किया. तब ब्रिटिश कोर्ट ने आदेश दिया कि जब तक मस्जिद में इबादत होती रहेगी, जमीन वापस नहीं ले सकते. इसी के चलते यह मस्जिद यहां पर बनी रही और जुलाई 2016 को जब इसकी खस्ता हालत के लिए नगर निगम ने नोटिस जारी किया तो हनुमानगढ़ी ने हाथ बढ़ाकर मस्जिद का फिर से निर्माण कराकर मिसाल पेश की.