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अयोध्या: राम मंदिर निर्माण के लिए टेस्टिंग में फेल हुए पिलर, जानिए अब क्या होगी तकनीक

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरु हो गया है. राम भक्तों को मंदिर का बेसब्री से इंतजार है. लेकिन, राम मंदिर के लिए 1200 पिलर्स की जो ड्रॉइंग तैयार की गई थी वह फिलहाल कामयाब होती नहीं दिख रही है.

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राम मंदिर की प्रस्तावित तस्वीर
राम मंदिर की प्रस्तावित तस्वीर
स्टोरी हाइलाइट्स
  • राम मंदिर निर्माण के लिए टेस्टिंग में फेल हुए पिलर
  • देश के बड़े विशेषज्ञ 15 दिनों से कर रहे हैं मीटिंग
  • अब तक नहीं निकला कोई उपाय

अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है. राम भक्तों को मंदिर का बेसब्री से इंतजार है. लेकिन, राम मंदिर के लिए 1200 पिलर्स की जो ड्रॉइंग तैयार की गई थी वह फिलहाल कामयाब होती नहीं दिख रही है. अब सवाल यह उठता है कि राम मंदिर निर्माण को लेकर ट्रस्ट, निर्माण एजेंसियों और विशेषज्ञों का अगला कदम क्या होगा. साथ ही ये सवाल भी है कि अब तक राम मंदिर निर्माण को लेकर क्या-क्या परेशानियां हैं. इसमें कितनी सफलता हाथ लगी है और कितनी विफलता.

सबसे पहले राम मंदिर की बुनियाद का स्ट्रक्चर तैयार करने के लिए जो डिजाइन बनाया गया उसमें 1200 पिलर जमीन के भीतर 125 फीट गहराई में बोर किए जाने थे. लिहाजा टेस्टिंग के लिए कुछ पिलर को जमीन के भीतर 125 फीट तक डाला गया उसको पूरी तरह मजबूत होने के लिए 28 से 30 दिन तक छोड़ा गया इसके बाद जब उस पर 700 टन का वजन डाला गया और भूकंप का परीक्षण करने के लिए भूकंप के झटके दिए गए तो इन परीक्षणों के दौरान यह पिलर अपने स्थान से खिसक और मुड़ गए. इसके बाद जिस ड्रॉइंग पर राम मंदिर का निर्माण किया जाना था उसे रोक दिया गया और नए सिरे से प्लानिंग के लिए आईआईटी दिल्ली आईआईटी गुवाहाटी, आईआईटी मुंबई, आईआईटी सूरत के वर्तमान और रिटायर्ड प्रोफेसर और वैज्ञानिकों के साथ टाटा, लार्सन और टूब्रो के विशेषज्ञों की एक जॉइंट टीम बनाई गई.

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इंट टीम की 15 दिनों तक कॉन्फ्रेंस
इस जॉइंट टीम की 15 दिनों तक लगातार कॉन्फ्रेंस चली, लेकिन अभी तक कोई नतीजा नहीं निकला है. ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय का कहना है कि इसको अच्छे से लेना चाहिए कि योग्य लोग ऐसे ही होते हैं. जहां मंदिर का गर्भ गृह बनना है उसके पश्चिम में जल का प्रवाह है सरयू नदी बहती है और जिस लेबल पर मंदिर बनना है उसके नीचे 50 फीट तक गहरा है. जब निर्माण एजेंसियां जमीन के नीचे परीक्षण के लिए गई तब पता चला कि 17 मीटर तक भराव है ओरिजिनल मिट्टी नहीं है. उसके नीचे जाने पर पता लगा भुरभुरी बालू है. कुछ भी सॉलिड नहीं है, इसलिए आईआईटी चेन्नई, आईआईटी मुंबई, आईआईटी दिल्ली, आईआईटी गुवाहाटी, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट रुड़की उसके वर्तमान और रिटायर्ड दोनों प्रकार के वैज्ञानिक और प्रोफेसर, टाटा और लार्सन एंड टूब्रो के अनुभवी लोग और ट्रस्ट द्वारा नियुक्त किए गए प्रोजेक्ट मैनेजर महाराष्ट्र औरंगाबाद के जगदीश के साथ मिलकर चर्चा कर रहे हैं.

 जल का प्रवाह मंदिर को नुकसान ना पहुंचाए, इसके लिए क्या करना है
 भुरभुरी बालू में टिकाऊ कैसे बने इसका निर्णय और कंक्रीट की आयु कई शताब्दियों तक कैसे बढ़ाई जाए यह अध्ययन के विषय हैं. हालांकि इस पर सभी ने मिलकर कुछ प्रस्ताव दिए हैं. लेकिन किसी पर भी अभी तक सहमति नहीं बन पाई है. दरअसल जहां पर राम मंदिर का निर्माण हो रहा है रहा है उसकी पश्चिम में सरयू नदी बहती है और इसीलिए भूमि के भीतर की मिट्टी रिसर्च के दौरान भुरभुरी और बलुई पाई गई. यही नहीं इसी बीच एक और चिंता भी सामने आ गई है. यह चिंता इस बात की है कि भूतकाल में जिस तरह अयोध्या में सरयू ने अपना रास्ता बदला उसी तरह अगर भविष्य में सरयू ने अपने जल प्रवाह का रास्ता बदल लिया तो राम मंदिर के लिए संकट ना खड़ा हो जाए. इसीलिए अब इसको लेकर भी रिसर्च हो रहा है.

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अभी तक यह तय हुआ है कि मंदिर के चारों तरफ कंक्रीट की दीवार यानी रिटेनिंग वॉल बनाई जाएगी. यानी पश्चिम दिशा में शताब्दियों के बाद भी अगर सरयू के पानी का प्रवाह अपनी दिशा मोड़ ले तो उसको रोकने के लिए जमीन के भीतर एक ऐसी दीवार  बनाई जाएगी जो पानी के प्रवाह को रोके रखे, हालांकि अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि यह दीवार कितनी गहरी और कितनी मोटी होगी लेकिन इस दीवार को जैसे नदी में बांध बनाया जाता है उसी तरह बनाया जाएगा.

 

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