असदुद्दीन ओवैसी पर हमला क्यों हुआ? क्या ओवैसी और उनके भाई के भाषण से नफरत ही है एकमात्र वजह? क्या जो दो आरोपी गिरफ्तार हुए हैं सिर्फ वही दोनों हमले में शामिल थे? या इस हमले के पीछे कोई ऐसी साजिश है, जिससे पर्दा उठना बाकी है? आजतक को मिली जानकारी के मुताबित फोरेंसिक टीम ने ओवैसी की गाड़ी से तीन बुलेट बरामद की है. जानिए इस केस में अब तक क्या खुलासे हुए.
छिजारसी से निकली गोलियों की धांय धांय से यूपी की सियासत सांय-सांय करने लगी है. आखिर इस हमले की कहानी क्या इतनी है जितना हमले के आरोपी ने सुनाई है या फिर इसके पीछे हैं और भी किरदार जिनका खुलासा होना बाकी है? इन सवालों के जवाब तो बाद में मिलेंगे लेकिन अभी आपको बताते हैं कि ओवैसी पर हमले की जांच में अब तक क्या सामने आया है?
ओवैसी की कार के निचले हिस्से पर क्यों चलाई थी गोली?
हमले के आरोपी सचिन और शुभम से पुलिस ने लंबी पूछताछ की है. आजतक के पास पुलिस में दर्ज बयान की एक्सक्लूसिव कॉपी है जिसमें सचिन और शुभम का कबूलनामा है, जिनका मकसद ओवैसी की जान लेना था. हमले के आरोपी सचिन के मुताबिक, 'गोलियां कार के निचली तरफ से चलाई गईं क्योंकि ओवैसी ने मुझे उस पर गोली चलाते हुए देखकर खुद को छिपाने की कोशिश की, नहीं तो मैं उसे मार डालता.
पूछताछ में सचिन ने कहा, 'मेरी पिस्टल की मैग्जीन में पांच गोली भरी थी. मैंने जैसे ही पहली गोली चलाई ओवैसी ने देख लिया और जान बचाने के लिए कार के नीचे बैठ गए. तब मैंने गाड़ी के नीचे की ओर गोली चलाई. मुझे उम्मीद थी कि ओवैसी मर गए होंगे.
दोनों ने साफ किया कि उनका किसी भी राजनीतिक पार्टी से संबंध नहीं हैं. ना ही इस हमले का कोई मास्टर माइंड हैं. दोनों दोस्तों ने मिलकर प्लान बनाया, जिसकी वजह उन्होंने ओवैसी और उनके भाई के भड़काऊ भाषण को बताया.
15 दिन से कर रहे थे ओवैसी का पीछा
पुलिस मे दर्ज बयान के मुताबिक दोनों 15 दिन से लगातार ओवैसी का पीछा कर रहे थे. चुनावी सभा करने के लिए जहां भी ओवैसी जाते थे, वहीं पर दोनों आरोपी हमला करने के इरादे से पहुंच जाते थे.मेरठ में भी हमला करने का इरादा था...लेकिन भीड़भाड़ के चलते मेरठ में हमला नहीं किया जा सका. ये दोनों सोशल मीडिया के जरिए ओवैसी की लोकेशन की रेकी करते थे. समर्थकों की पोस्ट के उसकी रैलियों की जानकारी इकट्ठा की. हमले के लिए किठौर से अवैध असलहा खरीदा गया था.
मेरठ में भीड़ ने हमले के मंसूबों पर पानी फेरा तो दोनों ने टोल प्लाजा के पास हमला करने की साजिश रची. मेरठ से अल्टो कार को तेज भगाकर ओवैसी से पहले टोल प्लाजा पहुंचे थे. फिर गाड़ी पास के जंगल में खड़ी की और ओवैसी की गाड़ी की पहचान की और जैसे ही गाड़ी टोल नाके पर पहुंची ताबड़तोड़ गोलियां चला दीं.
2018 में मिले थे सचिन और शुभम
2018 में शुभम और सचिन की मुलाकात हुई थी और कट्टरवादी विचारधारा के चलते दोनों की दोस्ती हो गई. जिसके बाद ओवैसी पर हमले का प्लान भी 2018 से बनाना शुरू कर दिया. बहरहाल आरोपियों के बयान के आधार पर पुलिस मामले की जांच कर रही है. मामले में बाकी पहलुओं को भी देखा जा रहा है. आरोपियों के परिजनों से सवाल जवाब किए जा रहे हैं उनकी कॉल डिटेल, लोकेशन और सोशल मीडिया अकाउंट के आधार पर बयानों को क्रॉस चेक किया जा रहा है.
ओवैसी देश की सियासत की ऐसी शख्सियत हैं जिनके निशाने पर सत्ताधारी बीजेपी भी है और विपक्षी नेता भी. बिहार, पश्चिम बंगाल के बाद ओवैसी यूपी के चुनावी मैदान में किस्मत आजमाने उतरे हैं. ऐसे में यूपी में ओवैसी पर हमले से देश के सबसे बड़े सूबे की सियासत पर क्या असर होगा, इस पर अटकलें तेज हैं और इधर ओवैसी की जुबान से उतनी ही तेजी से शोले बरस रहे हैं.
बड़ा सवाल ये है कि ओवैसी पर हमले का चुनाव पर क्या असर होगा? क्या मुस्लिम वोट ओवैसी के पक्ष में लामबंद होगा? अगर मुस्लिम ओवैसी के लिए लामबंद हुए तो जाहिर है इससे समाजवादी पार्टी को भारी नुकसान होगा.
मेरठ के सिवालखास में पिछले हफ्ते ओवैसी के डोर टू डोर कैम्पेन में भारी भीड़ उमड़ी. चप्पा चप्पा ओवैसी के समर्थकों से भर गया . सड़क पर पैर रखने की जगह नहीं थी . ओवैसी के प्रचार में उमड़ी भीड़ में जो जहां था वहीं ठहर गया. ओवैसी पिछले दिनों जिस भी मुस्लिम इलाके में प्रचार के लिए निकले वहां की तस्वीर कमोबेश एक जैसी ही दिखी. गाजियाबाद के डासना में ओवैसी वोट मांगने निकले तो सड़कों पर हजारों की भीड़ इकट्ठा हो गई. यानी ये भीड़ अगर वोट में बदल गई तो यूपी चुनाव की तस्वीर बदल सकती है. इन्हीं वोटों के बल पर ओवैसी ताल ठोंक कर यूपी के चुनाव मैदान में हैं.
100 सीटों पर लड़ रही ओवैसी की पार्टी
औवैसी ने इस बार 100 सीटों पर लड़ने का एलान किया है. जिसमें अभी तक वो 66 उम्मीदवार मैदान में उतार चुके हैं जिनमें 55 मुसलमान और 11 हिंदू शामिल हैं. अगर यूपी में मुस्लिम वोटों का समीकरण देखें तो उत्तर प्रदेश में 25 से 50 प्रतिशत मुस्लिम आबादी 85 सीटों पर है. मुस्लिम प्रभाव वाली ये 85 सीटें उत्तर प्रदेश के 14 जिलों में हैं जो पूरब से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में फैली हुई हैं.
2017 के चुनाव में इन 85 सीटों पर BJP को 40.4% वोटों के साथ 64 सीटें मिलीं. जबकि समाजवादी पार्टी को 23.4% वोटों के साथ 16 सीटें मिलीं. 2017 के आंकड़े बता रहे हैं कि इन 85 सीटों पर जहां 40% से अधिक मुस्लिम आबादी थी वहां समाजवादी पार्टी का प्रदर्शन बेहतर था.
अबकी बार अधिकतर सीटों पर मुस्लिम वोट अखिलेश यादव को मिलता दिख रहा है, लेकिन ओवैसी के लिए उमड़ी ये भी वोट में तब्दील हो गई तो अखिलेश का खेल बिगड़ सकता है. यही वजह है कि इस हमले के पीछे समाजवादी पार्टी को मिलीभगत दिख रही है.
समाजवादी पार्टी के डर के पीछे बिहार का उदाहरण सामने है. बिहार में ओवैसी भले ही 5 सीट जीतने में कामयाब हुए थे लेकिन उन्होंने RJD नेता तेजस्वी यादव का समीकरण बिगाड़ दिया था. इसलिए ओवैसी पर हमले के बाद उनके प्रति अगर जरा भी सहानुभूति मुसलमानों में पनपी तो इसका सीधा नुकसान अखिलेश के गठबंधन को हो सकता है.
(इनपुट - आजतक ब्यूरो)