इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए यूपी में जातिगत रैलियों के आयोजन पर रोक लगा दी है.
आज लखनऊ में कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए यूपी में जातिगत रैलियों के आयोजन पर अपने अगले आदेश तक के लिये रोक लगा दी है और राज्य के चारों प्रमुख दलों को नोटिस जारी किया हैं. इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने यह फैसला सुनाया कि जातिगत रैलियों के आयोजन से समाज बंटता है और इसका बुरा असर पड़ता है. अदालत ने इस बारे में राजनीतिक दलों को नोटिस जारी किया है.
गौरतलब है कि यूपी में अक्सर जाति आधारित रैलियां होती रहती हैं. आने वाले लोकसभा चुनावों में ब्राहमण वोटरों को लुभाने के लिये राज्य के प्रमुख दल बसपा पूरे प्रदेश में ब्राहमण सम्मेलन आयोजित कर रही है.
इस मामले की जनहित याचिका हाईकोर्ट में आठ जुलाई को दायर की गई थी. ये जनहित याचिका इस बात को लेकर थी कि जितने भी राजनैतिक दल है वो आजकल जातीय रैली बहुत करते हैं.
याचिकाकर्ता का कहना है कि, 'जातीय रैलियां जैसे ब्राहमण रैली, यादव रैली, कायस्थ रैली, कुर्मी रैली. इन जातीय रैलियों को रोकने के लिये ही मैंने जनहित याचिका दायर की थी जिसमें माननीय वरिष्ठ न्यायधीश उमानाथ सिंह और वरिष्ठ न्यायधीश महेन्द्र दयाल जी की खंडपीठ नें पूरे उत्तर प्रदेश में जातीय रैलियों पर रोक लगाते हुये सभी राजनैतिक दलों को नोटिस जारी करने के साथ ही बीएसपी, एसपी, कांग्रेस और बीजेपी को नोटिस जारी किया है. और माननीय हाई कोर्ट ने अगले आदेशों तक जातीय रैलियों पर रोक लगा दी है.'
याचिकाकर्ता मोतीलाल यादव ने यह भी मांग की थी कि जो पार्टियां जाति के आधार पर रैली आयोजित कर रही है उनपर प्रतिबंध भी लगाया जाए और दोषी पाने पर उन्हें चुनाव लड़ने से वंचित भी किया जाए.
याचिकाकर्ता वकील मोती लाल यादव कहते हैं, 'उसमें मैंने तीन चीजों की मांग की थी. पहली जो राजनैतिक दल हैं वो कोई भी जाति आधारित रैली न करें. चुनाव आयोग उनपर बैन लगाये अगर वो जातीय आधारित रैली करते है. दूसरी, जो लोग इसमें दोषी पाये जाते हैं उन्हें चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित करे चुनाव आयोग. और तीसरी, जो पार्टियां जाति के आधार पर रैलियां करते हुये दोषी पाई जाती हैं उनकी मान्यता चुनाव आयोग रद्द करें.'
गौरतलब है कि यूपी में अक्सर जाति आधारित रैलियां होती रहती हैं. बात चाहे बीएसपी की हो या सत्ताधारी एसपी की, ऐसी रैलियों के आयोजन में कोई पार्टी एक-दूसरे से पीछे नहीं रहना चाहती है. वोट बैंक की खातिर सियासी पार्टियां अब तक धड़ल्ले से जाति विशेष पर आधारित रैलियां करती आई हैं. हाल ही में बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने ब्राह्मण रैली का आयोजन किया था.
जाति आधारित राजनीति कांग्रेस की देन: BSP
यूपी में जाति आधारित रैलियों और सम्मेलनों पर रोक लगाये जाने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच के फैसले का मायावती की पार्टी बीएसपी ने भी स्वागत करते हुए इसे ऐतिहासिक करार दिया है. पार्टी के सीनियर लीडर और सांसद विजय बहादुर सिंह का कहना है की देश में जाति आधारित राजनीति की शुरुआत कांग्रेस पार्टी ने की थी. उन्होंने कहा, 'कांग्रेस ने अपने फायदे के लिए सियासत में टिकट से लेकर सरकार में मंत्री बनाने तक जाति का ढिंढोरा पीटा था. कांग्रेस की तर्ज पर ही क्षेत्रीय पार्टियों ने भी इसकी नकल की थी जो कि समाज के लिए बेहद खतरनाक था.' उनके मुताबिक अदालत के इस फैसले से उनकी पार्टी बीएसपी को कोई नुकसान नहीं होगा.