प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 2014 बेहद खास रहा. इस साल उनकी लीडरशिप में बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ केंद्र की सत्ता में आई. दिल्ली में देश की बागडोर संभालने के बाद मोदी के दम पर बीजेपी ने हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में भी जीत दर्ज की. प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, जापान, म्यांमार, भूटान की यात्रा पर गए. इस दौरान उनकी लोकप्रियता के चर्चे देशी और विदेशी मीडिया में खूब हुए. 2014 में नरेंद्र मोदी ग्लोबल लीडर के तौर पर उभरे. इसी का परिणाम रहा कि वह 'टाइम पर्सन ऑफ ईयर' की रेस में आए और रीडर्स पोल में टॉप पर रहे, लेकिन वह 'टाइम पर्सन ऑफ द ईयर' नहीं बन सके.
2014 में उनके फैंस को यही एक बात निराश कर गई. नहीं इस साल मोदी ने हर जगह अपने नाम का डंका ही बजवाया. सवाल उठने लगे कि अगर रीडर्स पोल को मानना ही नहीं था तो टाइम ने सर्वे कराया ही क्यों? जब रीडर्स पोल में मोदी जीते तो 'इबोला फाइटर्स' को टाइम पर्सन ऑफ द ईयर क्यों बनाया गया? ये सभी सवाल जायज हैं, लेकिन टाइम मैगजीन का भी अपना इतिहास रहा है. आइये जानते हैं उन फैक्टर्स को जिनकी वजह से मोदी नहीं बन पाए 'टाइम पर्सन ऑफ द ईयर'... रीडर्स पोल में क्या हुआ था? नरेंद्र मोदी को रीडर्स पोल में 16 प्रतिशत वोट मिले. टाइम के पोल में कुल 50 लाख वोट पड़े थे.
मोदी ने फर्ग्युसन प्रोटेस्टर्स, हांगकांग के लोकतंत्र समर्थक जोशुआ वॉन्ग, नोबेल विजेता मलाला यूसुफजई और इबोला फाइटर्स को हराकर पोल में सबसे ज्यादा वोट हासिल किए, लेकिन वह फाइनल शॉर्ट लिस्ट तक में शामिल नहीं किए गए. टाइम की शॉर्ट लिस्ट में जैक मा, टिम कुक, व्लादिमिर पुतिन, इबोला फाइटर्स आदि शामिल थे. 'इबोला फाइटर्स' क्यों, मोदी क्यों नहीं? टाइम मैगजीन की मैनेजिंग एडिटर नैंसी गिब्स ने कहा, 'इबोला एक वॉर है और चेतावनी भी. इबोला की रोकथाम में ग्लोबल हेल्थ सिस्टम फेल रहा. ऐसे में कुछ महिला-पुरुष सामने आए और इस बीमारी से लड़ने का भरोसा दिलाया. उनका त्याग और समर्पण भाव बहुत बड़ी बात रही, इसलिए इबोला फाइटर्स टाइम पर्सन ऑफ द ईयर बने'.
2007 के बाद इन्हें चुना गया 'पर्सन ऑफ द ईयर'
2007 के बाद टाइम ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमिर पुतिन, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा, मार्क जकरबर्ग, पोप फ्रांसिस जैसी हस्तियों को पर्सन ऑफ द ईयर चुना.
टाइम की हकीकत क्या है?
टाइम के अनुसार अगर कोई व्यक्ति विशेष, ग्रुप, आइडिया और ऑब्जेक्ट प्रभाव छोड़ता है, तो उसे पर्सन् ऑफ द ईयर चुना जा सकता है. इस हिसाब से देखें तो मोदी सबसे भारी थे, लेकिन एक सच यह भी है कि इन सभी के केंद्र में अमेरिका होना चाहिए. टाइम ने अब तक जिन लोगों को यह अवॉर्ड दिया, उनमें अमेरिका केंद्र में था. भले ही मोदी का मेडिसन स्क्वायर गार्डन पर रॉक स्टार जैसा वेलकम हुआ, लेकिन अमेरिका पर उसका प्रभाव ज्यादा नहीं था. वह भारतीय मूल के लोगों के लिए जरूर अहम था. जिस प्रकार से टिम कुक 'गे' के रूप में सामने आए, फर्ग्युसन, इबोला, पुतिन, ओबामा ये सभी अमेरिका को छूते हैं. ऐसे में मोदी के 'पर्सन ऑफ द ईयर' चुने जाने की संभावना बेहद कम थी.
पहले भी रीडर्स पोल को दरकिनार कर चुकी है टाइम
यह पहली बार नहीं है जब रीडर्स पोल के विनर को पर्सन ऑफ द ईयर न मिला हो. 1998 के रीडर्स पोल में WWE रेसलर मिक फॉली के जीतने की संभावना थी, लेकिन तब खबरें आईं, टाइम ने उन्हें पोल लिस्ट से हटा दिया था. हालांकि ये खबरें पुष्ट नहीं थीं. इसी प्रकार से 2006 में अमेरिका के कट्टर दुश्मन ह्यूगो शावेज को 35 प्रतिशत वोट मिले थे. इसी पोल में यूएस के दूसरे दुश्मन ईरान के पूर्व राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद दूसरे नंबर पर आए थे, लेकिन दोनों खाली हाथ रहे.
वोटिंग नहीं, एडिटोरियल पॉलिसी का मामला है
'टाइम पर्सन ऑफ द ईयर' के लिए वोटिंग कराई जाती है, यह बात सच है, लेकिन फाइनल कॉल एक कमेटी ही लेती है. टाइम के एडिटर रह चुके जिम केली कहते हैं कि मोदी हार गए, क्योंकि एडिटर्स ग्रुप ने उन्हें शॉर्टलिस्ट कर दिया था. 'पर्सन ऑफ द ईयर' वोटिंग से नहीं चुना जाना था. यह फैसला तो टाइम मैगजीन के एडिटर्स की च्वाइस का है. लास्ट कॉल उन्हें लेना होता है.
'पर्सन ऑफ ईयर' के बारे में दिलचस्प बातें
- टाइम मैगजीन की शुरुआत 1927 में हुई थी. इसी साल चार्ल्स लिंडनबर्ग अटलांटिक महासागर को बगैर रुके पार करने वाले विश्व के पहले अकेले पायलट बने थे.
- चार्ल्स पर कवर स्टोरी नहीं करने की वजह से मैगजीन की काफी आलोचना हो रही थी. मैगजीन ने पूरे झमेले से बचने के लिए चार्ल्स पर कवर स्टोरी की, जिसे 'मैन ऑफ द ईयर' के नाम से छापा गया था. यहीं से साल के न्यूज मेकर के नाम की घोषणा की परंपरा शुरू हुई.
- टाइम मैगजीन 1999 तक 'मैन ऑफ ईयर' अवॉर्ड ही देता थी, जिसे बाद में 'पर्सन ऑफ द ईयर' कर दिया गया
-1930 में महात्मा गांधी को 'पर्सन ऑफ द ईयर', 'मैन ऑफ द ईयर' नाम से अवॉर्ड दिया गया था.
- टाइम ने जब से इस अवॉर्ड की शुरुआत की, तब से लेकर अब तक अपने कार्यकाल के दौरान कम से कम एक बार हर अमेरिकी राष्ट्रपति 'पर्सन ऑफ द ईयर' चुना गया
- 1989 में टाइम ने मिखाइल गोर्वाचोव को 'मैन ऑफ डेकेड' चुना था.
- 1999 में एल्बर्ट आइंस्टाइन को टाइम ने 'मैन ऑफ द सेंचुरी' चुना था. आपको जानकर हैरानी होगी कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट और महात्मा गांधी भी इस रेस में शामिल थे और रनर-अप चुने गए थे.