मोदी और भागवत एक जैसी भाषा बोल रहे हैं. नसीहतें दी जा रही हैं. हिदायतों का दौर चल रहा है. मोदी कह रहे हैं कि मेरी सरकार किसी धार्मिक समूह के खिलाफ किसी भी तरह की हिंसा बर्दाश्त नहीं करेगी . उधर, भागवत भी पीछे नहीं. उन्होंने ज्यादा बच्चे पैदा करने की सलाह देने वालों को आड़े हाथों लिया. साफ कह दिया कि हमारी माताएं फैक्ट्री नहीं हैं. मगर क्या हाल फिलहाल इन नसीहतों का कोई फायदा नजर आता है?
दिल्ली के विधान सभा चुनाव से पहले तीन माह के अंदर बीजेपी नेताओं और कुछ हिंदूवादी नेताओं के बेतुके बयान आए थे. उन बयानों पर विपक्षी दलों और आम जनमानस ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की. मगर बयान देने वालों को लगता रहा कि चर्चाओं में बने रहने का ये आसान तरीका है. जब कुछ ना हो तो बस एक समुदाय विशेष को निशाना बनाकर बयान दे दो. केन्द्र में बीजेपी की सत्ता आने के बाद से लगातार ऐसे बयान आते रहे हैं.
मोदी ने ऐसे बयानों पर नाराज़गी तो जताई लेकिन काफी दिनों तक चुप्पी साधे रखी. ओबामा ने अमेरिका लौटकर भारत पर टिप्पणी की. ओबामा ने कहा कि भारत की धार्मिक असहिष्णुता का आलम यह है कि महात्मा गांधी देखते तो हैरान रह जाते. अमेरिकी अखबार न्यूयॉर्क टाइम्स ने मोदी की चुप्पी को खतरनाक बताया था. मोदी ने अब इस मामले पर ज़बान खोली है. कड़ा रुख दिखाया है. अपनी सरकार का धार्मिक हिंसा पर एजेंडा भी साफ कर दिया है.
अब बीजेपी और मोदी की नजर बिहार पर है. कुछ माह बाद वहां विधानसभा चुनाव होने है. दिल्ली की हार के बाद पार्टी ने बिहार को लेकर नई रणनीति पर काम शुरु किया है. मोदी और भागवत की नसीहत को बिहार चुनाव से जोड़कर देखा जा सकता है. प्रधानमंत्री का कहना है कि भारत के संविधान में हर धर्म के लिए सम्मान है और लोगों को धार्मिक आस्था की पूरी आजादी है. सभी धर्मों के प्रति आदर-सम्मान रखना ही हमारी सही पहचान है. मोहन भागवत भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का समर्थन करते नजर आ रहे हैं.
विहिप के सुर भी बदले हुए हैं. 'लव जिहाद' और 'घर वापसी' जैसे विवादित मुद्दों पर जहरीले बयानों के लिए मशहूर वीएचपी ने अलग स्टैंड लिया है. वीएचपी नेता सुरेंद्र जैन सलाह दे रहे हैं कि विवादित बयान देकर प्रधानमंत्री मोदी को परेशान करने वाले हिंदू संगठनों को बाज आना चाहिए. दरअसल, मोदी और संघ अब समझ चुके हैं कि कभी-कभी ज्यादा बोलने वाले नेता सरकार और पार्टी के लिए नुकसानदायक बन जाते हैं.
लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने मोदी के सहारे उम्मीद से ज्यादा बहुमत हासिल किया. महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में भी सरकार बना ली. जम्मू-कश्मीर में सत्ता के समीकरण बनाने की कोशिश हो रही है. ऐसे में अब इन नसीहतों और हिदायतों को देखकर लगता है, जैसे भगवा ब्रिगेड ये संदेश देना चाहती है कि मोदी को अच्छे से काम करने दिया जाए. सरकार अगर काम नहीं करेगी तो जनता को बताने के लिए होगा क्या? और काम ही नहीं होगा तो लहर कहां से आएगी?