इंसान पैसे के लिए कितना गिर सकता है, ये पीलीभीत टाइगर रिजर्व में पनप रही शर्मनाक प्रवृत्ति से समझा जा सकता है. आरोप है कि यहां कुछ परिवार अपने बुजुर्गों को बाघ-भालू जैसे जंगली जानवरों का शिकार होने के लिए जंगल में भेज रहे हैं. शिकार होने के बाद अगर लाश जंगल में मिलती है तो कोई सरकारी मुआवजा नहीं मिलता. लेकिन अगर लाश जंगल क्षेत्र के बाहर किसी खेत या मैदान में मिलती है तो परिवार को लाखों में मुआवजा मिलता है. बता दें कि हाल के समय मे बुजुर्गों पर जंगली जानवरों के हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है. इसी वजह से ऐसा शक जताया जा रहा है.
बीते 8 महीने में 15 लोग जंगली जानवरों के शिकार हुए हैं. इनमें 14 हमले बाघ और 1 हमला भालू ने किया. इनमें 7 घटनाएं जंगल क्षेत्र में और आठ घटनाएं जंगल से बाहर हुईं. जंगल से बाहर हुई घटनाओं में वन विभाग 50 लाख रुपये का मुआवजा दे चुका हैं. इसके अलावा जिला प्रशासन ने भी कृषक दुर्घटना बीमा के तहत मुआवजा दिया है.
बुजुर्गों के जंगली जानवरों के शिकार होने पर शक ने एक वीडियो के वायरल होने पर भी जोर पकड़ा है. वीडियो में कुछ लोग जंगल क्षेत्र से एक लाश को उठाकर गन्ने के खेत में डाल रहे हैं. संदेह है कि ये इसलिए किया गया कि सरकारी मुआवजा मिल सके.
24 अक्टूबर 2016 से 1 जुलाई 2017 से अब तक 15 लोग जंगली जानवरों का शिकार बन चुके हैं. इनमें खेत या मैदान में लाश मिलने पर मुआवजा दिए जाने वाली 8 घटनाएं हैं. कुल 15 लोग जो हमलों के शिकार हुए हैं उनके नाम हैं-
24 अक्टूबर 2016
बेनी राम, मरौरी गांव
18 नवंबर 2016
लालाराम, मारौरी गांव
27 नवंबर 2016
बाबूराम, पिपरिया संतोष गांव
11 दिसम्बर 2016
अहमद खां, डग्गा गांव
16 जनवरी 2017
राजीव, पिपरिया संतोष गांव
5 फरवरी 2017
धनीराम, कुंवर गांव
7 फरवरी 2017
नन्हे लाल, पिपरया करम गांव
11 फरवरी 2017
गंगाराम, कलीनगर गांव
16 फरवरी 2017
कलावती, बनकटी गांव
5 मार्च 2017
ब्रहमस्वरूप, रम्पूरा गांव
31 मार्च 2017
श्याम बिहारी, मथना गांव
9 मई 2017
तारा चंद, बनकटी गांव
17 जून 2017
केवल प्रसाद, रूपपुर गांव
20 जून 2017
मिही लाल, बिठौरा खुर्द गांव
1 जुलाई 2017
नन्की देवी, मैथी गांव
कलीम अतहर के मुताबिक 17 जून को केवल प्रसाद, 20 जून को मिठ्ठीलाल और 1 जुलाई को ननकी देवी, बाघ के हमलों का शिकार हुए. इन तीनों की उम्र 45 से 60 साल के बीच है. सवाल ये है कि बुजुर्गों को जंगल या खेत में कैसे भेजा.
दूसरी ओर स्थानीय लोग इस तरह के आरोपों को पूरी तरह गलत बता रहे हैं. उनका कहना है कि कोई अपने ही बड़े-बूढ़ों को कैसे मौत के मुंह में भेज सकता है. ग्रामीणों के मुताबिक जवान, बूढ़े सभी खेत पर काम के लिए जाते हैं. बाघ के आने पर जवान तो भाग जाते हैं लेकिन बुजुर्ग भाग नहीं पाते.
ग्रामीणों के मुताबिक 1 जुलाई को 60 वर्षीय नन्की देवी अपने खेत पर धान की रोपाई कर रही थी. तभी नन्की देवी को बाघ खेत से उठाकर जंगल में ले गया और मार दिया. इसी तरह 20 जून को 45 वर्षीय मिही लाल को खेत पर घास काटते वक्त बाघ उठा कर ले गया. 17 जून को 55 वर्षीय केवल प्रसाद को गन्ने के खेत से बाघ उठा कर ले गया. ये तीनों घटनाएं संदेह के घेरे में हैं.
जानवरों के हमलों में मारे गए 15 लोगों में से 4 की उम्र ही 18 से 35 वर्ष थी. बाकी 11 की उम्र 45 से 65 वर्ष के बीच थी. नन्की देवी, मिही लाल और केवल प्रसाद के परिजनों को अभी मुआवजा नहीं मिला है. पीलीभीत के डीएफओ कैलाश प्रकाश के मुताबिक जांच कराई जा रही है. उन्होंने मुआवजे के लिए स्थान बदले जाने की संभावना से इनकार नहीं किया. डीएफओ के मुताबिक कुछ मामलों में वन विभाग की टीम पहुंचने से पहले ही ग्रामीण पहुंच गए और शव को उठा लिया गया, जो कि गलत है.
बरेली मंडल के मुख्य वन संरक्षक अरविंद गुप्ता का कहना है कि बाघों के हमले मे अधिकतर बुजुर्गों की मौत हुई है. उन्होंने मुआवजे के लिए मृतकों का स्थान बदले जाने जैसे आरोपो की जांच कराने की बात कही है.