गृह मंत्री पी चिदंबरम ने शुक्रवार को कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला किसी भी तरीके से 1992 में हुए बाबरी मस्जिद के विध्वंस को उचित नहीं ठहराता है और यह अब भी ‘अस्वीकार्य’ और ‘आपराधिक कृत्य’ बना हुआ है.
चिदंबरम ने संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि इस फैसले का उस कृत्य से कोई लेना-देना नहीं है जिसे छह दिसंबर 1992 को अंजाम दिया गया था. उन्होंने कहा, ‘मेरी नजर में यह अब भी आपराधिक कृत्य बना हुआ है. 1992 में जो कुछ भी हुआ था, कृपया उसे उचित ठहराने के किसी भी प्रयास को (लखनऊ पीठ के) न्यायाधीशों के हवाले से मत दीजिए.’
चिदंबरम उन सवालों का जवाब दे रहे थे जिनमें उनसे पूछा गया था कि क्या इलाहाबाद उच्च न्यायालय के कल के फैसले से बाबरी मस्जिद विध्वंस से जुड़े मामले हल्के हुए हैं. अयोध्या मुद्दे पर फैसले पर लोगों की ‘सम्मानजनक और मर्यादित’ प्रतिक्रिया पर संतोष जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि केंद्र की यथास्थिति बरकरार रखने और समूचे देश में कानून व्यवस्था को कायम रखने के अलावा कोई भूमिका नहीं है.
चिदंबरम ने कहा कि ऐसी धारणा है कि विवाद पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के फैसले को उच्चतम न्यायालय में ले जाया जाएगा और वह अंतरिम आदेश पारित कर सकता है और इसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर सकता है. उन्होंने कहा, ‘केंद्र की अब कोई भूमिका नहीं है. न्यायाधीशों ने स्थगनादेश दिया है और यथास्थिति बरकरार रखने को कहा है. फैसला फिलहाल प्रभावी नहीं है.’ {mospagebreak}
चिदंबरम ने कहा, ‘फैसला हालांकि महत्वपूर्ण दस्तावेज है. लेकिन यह प्रभावी नहीं है. ऐसी धारणा है कि अपील (उच्चतम न्यायालय में) दायर की जा सकती है. ऐसी धारणा है कि उच्चतम न्यायालय अंतरिम आदेश पारित करेगा. इसलिए, अब उस फैसले पर टिप्पणी करने की कोई आवश्यकता नहीं है जो उच्चतम न्यायालय के 1994 के आदेश के अनुरूप अभी प्रभावी नहीं है और जिसपर यथास्थिति कायम है.’
जब इस विषय पर उनसे कई सवाल पूछे गए तो उन्होंने मीडिया और टेलीविजन चैनलों से अपील की कि वे फैसले की ‘अति व्याख्या’ नहीं करें और इसपर जरूरत से ज्यादा समय और स्थान न दें. कानून व्यवस्था की स्थिति पर उन्होंने कहा कि देश काफी शांतिपूर्ण रहा है और कहीं से भी किसी भी घटना का समाचार नहीं है.