नई पीढ़ी के नौजवान शायद उन्हें नाम से ना जानते हों लेकिन उनके गानों पर आज भी सब झूम उठते हैं. हम बात कर रहे हैं अपने दौर की मशहूर गायिका शमशाद बेगम की. अब वो हमारे बीच नहीं रहीं. कल मुंबई में शमशाद बेग़म का इंतकाल हो गया. परिवार के लोगों ने कल ही उन्हें सुपुर्द-ए-ख़ाक भी कर दिया. लेकिन उनके निधन की खबर आज सामने आई. वे 94 साल की थीं. मुंबई के एक अस्पताल में शमशाद बेगम ने आखिरी सांस ली.
शमशाद बेगम की बेटी ऊषा ने बताया, 'वह पिछले कुछ महीनों से अस्वस्थ थीं और अस्पताल में थीं. पिछली रात उनका निधन हो गया. उनके जनाजे में सिर्फ कुछ मित्र मौजूद थे.'
14 अप्रैल 1919 को अमृतसर में शमशाद बेगम का जन्म हुआ था. अपनी गायकी का करियर उन्होंने पेशावर रेडियो से शुरू किया था. सारंगी के उस्ताद हुसैन बख्श साहब से उन्होंने संगीत की शुरुआती शिक्षा ली. संगीतकार गुलाम मोहम्मद की धुनों को अपनी आवाज़ देकर शमशाद बेग़म ने काफ़ी शोहरत पाई. 1944 में वे मुंबई आ गईं और अपनी आवाज़ के दम पर बॉलीवुड में छा गईं. 2009 में उन्हें पद्मभूषम सम्मान से नवाज़ा गया. साल 1955 में अपने पति गणपत लाल बट्टो के निधन के बाद से शमशाद मुंबई में अपनी बेटी ऊषा रात्रा और दामाद के साथ रह रही थीं.
हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में जब शमशाद बेगम की एंट्री हुई तो उनकी आवाज़, उस ज़माने की गायिकाओं से ज़रा हटकर थी. उन्होंने अपने दौर के बेहतरीन संगीतकारों के साथ काम किया. यही वजह है कि उनके गाए नग़मे आज भी लोगों की ज़ुबान पर हैं. शमशाद बेगम द्वारा गाए चर्चित गीतों में 'कभी आर कभी पार...', 'कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना...', 'सइयां दिल में आना रे...', 'ले के पहला-पहला प्यार...', 'बूझ मेरा क्या नाम रे...' और 'छोड़ बाबुल का घर...' शामिल हैं.
'आज तक लोकप्रिय हैं शमशाद बेगम'
गायिका शमशाद बेगम के निधन को संगीत जगत की एक अपूर्णीय क्षति बताते हुए सूचना और प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने आज कहा कि उनकी गायन शैली ने नए प्रतिमान स्थापित किए थे.
एक संदेश में तिवारी ने कहा है, 'फिल्म उद्योग ने एक प्रतिभाशाली गायिका को खो दिया. शमशाद जी की गायन शैली ने नए प्रतिमान स्थापित किए थे.दमदार गीतों के साथ उनकी सुरीली आवाज ने हमें ऐसे गीत दिए हैं जो आज तक लोकप्रिय हैं.'
उन्होंने कहा, 'उनकी मौत एक अपूर्णीय क्षति है, एक ऐसा शून्य जिसे भरना मुश्किल है.'