लड़कियों और महिलाओं पर आये दिन बढ़ रहे तेजाबी हमलों के मुद्दे पर राज्य सरकारों के उदासीन रवैये पर सुप्रीम कोर्ट नाराज है. एसिड अटैक की घटनाओं के बढ़ रहे ग्राफ पर सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकारों को फटकार लगाई है.
कोर्ट ने कहा है कि इन मामलों की गंभीरता के बावजूद सरकारों के रुख में संदीजगी नहीं है. जबकि आए दिन लडकियां इसकी शिकार हो रही हैं. लोग मर रहे है और आपको इसकी परवाह नहीं है. सरकारों का ये रवैया बर्दाश्त के काबिल नहीं है. यदि केन्द्र और राज्य सरकारों ने एक हफ्ते के भीतर ऐक्शन प्लान नहीं बताया तो अदालत इस मुद्दे पर अपना फरमान सुना देगी.
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान एसिड अटैक की कई पीडित युवतियां भी मौजूद थीं. उन्होंने बताया कि उनके साथ प्रशासन का रवैया कैसा रहता है.
अदालत की नाराजगी की बड़ी वजह ये भी थी कि दो महीने पहले 16 अप्रैल को कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिए थे कि तेजाब की खुलेआम खरीद फरोख्त पर प्रतिबंध लगाने से पहले इसकी बिक्री पर नियंत्रण की संभावनाएं तलाशें. लेकिन सरकारों ने कोर्ट के इस आदेश को लेकर अब तक ना तो कोई कार्रवाई की और ना ही इस बाबत कोर्ट को कुछ बताया.
कोर्ट दिल्ली में 2006 में तेजाब के हमले में घायल नाबालिग लक्ष्मी की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था. तेजाब के इस हमले में लक्ष्मी के हाथ, चेहरा और शरीर के दूसरे हिस्से झुलस गये थे. इस याचिका में लक्ष्मी ने नया कानून बनाने या फिर भारतीय दंड संहिता, साक्ष्य कानून और अपराध प्रक्रिया संहिता में ही उचित संशोधन करके ऐसे हमलों से निबटने का प्रावधान करने और पीड़ितों के लिये मुआवजे की व्यवस्था का अनुरोध किया था.
याचिका के अनुसार लक्ष्मी पर तुगलक रोड के निकट तीन युवकों ने तेजाब फेंक दिया था क्योंकि उसने इनमें से एक से शादी करने से इनकार कर दिया था. इस मामले में आरोपियों पर हत्या के आरोप का मुकदमा चल रहा है और इनमें से दो व्यक्ति इस समय जमानत पर हैं.
कोर्ट ने पिछले साल 29 अप्रैल को गृह मंत्रालय से कहा था कि इस मामले में उचित नीति तैयार करने के इरादे से राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों के साथ तालमेल किया जाये. कोर्ट ने तेजाब के हमले के पीड़ितों को इलाज के लिये समुचित मुआवजा देने और उनके पुनर्वास के लिये उचित योजना के बारे में केन्द्र और राज्य सरकारों से भी जवाब तलब किये थे.