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राज्यसभा: हरिवंश सिंह का पहला कार्यकाल पूरा, फिर मिलेगा उपसभापति बनने का मौका?

हरिवंश नारायण सिंह दो साल पहले अगस्त 2018 में एनडीए के प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा के उपसभापति चुने गए थे. उनकी राज्यसभा सदस्यता का कार्यकाल इसी महीने समाप्त हो जाने के कारण हरिवंश के उपसभापति पद का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है. ऐसे में एक बार फिर राज्यसभा के उपसभापति पद के लिए चुनाव होगा.

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हरिवंश नारायण सिंह का राज्यसभा के उपसभापति का कार्यकाल खत्म
हरिवंश नारायण सिंह का राज्यसभा के उपसभापति का कार्यकाल खत्म

  • हरिवंश नारायण राज्यसभा में दूसरी बार निर्विरोध चुने गए

  • हरिवंश के राज्यसभा का पहला कार्यकाल 9 अप्रैल को पूरा

जेडीयू नेता हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा सदस्य के तौर पर निर्विरोध चुने जा चुके हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरों को देखते हुए अभी तक वह सदन की सदस्यता नहीं ले सके हैं. हरिवंश सिंह की राज्यसभा सदस्यता का पहला कार्यकाल नौ अप्रैल को पूरा हो गया था, जिसके साथ ही उनके राज्यसभा उपसभापति का कार्यकाल भी पूरा हो गया है. ऐसे में उपसभापति पद के लिए दोबारा से चुनाव होगा और अब देखना होगा कि हरिवंश नारायण सिंह को दोबारा से मौका मिलेगा या नहीं?

हरिवंश नारायण सिंह दो साल पहले अगस्त 2018 में एनडीए के प्रत्याशी के तौर पर राज्यसभा के उपसभापति चुने गए थे. उनकी राज्यसभा सदस्यता का कार्यकाल इसी महीने समाप्त हो जाने के कारण हरिवंश के उपसभापति पद का कार्यकाल भी समाप्त हो गया है. ऐसे में आगे आयोजित होने वाले संसद सत्र में उपसभापति का चुनाव राज्यसभा के एजेंडे में शामिल होगा.

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राज्यसभा के उपसभापति का पद एक संवैधानिक पद है. भारत के संविधान के आर्टिकल 89 में कहा गया है कि राज्यसभा अपने एक सांसद को उपसभापति पद के लिए चुन सकती है, जब यह पद खाली हो. उपसभापति का पद इस्तीफा, पद से हटाए जाने या इस पद पर आसीन राज्यसभा सांसद का कार्यकाल खत्म होने के बाद खाली हो जाता है.

मौजूदा उपसभापति हरिवंश नारायण का कार्यकाल 9 अप्रैल को खत्म हो गया था, जिस कारण यह पद अभी खाली है. उपसभापति पद के लिए हरिवंश नारायण सिंह को दोबारा से एनडीए का प्रत्याशी बनाया जाएगा या नहीं यह तय नहीं है. वहीं, ये भी देखना होगा कि इस बार विपक्ष उपसभापति के लिए अपना प्रत्याशी मैदान में उतारता है कि नहीं. 2018 में हरिवंश के खिलाफ कांग्रेस ने बीके हरिप्रसाद को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन वह जीत नहीं सके थे.

उपसभापति चुनने का नियम

राज्यसभा उपसभापति का चुनाव करने की प्रक्रिया बहुत ही सहज और सरल है. कोई भी राज्यसभा सांसद इस संवैधानिक पद के लिए अपने किसी साथी सांसद के नाम का प्रस्ताव आगे बढ़ा सकता है. इस प्रस्ताव पर किसी दूसरे सांसद का समर्थन भी जरूरी है. इसके साथ ही प्रस्ताव को आगे बढ़ाने वाले सदस्य को सांसद द्वारा हस्ताक्षरित एक घोषणा प्रस्तुत करनी होती है जिनका नाम वह प्रस्तावित कर रहा है. इसमें इस बात का उल्लेख रहता है कि निवार्चित होने पर वह उपसभापति के रूप में सेवा करने के लिए तैयार हैं. प्रत्येक सांसद को केवल एक प्रस्ताव को आगे बढ़ाने या उसके समर्थन की अनुमति है.

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अगर किसी प्रस्ताव में एक से ज्यादा सांसद के नाम हैं तो इस स्थिति में सदन का बहुमत तय करेगा कि कौन राज्यसभा के उपसभापति के लिए चुना जाएगा. अगर सभी राजनीतिक दलों में किसी एक सांसद के नाम को लेकर आम सहमति बन जाती है, तो इस स्थिति में सांसद को सर्वसम्मति से राज्यसभा का उपसभापति चुन लिया जाएगा.

उपसभापति के लिए हुए अबतक के चुनाव

राज्यसभा उपसभापति पद के लिए अबतक कुल 19 बार चुनाव हुए हैं और अब 20वां चुनाव होगा. इनमें से 14 मौकों पर सर्वसम्मति से इस पद के लिए उम्मीदवार को चुन लिया गया, मतलब चुनाव की नौबत ही नहीं आई. 1969 में पहली बार उपसभापति के पद के लिए चुनाव हुआ था.

राज्यसभा उपसभापति को पूरी तरह से राज्यसभा के सांसद ही निवार्चित करते हैं. यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण पद है. उपसभापति को सभापति/उपराष्ट्रपति की गैरमौजूदगी में राज्यसभा का संचालन करना होता है. इसके साथ ही इस पद पर आसीन सांसद को तटस्थता के साथ उच्च सदन की कार्यवाही को भी सुचारू रूप से चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है.

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