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आरटीआई कानून में बदलाव की जरूरत: बालकृष्णन

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष केजी बालकृष्णन ने शुक्रवार को आरटीआई कानून में बदलाव का पक्ष लेते हुए कहा कि इस कानून में कुछ खामियां हैं जिनका बड़े स्तर पर दुरुपयोग हो रहा है.

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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) के अध्यक्ष केजी बालकृष्णन ने शुक्रवार को आरटीआई कानून में बदलाव का पक्ष लेते हुए कहा कि इस कानून में कुछ खामियां हैं जिनका बड़े स्तर पर दुरुपयोग हो रहा है.

इससे पहले भारत के प्रधान न्यायाधीश के बतौर अपने कार्यकाल में वह कह चुके हैं कि उनका पद इस कानून के दायरे में नहीं आता. बालकृष्णन ने यह भी कहा कि यह आरटीआई कानून के अनेक प्रावधानों में अंतरावलोकन का समय है.

एनएचआरसी अध्यक्ष का कहना था कि संभवत: यह विधेयक संसद में जल्दबाजी में पारित किया गया. पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘अन्य किसी विधेयक की तरह कुछ लोगों द्वारा बड़े स्तर पर इसका (आरटीआई कानून) दुरुपयोग किया जाता है. सूचना के अधिकार की तरह ही निजता का अधिकार भी एक महत्वपूर्ण अधिकार है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता महत्वपूर्ण है. ये सभी संविधान के आधार पर हैं. आरटीआई कानून की तरह ही अन्य संवैधानिक सिद्धांतों का भी संरक्षण होना चाहिए.’

बालकृष्णन ‘सूचना का अधिकार अच्छे शासन की कुंजी’ पर सचिवालय प्रशिक्षण और प्रबंधन संस्थान द्वारा आयोजित सेमिनार को संबोधित कर रहे थे. उन्होंने कहा कि यह कानून बहुत अद्भुत है और इसका भारतीय समाज पर अच्छा प्रभाव पड़ा है लेकिन वास्तव में यह कानून के प्रावधानों का एक तरह का दुरुपयोग है जो समस्या पैदा करता है.

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उन्होंने कहा, ‘कानून में खामियों को ढकने के लिए बहुत प्रबल नहीं बल्कि कास्मेटिक बदलाव जरूरी हैं.’ बालकृष्णन ने मई में प्रधान न्यायाधीश का पद छोड़ा था और वह अपने कार्यकाल में लगातार कहते रहे कि उनका कार्यालय इस कानून के दायरे में नहीं आता और इसलिए इसके तहत न्यायाधीशों की संपत्ति जैसी जानकारियों का खुलासा नहीं किया जा सकता.

दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 जनवरी को अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा था कि भारत के प्रधान न्यायाधीश का पद आरटीआई कानून के दायरे में आता है जिस पर उच्चतम न्यायालय ने इस फैसले को चुनौती देते हुए अपने ही समक्ष एक याचिका दाखिल की थी.

बालकृष्णन ने कहा कि सूचना का अधिकार कानून वाले 50 से अधिक देशों में न्यायपालिका को पूरी तरह इस कानून के दायरे से अलग रखा गया है और केवल भारत में ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा, ‘मैंने अपने पहले के पद पर भी इस बारे में कुछ हद तक लड़ाई लड़ी थी.

न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में कोई जानकारी मुख्य न्यायाधीश की गतिविधियों और साख के बारे में हमारे पास लिखित जानकारी होती है. और हम इसे जनता से साझा नहीं कर सकते. मैं सख्ती से इसका विरोध करता हूं. लेकिन इस कानून के प्रावधानों के तहत हमें इनमें से कुछ जानकारी साझा करनी पड़ी. इसका दुरुपयोग हो सकता था.’

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