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LOC के पास स्‍कूल शुरू हुआ, गोलीबारी जिंदगी का हिस्‍सा

एलओसी के पास यह आखिरी स्‍कूल है और यहां के अध्‍यापक व बच्‍चे हमेशा तोप के गोलों के साए में रहते हैं, लेकिन इससे न तो उनकी कक्षाओं पर और न ही समय सारणी पर कोई प्रभाव पड़ा है.

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करीब 1 दशक से भी ज्‍यादा वक्‍त गुजर गया है, जब पुंछ के खारी गांव में सीमापार से दागा गया एक गोला एक मकान पर जा गिरा और अपनी बेटी को बचाने की कोशिश में एक मां की जान चली गई. उस समय अपनी मां की गोद में खेलने वाली वही बच्‍ची तैरा कौंसर आज 14 साल की हो गई है. आज तैरा को वह हादसा अच्‍छे से याद भी नहीं है, लेकिन हाल के दिनों में शुरू हुई फायरिंग उसे उस दर्द को भूलने भी नहीं दे रही.


तैरा पुंछ सेक्‍टर में लाइन ऑफ कंट्रोल (एलओसी) से बमुश्किल 1.5 किमी की दूरी पर फकीर दारा इलाके में बने सरकारी माध्‍यमिक विद्यालय में पढ़ती है. एलओसी के पास यह आखिरी स्‍कूल है और यहां के अध्‍यापक व बच्‍चे हमेशा तोप के गोलों के साए में रहते हैं, लेकिन इससे न तो उनकी कक्षाओं पर और न ही समय सारणी पर कोई प्रभाव पड़ा है.

इस स्‍कूल के प्रधानाध्‍यापक बलबीर सिंह के अनुसार पिछले पांच साल में गैजेटिड हॉलीडेज के अलावा यह स्‍कूल सिर्फ एक बार बंद किया गया है और वह भी स्‍थानीय रांगड़ नाले में बाढ़ आने के कारण. इसी स्‍कूल के एक छात्र माजिद के अनुसार अगर आज लड़ाई शुरू हो जाती है तो पक्‍का स्‍कूल की उपस्थिति कम हो जाएगी और हममें से कई लोग मारे जाएंगे.

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14 साल की तैरा भी आगे चलकर टीचर बनना चाहती है. तैरा मुस्‍कुराते हुए कहती है, ‘मैं टीचर बनने से पहले मरना नहीं चाहती.’ बड़े शहरों के बच्‍चे जिस तरह से वीडियो गेम्‍स और कॉमिक्‍स किताबों के बारे में बात करते हैं ठीक उसी तरह तैरा और उसके दोस्‍त गोलीबारी, गोलाबारी, मौत, हत्‍या और कांड की बात करती हैं.

आसपास के गांवों से करीब 70 बच्‍चे इस स्‍कूल में पढ़ने आते हैं. हालांकि यह स्‍कूल भी भारत और पाकिस्‍तान के बीच सीजफायर की घोषणा से पहले आपसी गोलाबारी में क्षतिग्रस्‍त हुआ था. उस दौर में स्‍कूल कई महीनों के लिए बंद रहा था लेकिन अब पांच कमरों की यह स्‍कूल बिल्डिंग पूरे साल छात्र-छात्राओं से गुल्‍जार रहती है. कुछ कक्षाएं तो खुले में भी लगती हैं. यहां पढ़ने वाले स्‍थानीय छात्रों को आर्मी बैरिकेड पार करके स्‍कूल पहुंचना पड़ता है.

अजनबियों को इस इलाके में आने की इजाजत नहीं है. तैरा का बड़ा भाई दसवीं में पढ़ता है, जबकि उसकी दो बड़ी बहनें 9वीं और 12वीं में पढ़ती हैं. तैरा बताती हैं कि मेरे भाई बहन हालिया फायरिंग के बारे में बात करते हैं और इसी बीच मां की याद आती है तो उनके बारे में भी बात होती है. तैरा और उसके भाई-बहन अपनी आंटी के साथ यहां रहते हैं, जबकि उनके पिता सउदी अरब में काम करते हैं और साल में एक बार कुछ महीनों के लिए यहां आते हैं. तैरा कहती हैं, ‘मुझे आशा है कि अब किसी बच्‍चे को अपनी मां नहीं खोनी पड़ेगी.’

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