Chandrayaan-2 का विक्रम लैंडर अब चांद के चारों तरफ 104 किमी की ऊंचाई पर चक्कर लगा रहा है. 4 सितंबर यानी बुधवार को यह चांद से सिर्फ 36 किमी की ऊंचाई पर घूमेगा. लगभग 58 घंटे बाद विक्रम लैंडर चांद के दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा. अभी विक्रम लैंडर की गति करीब 2 किमी प्रति सेकंड है. यानी एक मिनट में यह 120 किमी की दूरी तय कर रहा है. एक घंटे में 7200 किमी की गति से विक्रम लैंडर चांद का चक्कर लगा रहा है. इस गति में चांद की कक्षा में घूमना किसी चुनौती से कम नहीं है... वह भी खुद के भरोसे...आइए जानते हैं विक्रम लैंडर को अभी से लेकर चांद की सतह पर उतरने तक किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है और पड़ेगा...
पहली चुनौतीः बदलते गुरुत्वाकर्षण प्रभाव वाले चांद की कक्षा में घूमना
विक्रम लैंडर के लिए चांद के चारों तरफ चक्कर लगाना भी आसान नहीं होगा. इसका बड़ा कारण है चांद के चारों तरफ ग्रैविटी बराबर नहीं है. इससे चंद्रयान-2 के इलेक्ट्रॉनिक्स पर असर पड़ता है. इसलिए, चांद की ग्रैविटी और वातावरण की बारीकी से गणना करते हुए विक्रम लैंडर को अपनी सेहत सही रखनी होगी. पृथ्वी पर मौजूद कमांड सेंटर से बीच-बीच में विक्रम लैंडर की सेहत की जांच की जा रही है.
दूसरी चुनौतीः चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग, सबसे बड़ी चुनौती होगी
इसरो वैज्ञानिकों के मुताबिक चंद्रमा पर विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर की सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती है. चांद की कक्षा से दक्षिणी ध्रुव पर रोवर और लैंडर को आराम से उतारने के लिए प्रोपल्शन सिस्टम और ऑनबोर्ड कंप्यूटर का काम मुख्य होगा. ये सभी काम ऑटोमैटिकली होंगे. इस दौरान लैंडर में लगे सेंसर्स और कैमरे चांद की सतह की तस्वीरें लेंगे. उनकी जांच करके समतल जगह पर उतरने की कोशिश करेगा विक्रम लैंडर. क्योंकि, 12 डिग्री से ज्यादा की ढाल पर विक्रम लैंडर पलट जाएगा. लैंडिंग के समय गति होगी करीब 2 मीटर प्रति सेकंड. इसी गति से विक्रम करीब 6 किमी की ऊंचाई से नीचे आएगा.
तीसरी चुनौतीः चंद्रमा की धूल, बचने के लिए पांच की जगह एक इंजन चलेगा
डॉ. के. सिवन ने बताया कि चांद की सतह पर ढेरों गड्ढे, पत्थर और धूल है. जैसे ही लैंडर चांद की सतह पर अपना प्रोपल्शन सिस्टम ऑन करेगा, वहां तेजी से धूल उड़ेगी. धूल उड़कर लैंडर के सोलर पैनल पर जमा हो सकती है, इससे पावर सप्लाई बाधित हो सकती है. ऑनबोर्ड कंप्यूटर के सेंसर्स पर असर पड़ सकता है. इससे बचने के लिए विक्रम लैंडर में लगे पांच इंजन में से चार इंजन करीब 13 मीटर ऊपर बंद कर दिया जाएगा. सिर्फ बीच वाला इंजन काम करेगा. इससे धूल छंटकर दूसरी दिशा में जाएगी.
चौथी चुनौतीः बदलता तापमान, दोबारा काम कर सकता है रोवर-लैंडर
डॉ. के. सिवन ने बताया कि चांद का एक दिन या रात धरती के 14 दिन के बराबर होती है. इसकी वजह से चांद की सतह पर तापमान तेजी से बदलता है. इससे लैंडर और रोवर के काम में बाधा आएगी. अगर चांद में होने वाली रात और उससे गिरने वाले तापमान को रोवर और लैंडर बर्दाश्त कर लेंगे. उनके सारे पेलोड्स सही काम करते रहेंगे तो हम दोबारा उन्हें काम पर लगा देंगे.
20 अगस्त को गति कम कर चांद की कक्षा में पहुंचाया था चंद्रयान-2 को
इसरो वैज्ञानिकों ने 20 अगस्त यानी मंगलवार को चंद्रयान-2 को चांद की पहली कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचाया था. इसरो वैज्ञानिकों ने मंगलवार को चंद्रयान की गति को 10.98 किमी प्रति सेकंड से घटाकर करीब 1.98 किमी प्रति सेकंड किया था. चंद्रयान-2 की गति में 90 फीसदी की कमी इसलिए की गई थी ताकि वह चांद की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के प्रभाव में आकर चांद से न टकरा जाए. 20 अगस्त यानी मंगलवार को चांद की कक्षा में चंद्रयान-2 का प्रवेश कराना इसरो वैज्ञानिकों के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था. लेकिन, हमारे वैज्ञानिकों ने इसे बेहद कुशलता और सटीकता के साथ पूरा किया.