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पन्ना से Ground Report: 'कभी राजी से तो कई बार जबरन भी'...हीरे के लिए खदानों में महिलाओं संग 'गंदा' टोटका!

पन्ना की हीरा खदानों में कहानियां ऐसे अटकी हैं, जैसे पुराने कुएं में दोपहरी की गूंज. उस तरफ पैर मत रखना, वरना हीरा रूठ जाएगा. फलां दिन देवता को मनाओ तो बिगड़ी संभल जाएगी. धूप जलाओ. सिर नवाओ. तकदीर को जगाने के अलग-अलग टोटके. विश्वासों की पोटली में एक यकीन ये भी कि अंधेरे में स्त्री-पुरुष मिलन हो तो हीरा खुद भागकर हाथों में आ गिरेगा.

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हीरे के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाए हुए लोग मेहनत के साथ टोटकों का भी सहारा लेते हैं.
हीरे के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगाए हुए लोग मेहनत के साथ टोटकों का भी सहारा लेते हैं.

मध्य प्रदेश के उत्तर-पूर्वी छोर पर बसा जिला पन्ना! तारीख में इतना पीछे कि अब तक कोई रेलवे लाइन तक नहीं पहुंची. लेकिन साल और सागौन की घेराबंदी में, यहां ढेरों हीरा खदानें हैं. बाकी जगहों से अलग, इन खानों में औरतें ज्यादा दिखेंगी. मिट्टी से कंकड़ निकालतीं. कंकड़ से हीरे चुनतीं. और न मिले तो 'समझौता' करते हुए भी. ये खास टोटका सिर्फ हीरे के लिए है. 

‘सर्दियों की शुरुआत रही होगी, जब मुझे 'वो' ऑफर मिला. सुबह नीम अंधेरे में पूरी तरह बेलिबास हो खदान में काम करती किसी महिला से संबंध बनाना था. जब बाकी सारे जतन बेअसर हो जाएं, यह आखिरी टोटका है. सबसे कारगर. पुराने लोग मानते हैं कि इसके बाद अगले दो-तीन दिनों में जमीन खुद हीरा उगलने लगेगी.’

गांधीग्राम की बगीची में मेरी एक पीठ से बात हो रही है. यह वो जगह है, जहां पारधी समुदाय (बहेलियों की एक जाति) के लोगों को एक साथ बसाया गया और उन्हें पारंपरिक काम की जगह रोजगार के नए तरीके सुझाए गए. इसी गांव का युवक अनमोल (नाम बदला हुआ) इसरार करता है कि तमाम किस्सों में एक सच ये भी शामिल किया जाए लेकिन बचते-बचाते. 

वे धीरे से कहते हैं- 'नाम-चेहरा दिखे तो डर रहेगा. लोग गलत से उतना नहीं डरते, जितना गलत के खुलने से.' खदानों में ही पिता को खो चुके अनमोल खुद खदान जाने लगे. वहां उन्हें अचूक टोटके का हिस्सा बनने को कहा गया. 

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फिर?

लड़की कंफर्टेबल नहीं थी. मैंने मना कर दिया. लेकिन जिसे करना था, उन्होंने कर लिया. 
 
हीरा मिला!
 
मिलना ही था. 

पहली किस्त यहां पढ़ें: पन्ना से Ground Report: हीरे की चाह में जिंदगी तबाह...पीढ़ियां खपीं, किस्मत रूठी मगर मजदूरों की उम्मीद नहीं टूटी
 
मध्यप्रदेश के 55 जिलों में से एक है पन्ना. लगभग सवा दस लाख आबादी वाले इस जिले में अब तक रेलवे लाइन तक नहीं पहुंची. नजदीकी स्टेशन खजुराहो है. पन्ना में न कोई बड़ा कारखाना है, न कोई नामी यूनिवर्सिटी. लेकिन यहां हीरा है! सरकोहा, सिरसवाहा, सकरिया, चोपड़ा, पट्टी और कृष्ण कल्याणपुर जैसी कई जगहों पर हीरा खदानें चल रही हैं. 
 
शहर से लगभग 10 किलोमीटर दूर सरकोहा में उथली खदानें हैं. यहां पट्टा लेकर कम गहरे गड्ढे करने की इजाजत मिलती है. 

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आयताकार में रखे पत्थरों में से हीरा चुनना ही वो काम है, जिसमें महिलाएं ज्यादा रखी जाती हैं.

माइनिंग एरिया में एक साथ कई ठेकेदार और सैकड़ों मजदूर लगे हुए हैं. सभी अलग-अलग मालिकों के लिए काम करते हुए. कीचड़-मिट्टी भरे इलाके में धूप और गर्मी शहर से भी कहीं ज्यादा तेज. कई मजदूर थमकर दो घड़ी सांस लेते हुए. किसी के पांव में पट्टी बंधी है, तो किसी के हाथ में. लेकिन काम चल रहा है. 
 
कहीं-कहीं समतल जमीन पर गोबर लीपकर कंकड़ बिखेरे हुए हैं. जैसे चावल में से पत्थर छांटे जाते हैं, वैसे ही इनका छोटा-छोटा हिस्सा लेकर मजदूर ध्यान से देखते और एक तरफ सरकाते जाते हैं. 
 
चलते हुए मैं ऐसी ही जमीन पर पैर रखने को थी, कि आवाज आई- वहां से जूते हटाकर बाई. उसे हम पूजते हैं! 
 
हीरा छांटने से पहले मजदूर यहां बैठकर ऊपरवाले का नाम लेते हैं. कई और टोटके भी हैं, जिसमें पुरुष-स्त्री मेल आजमाया हुआ और सबसे आखिरी अस्त्र है. अनमोल से पहले भी दबी जुबान में कइयों ने यह टोटका बताया. 
 
विश्रामगंज इलाके में रुंझ नदी बहती है. इसके बारे में कहा जाता है कि यहां पानी की धार में हीरे बहते मिल जाएंगे. इस यकीन पर यकीन करते हजारों लोग नदी के आसपास डेरा डाल चुके. हीरा खोजते हुए कई लोग पार्टटाइम काम भी करने लगे, जैसे चाय-पकौड़ी की टपरी लगाना. ऐसी ही एक दुकान की मालकिन ऑफ-कैमरा कहती है- बुधवार और इतवार को टोटका होता है बाई. 
 
क्या होता है?

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पहले तो लोबान जलाकर चाल (कंकड़ों का ढेर जिससे हीरा छांटा जाना है) बिखरा दी जाती है. इसके बाद पास ही जहां मचाई होती है, उस कीचड़वाले गड्ढे में पति-पत्नी चले जाते हैं और ‘वो’ करते हैं. फिर कपड़े-लत्ते पहने. बोल-बता लिया और काम में लग गए. ये सब किसी के भी आने से पहले और भगवान जगने के पहले होना चाहिए. 
 
कौन करता है ये?ठेके में काम कर रहे पति-पत्नी को ठेकेदार कह देता है. बदले में उन्हें 500-1000 रुपए मिल जाते हैं. अगर वे राजी न हों तो दूसरा तरीका खोजते हैं. 

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रुंझ नदी किनारे सुबह से ही हीरा-खोजियों की आवाजाही शुरू हो जाती है.

दूसरा तरीका क्या!

चाय-दुकान की मालकिन खुलकर कहते हुए बचती हैं. बिना कैमरा भी वे फुसफुसा रही हैं.  लेकिन रील-प्रेमी युवक अनमोल के लिए हमारा कैमरा वो बंदरगाह बना, जहां वे अपने तजुर्बों का बोझ उतार रहे थे. 

 वे एक-एक करके हीरा निकालने की सारी प्रोसेस बताते हैं.  

अगर हीरा न मिले तो!

तो अगले दिन भी यही करते है. 
 
इसके बाद भी कई दिनों तक डायमंड का छोटा टुकड़ा भी न मिले तो मालिक बेचैन होकर पुराने तरीके अपनाने लगते हैं. इसमें लोबान जलाना सबसे मासूम टोटका है. कई बार पुतला भी जलाया जाता है ताकि काली नजर हट जाए. 
 
एक तरीका और है. जहां कंकड़ रखे होते हैं, वहां बीचोबीच एक मजदूर को सुलाया जाता है और फिर सात बार गोलाकार घसीटा जाता है. वो चिल्लाता है- मिलेगा...मिलेगा! कंकड़ों पर घिसटते हुए वो खूनाखून हो जाता है. कई बार गहरे जख्म भी बन जाते हैं. लेकिन फर्क नहीं पड़ता. मजदूर से लेकर ठेकेदार तक चाहते हैं कि बस किसी तरह हीरा मिल जाए. 
 
इसमें मजदूरों का क्या फायदा!
 
नाम हो जाता है कि वे किस्मतवाले हैं. फिर उन्हीं मजदूरों को बार-बार बुलाया जाता है. छोटा हीरा मिले तो चाय-पानी देते हैं. बड़ा मिल जाए तो कई बड़े दिल मालिक कई हजार भी दे देते हैं. 

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हीरा खनन की प्रक्रिया में महिलाओं के हिस्से अलग तरह के काम आते हैं. 

सबसे आखिर में वो टोटका होता है…  मुझे भी एक बार ऑफर मिला. मैं राजी था लेकिन औरत कंफर्टेबल नहीं थी. फिर मैंने मना कर दिया. अनमोल बिना लागलपेट बताते हैं. 
 
औरतें मना नहीं कर पातीं!

नहीं. वे बोलेंगी तो काम से हटा दी जाएंगी. मचाई के वक्त महिलाओं को इसलिए भी काम पर ज्यादा रखा जाता है कि वे तकदीर का ताला खोल सकती हैं. 
 
अनमोल महज 21 साल के हैं लेकिन खदानी जिंदगी से दो-चार होते हुए बेहद तपे हुए हैं. वे खुद पत्थर खदान की बीमारी में पिता को गंवा चुके. रील बनाने के अलावा क्रांति करने का शौकीन ये युवा इसरार करता है- साल आगे बढ़ रहे हैं. अब दुनिया भी तो आगे बढ़े, बस, इसलिए आपसे ये बता रहा हूं. 
 
शहर में हमारी मुलाकात आशा (नाम बदला हुआ) से हुई. बीस सालों से खदान में काम कर रही महिला घर में सुस्ताने के हिसाब से  काफी सजी-संवरी है. सुर्ख साड़ी से मेल खाता मेकअप और वैसी ही चूड़ियां. माइनिंग वर्क में लगी लगभग सारी मजदूर महिलाएं इसी तरह की लगीं. 
 
जिक्र छिड़ने पर हंसती हैं- तो क्या करें. कंघी-पट्टी के लिए अलग से क्या मौका लाएं! मिट्टी काड़ते हुए शरीर धुर्रा-मिट्टी बन जाता है. लौटने पर साफ-सुथरा होकर ढंग के कपड़े भी न पहनें!

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हंसी-हंसी में ही सड़ासड़ कोड़े चलाती ये महिला भी शोषण पर अधबंद रहती है. 
 
हां. होता तो है. सुना तो हमने भी. लेकिन हमारे साथ नहीं हुआ. कई बार राजी से होता है. कई बार हावी भी हो जाते हैं. अब जब होना ही है तो क्यों न चुपचाप सहा जाए. क्यों? हम औरतें सहती हैं न! भीतर तक बेधती आंखें इस पूरे वक्त एक बार भी मेरे चेहरे से नहीं हटतीं. 

निकलते हुए वे अपना जख्मी पैर दिखाती हैं. बेखून. लेकिन गहरी दरारें. खदान हमारे साथ ये करता है- क्या औरत- क्या मर्द. 
 
माइन्स में शोषण की बात पर पृथ्वी ट्रस्ट की डायरेक्टर समीना युसुफ भी हामी भरती हैं.

समीना कहती हैं- वैसे तो वर्कप्लेस पर महिलाओं का शोषण अक्सर सुनाई देता है, लेकिन हीरा खदानों में काम करने वाली महिलाएं इसके लिए ज्यादा वल्नरेबल हैं. माइनिंग के दौरान आर्थिक शोषण भी होता है, जैसे पुरुषों से कम मजदूरी मिलना. इसके अलावा शारीरिक एब्यूज भी काफी ज्यादा है. लंबे समय तक काम करते हुए सुरक्षा के साथ-साथ उनकी गोपनीयता भी कॉम्प्रोमाइज होती है. हालांकि कोई खुलकर नहीं बताता. शायद कुछ जख्म ढंके हुए ही ठीक हैं. 

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पृथ्वी एनजीओ की डायरेक्टर समीना युसुफ खनन में जुटी महिलाओं की सुरक्षा और सेहत पर काम कर रही हैं.

पन्ना में डायमंड माइनिंग के दो तरीके हैं. बल्कि तीन. 
 
सरकार से दो सौ रुपये में पट्टा लेकर वहां खनन करें. ये 8x8 मीटर के टुकड़े होते हैं, जो लीज पर मिलते हैं. ये उथली खदानें होती हैं, जहां जमीन के भीतर तय गहराई तक ही जाया जा सकेगा. 
 
नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (एमएमडीसी) सरकारी कंपनी है, जो मैकेनाइज्ड खनन करती है, यानी मशीनों के जरिए. इसका काम काफी फैला हुआ है.
 
तीसरी वो श्रेणी है, जिसपर बात होकर भी बात नहीं होती. यह अवैध माइनिंग है. पन्ना में बेहद जोखिमभरे रास्ते से लोग बृहस्पति कुंड पहुंचते हैं, जहां छुटपुट खनन होता है. इसके अलावा रुंझ नदी के किनारे-किनारे लगभग पूरा शहर बस चुका, जिसका काम ही बहती धार या किनारे की मिट्टी में हीरा खोजना है. 
 
इन माइन्स को देखना, बदलते हुए मौसम को देखने जैसा है- और फसल कटने या तबाह होते देखने जैसा भी. 
 
यहां मिट्टी की गंध और कुदाल-फावड़ों की आवाज बेहद तेज है. जमीन लगभग खुदी हुई. बीच-बीच में गड्ढे या पत्थर. अनजान चेहरे पांव संभालकर रखने की आवाज देते हैं. 
 
यहीं हमारी मुलाकात स्वामीदीन पाल से हुई. मजदूरों के साथ खुद भी काम पर लगे इस शख्स को लगभग सालभर पहले दो करोड़ से ज्यादा लागत का हीरा मिल चुका. 

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स्वामीदीन पाल समेत कई लोगों को करोड़ों के हीरे मिल चुके, लेकिन वे हीरा खनन का चाव नहीं छोड़ सके.

पुरानी टी-शर्ट पहले पाल साहब मुस्तैदी से काम में लगे हुए हैं. इस वक्त बिनाई चल रही है, यानी कंकड़ों में हीरा खोजने की कोशिश. निर्देश देता ये करोड़पति बीच-बीच में खुद भी काम में लग जाता है. 
 
हमसे मिलने पर वे बेहद सहज थे, मानो करोड़ों के साथ कैमरे और अनजान लोग भी जिंदगी का हिस्सा बन गए हों. 
 
सीधी शुरुआत होती है.
 
हीरा मिलने के बाद क्या बदला?

अब क्या कहें, भगवान ऐसा समय देता है तो कुछ बदलाव तो हो ही जाता है. लेकिन ऐसा खास भी नहीं बदला कि भारी उमंगी हो जाए, गाड़ी-वाहन खरीदने लगें. या दुनियादारी करने लगें. नहीं. दाल-रोटी का जैसा हिसाब चलता था, वैसा ही चल रहा है. 
 
फिर भी इतने पैसों का कुछ तो बंटवारा-हिसाब किया होगा!

किया न. कुछ नई मशीनें मंगवाई हैं. खदान के लिए नए पट्टे खरीदे हैं. अब और खुदाई होगी. घर में कुछ शादी-ब्याह करवा डाले. अब बाकी पैसे बैंक में हैं. 
 
घर की औरतों के लिए हीरे के गहने नहीं खरीदे!

अब की बार हंसता हुआ जवाब लौटता है- घरवाली के सपने तो बहुत थे. हमने उसके और बहुओं के लिए नाक की लौंग खरीद डाली हीरे जड़ी.
 
पैसा आता है तो रिश्ते-नातेदार भी खूब आने लगते हैं. हमारे पास भी आए. लेकिन हमने सीधा कह दिया कि अब तक जहां से बंदोबस्त चलता था, वहीं से आगे भी करें. हमसे उम्मीद न रखें. हां मजबूरी पड़ जाए तो मदद करेंगे, लेकिन जमीन खरीदने, मकान बनवाने के लिए हम पैसे नहीं देंगे. कुल मिलाकर, दानधर्म करेंगे, लेकिन कर्ज नहीं देंगे.

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बात करते हुए पाल साहब हीरा खोजने वालों की तरफ पीठ किए हुए हैं. बेपरवाह. या फिर उन्हें तजुर्बा है कि हीरा मिलेगा तो खुद ही अपनी मौजूदगी का एलान कर देगा. करोड़ों का हीरा भी उन्हें इसी तरह मिला था. 
 
वे मजदूर! क्या उन्हें भी कुछ मिला?

हां. उन्हें तो इनाम देना ही होता है. बड़ा हीरा मिला तो सबको मिलाकर दस हजार रुपये दे दिए. चित्रकूट घुमाने भी ले गए और एक-एक जोड़ी कपड़े दिलवाए. एक मजदूरन की लड़की की शादी है. वादा किया है कि उसमें फ्री में टेंट लगवा देंगे. 
 
मजदूरों में घुले-मिले शख्स को देखने पर कहीं अंदाजा नहीं लगता कि अभी सालभर पहले उन्हें बड़ा हीरा मिल चुका. 
 
सिर पर इने-गिने बालों की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं- पांच साल से खदान कर रहे हैं. पहले तो हम भी मजदूर थे. ये बाल जल गए दूसरों के लिए बोझा ढोते-ढोते. जम्मू-हरियाणा-पंजाब हर जगह लेबरी कर अब घर लौट सके. हीरा मिल तो गया लेकिन भारी उमंगी हमें नहीं छाई. 
 
पाल साहब समेत हीरा खोजने वालों के लिए हर दिन, बीते हुए दिन का एक्सटेंशन है. कुछ नया नहीं. बस जागना और खदानों में जाकर चमकीला पत्थर खोज निकालना. मिलने के बाद! फिर नए की खोज.
 
पन्ना के साथ हीरे की लोककथाएं ऐसे जुड़ी हैं, जैसे अमीरी के साथ तिजोरी. 
 
माइनिंग वर्कर्स के साथ दशकभर से काम कर रहे सोशल वर्कर छत्रसाल ऐसी ही एक लोककथा सुनाते हैं. 

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सोशल एक्टिविस्ट छत्रसाल पन्ना की लोककथाओं के जानकार हैं.

किसी समय पन्ना के राजा छत्रसाल को वरदान मिला था कि एक रात में जहां-जहां उनका घोड़ा दौड़ेगा, वहां-वहां जमीन के भीतर हीरा पैदा हो जाएगा. आज भी पुराने लोग गाते हैं- छत्ता तेरे राज में धकधक धरती होय...जित-जित घोड़ा पग रखे, उत-उत हीरा होय!
 
हीरा मिलने तो लगा, लेकिन जिसकी वजह से जिंदगियां सुधर जानी थीं, वो बिखरने लगीं. अमीर और बाहरी लोग खनन पर कब्जा करने लगे और गरीब मजदूर बनकर रह गए. तीन साल पहले नदी के आसपास अवैध खनन बढ़ा. इसके अलग खतरे हैं. 
 
इस जिले में रोजगार के दो ही जरिए हैं- हीरा और पत्थर खदान.

स्टोन माइन्स की स्थिति ज्यादा खराब है. यहां काम करने के कुछ ही सालों के भीतर ज्यादातर मजदूरों को सिलिकोसिस हो जाता है. इस बीमारी में फेफड़ों में पत्थर की धूल ऐसी जमती है कि फेफड़े ही पथरा जाते हैं. हमने खूब कहा-सुना लेकिन अब तक मृतकों के परिवार को तीन लाख रुपये के मुआवजे के अलावा कुछ नहीं हो सका. वे मरने की राह देखते हुए जीते हैं. 
 
मुझे नदी के किनारे बैठी शीला की बहू याद आती है, जिसका परिचय ही शीला की बहू था. बिना बेलन, हाथों से ही गोल रोटियां थपकाती इस सिलिकोसिस विधवा की आंखें तड़के हुए कांच जैसी थीं. गहरी-हल्की एक साथ कितनी ही दरारें, जिनसे ताजी हवा नहीं, उदासी भीतर आती है. 
 
(अगली किस्त में पढ़ें, उन विधवाओं की कहानी, जिनके पति पत्थर खदानों में काम करते हुए राख हो गए.)

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