पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ ने कहा है कि राष्ट्रपति बतौर उनके कार्यकाल में दोनों देश कश्मीर और अन्य विवादास्पद मुद्दों पर करार के करीब पहुंच गये थे. एक टीवी कार्यक्रम के दौरान मुशर्रफ से जब पूछा गया कि क्या दोनों देश किसी करार के करीब थे तो उन्होंने कहा, ‘‘हां बिलकुल. कश्मीर, सियाचिन और सर क्रीक, इन तीनों मुद्दों पर करीब थे.’’
मुशर्रफ ने कहा, ‘‘मैंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से कहा था और वह तैयार भी हो गये थे. उनके पाकिस्तान आने की बारी थी और हमने फैसला किया था कि यदि वह आते हैं और भले ही तीनों पर नहीं सही लेकिन इन तीनों में से एक पर भी दस्तखत नहीं होते तो यह पूरी तरह विफलता होगी, जो कभी नहीं होना चाहिए. इसलिए हम इस बात पर राजी हो गये कि जब वह आते हैं तो इन तीनों में से कम से कम एक पर समझौता होगा.’’
जब मुशर्रफ से पूछा गया कि क्या यह मुद्दा सर क्रीक था तो उन्होंने कहा, ‘‘हां, सर क्रीक की संभावना अधिक थी लेकिन अन्य दोनों पर भी अच्छी प्रगति की गयी थी.’’ पूर्व पाक राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘सियाचिन पर भी फैसला बहुत बहुत आसान था. मेरा मानना है कि हम एक छोटे से मुद्दे को लेकर बहुत भावुक हो रहे हैं और उन फायदों को नकार रहे हैं, जिन्हें हम हासिल कर सकते हैं.’’
नियंत्रण रेखा का विचार अप्रासंगिक था
मुशर्रफ के अनुसार कश्मीर मुद्दा तीन सिद्धांतों पर आधारित था, विसैन्यीकरण, स्वशासन और संयुक्त प्रणाली. उन्होंने कहा कि यह उनका ही विचार था कि कश्मीर के अदंर और नियंत्रण रेखा पर विसैन्यीकरण जारी रहना चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘और हमारी तरफ भी ऐसी ही कार्रवाई हो. मेरा सुझाव था कि भारतीय सेना को श्रीनगर, बारामूला जैसे दो या तीन शहरों से हटना चाहिए.’’ स्वशासन से मुशर्रफ का आशय है, ‘‘भारत की तरफ और पाकिस्तान की तरफ, दोनों ही तरफ कश्मीर के लोगों को अधिकतम शासन देना.’’ संयुक्त प्रणाली का मकसद स्वशासन पर निगरानी रखना है. मुशर्रफ ने कहा कि जहां तक कश्मीर की बात है, पाकिस्तान में नियंत्रण रेखा बनाने का विचार अप्रासंगिक था. उन्होंने कहा, ‘‘समस्या नियंत्रण रेखा थी क्योंकि इस तरह की धारणा थी कि भारतीय पक्ष चाहता है कि नियंत्रण रेखा को स्थायी बनाया जाए. हमारी तरफ से हमने सोचा था कि यह एक विवाद है और इसलिए एक विवाद समाधान नहीं बन सकता. इसलिए नियंत्रण रेखा बनाने का विचार अप्रासंगिक था.’’
'मुंबई आतंकी हमलों की जांच में मदद करते'
मुशर्रफ ने कहा कि यदि वह राष्ट्रपति होते तो मुंबई आतंकी हमलों की जांच में मदद करते. उन्होंने कहा, ‘‘निश्चित तौर पर हम जांच में मदद करते क्योंकि हम नहीं चाहते कि पाकिस्तान की सरकार या सेना या आईएसआई को सहअपराधी या जिम्मेदार ठहराया जाए. क्योंकि सामान्य तौर पर ऐसा ही किया जाता है कि जो भी हुआ उनमें ये सहअपराधी थे. हम जांच में शामिल होते और जिसने भी इसे अंजाम दिया था, उसे कठघरे में लाते.’’ हमलों के आरोपी हाफिज मोहम्मद सईद के संबंध में उन्होंने कहा ‘‘अदालतों, याचिकाओं और उनके खारिज होने में जो कुछ भी हुआ, उससे मेरा सरोकार नहीं है लेकिन यदि उनके खिलाफ साक्ष्य हैं तो उन लोगों के खिलाफ कार्यवाही निश्चित तौर पर चलनी चाहिए.’’ मुशर्रफ ने कहा, ‘‘पूरे कदम उठाये जाने चाहिए और मुंबई में जिस तरह का अपराध हुआ, वह आतंकवादी हमला था और इसलिए पाकिस्तान को मदद करनी चाहिए. एक अन्य समस्या खुफिया जानकारी को साझा करने की है, ताकि पाकिस्तानी पक्ष पूरी तरह सहयोग करे.’’ क्या वह मुंबई हमलों के मामले में गिरफ्तार लोगों से पूछताछ करने के लिए एफबीआई को मना कर देते, इस सवाल पर मुशर्रफ ने कहा, ‘‘मैं इस पर टिप्पणी नहीं कर सकूंगा. क्योंकि मुझे नहीं पता कि मामला यह है कि उन्होंने कुछ लोगों को हिरासत में लिया और एफबीआई से संपर्क से इंकार कर रहे हैं.’’