मरुमलारची द्रविड़ मुनेत्र कषगम (एमडीएमके) के महासचिव और राज्यसभा सांसद वायको ने हिंदी बनाम अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर हो रही बहस को हवा दे दी है. वायकू ने दावा किया है कि हिंदी जड़हीन भाषा है, वहीं संस्कृत भाषा मृत हो चुकी है.
वायकू ने हिंदी पर बातचीत करते हुए कहा कि हिंदी में क्या साहित्य है. हिंदी की कोई जड़ नहीं है, और संस्कृत एक मृत भाषा है. हिंदी में चिल्लाने से कोई नहीं सुन सकता, भले ही (संसद में) कान में इयरफोन लगा हो. संसद में हो रही बहस का स्तर गिरा है. इसका मुख्य कारण हिंदी को थोपा जाना है.'
वायकू ने कहा कि उनके इस बयान की वजह से लोग आलोचना करेंगे और उन पर गुस्सा करेंगे लेकिन यही सच है. हिंदी के इस्तेमाल की वजह से सदन में बहस का स्तर लगातार गिर रहा है. वायकू ने कहा कि हिंदी साहित्य रेलवे के गेट की तरह है. हिंदी क्या है. हिंदी आधुनिक भाषा है. मैं सच कह रहा हूं.
संसद में वायकू को प्रधानमंत्री, रक्षामंत्री और गृहमंत्री के हिंदी में भाषण दिए जाने पर आपत्ति है. हिंदी बनाम क्षेत्रीय भाषाओं की जंग लड़ रहे ज्यादातर लोगों का मानना है कि वायकू सही हैं.
वायकू संसद में हिंदी को बढ़ावा देने की वजह 'हिंदी, हिंदू, हिंदू राष्ट्र' की धारणा को मानते हैं. वायकू का अप्रत्यक्ष तौर पर कहना है कि इससे बहुसंख्यक तुष्टीकरण किया जा रहा है.
वायकू की छवि हिंदी विरोधी नेता के तौर पर रही है. एक इंटरव्यू में वायकू ने कहा कि संसद में अलग-अलग विद्वानों को चुनकर भेजा जाता है. लेकिन आज सदन में बहस का स्तर हिंदी की वजह से गिर गया है. केवल हिंदी में चिल्लाया जा रहा है. संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिंदी में बात करते हैं.
Vaiko,MDMK Chief: What literature is there in Hindi? It has no roots&Sanskrit is a dead language.Shouting in Hindi nobody could understand even after using headphones(in Parliament).Standard of debates have deteriorated,main reason for this is imposition of Hindi.This is my view. pic.twitter.com/TzrCc2uCAg
— ANI (@ANI) July 15, 2019
इससे पहले अटल बिहारी वाजपेयी, मोरार जी देसाई, राजीव गांधी, पीवी नरसिम्हा राव और मनमोहन सिंह सदन को अंग्रेजी में संबोधित करते थे. सदन में केवल मोदी ही अपना हिंदी प्यार दिखाते हैं.
वायकू ने कहा कि सदन में पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू हमेशा चर्चा में मौजूद रहते थे, लेकिन मोदी सत्र के दौरान कभी-कभी ही सदन में दिखते हैं.
बता दें वायकू तमिलनाडु के दिग्गज नेताओं में शामिल हैं. तमिल में होने वाले हिंदी विरोध में भी उनका बड़ा हाथ माना जाता है.
वायकू के खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा भी चल चुका है. तमिलनाडु के स्थानीय कोर्ट ने उन्हें देशद्रोह का दोषी पाते हुए फैसला सुनाया था. हाल ही में उन्होंने मद्रास हाईकोर्ट में इस निर्णय के खिलाफ अपील दाखिल की थी. स्थानीय अदालत ने वायकू को 2009 के एक मामले में दोषी मानते हुए एक साल के लिए साधारण कारावास की सजा सुनाई थी.