ईश्वर का लाख-लाख शुक्र है, कॉमनवेल्थ गेम्स का समापन हो गया. धन्यवाद इसलिए भी कि बिना किसी खास गड़बड़ी के खेलों का पटाक्षेप हो गया. याद रहे, केवल तीन हफ्ते पहले तक कॉमनवेल्थ गेम्स के आयोजन के तौर-तरीकों पर तीखे हमले हो रहे थे. चोटी के कई एथलीटों ने खेल से अपना नाम वापस ले लिया.
आयोजन शुरू होने से केवल एक माह पहले तक भी स्टेडियम और खेलगांव पूरी तरह तैयार नहीं हो पाए थे. यहां तक कि आयोजन से एक हफ्ते पहले ही एक फुट ओवरब्रिज ढह गया. बहुप्रतीक्षित कॉमनवेल्थ गेम्स के सफल आयोजन के लिए यह कड़े इम्तिहान की घड़ी थी. ऑस्ट्रेलियाइयों ने हर बात को लेकर शिकायत की. डेंगू बुखार से लेकर आतंकी हमलों की आशंका तक जता दी गई. पर जुगाड़ में माहिर भारतीयों ने इन सबों से उबरते हुए आयोजन को कामयाब बना ही डाला.
खेलों का समापन ऐसा आश्चर्यजनक था, जैसा कि इसका उद्धाटन. इसमें भारत की बेहतरीन चीजों को दुनिया के सामने रखा गया. सुरेश कलमाड़ी को छोड़कर कोई भी यह दावा करने की स्थिति में नहीं है कि आयोजन बीजिंग ओलंपिक से बेहतर था. लेकिन आम भारतीय, जिन्हें पहले यह भय सता रहा था कि कहीं ये खेल हमें शर्मसार न कर दें, अब गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं. केवल इस वजह से नहीं कि स्टेडियम और खेलगांव वक्त पर तैयार हो गए, बल्कि इस कारण से भी कि 100 से ज्यादा भारतीय खिलाडि़यों के गले में पदक शोभायमान हो रहे हैं. कठिन परिश्रम और प्रशिक्षण के कारण हमें ऐसे एथलीट मिल सके, जिन्होंने मुकाबला किया और जीत हासिल की. इनमें में ज्यादातर ने राज्य की मदद के बगैर पदक हासिल किया.
चीजें हमेशा एकदम दुरुस्त नहीं हुआ करतीं, खासकर हमारे देश में. परंतु इस साल दिल्ली ने वह हासिल कर लिया है, जो वह पा सकती थी. कामयाबी का श्रेय लेने की होड़ खेलों के समापन से पहले ही शुरू हो चुकी है. होड़ शुरू करने में दिल्ली के उपराज्यपाल सबसे आगे हैं, जिन्होंने प्रधानमंत्री को चिट्ठी लिखी है कि वे शीला दीक्षित को सारा श्रेय बटोरने से रोकें. अभी और भी ऐसे कई वाकए सुनने को मिलेंगे. अंतत: खेलों का समापन हो गया और मस्ती का दौर शुरू होने को है.