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कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स से हमने बहुत-कुछ पाया: भरत भूषण

कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के आयोजन से पहले का माहौल भले ही काफी तनाव भरा रहा हो, पर जिस किसी ने भी इन खेलों को देखा, वह इसे बेहतरीन ही करार देगा. यह अपने आप में जनता की शक्ति और भारतीय लोकतंत्र के जीवंत होने का ठोस प्रमाण बनकर उभरा है.

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कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के आयोजन से पहले का माहौल भले ही काफी तनाव भरा रहा हो, पर जिस किसी ने भी इन खेलों को देखा, वह इसे बेहतरीन ही करार देगा. यह अपने आप में जनता की शक्ति और भारतीय लोकतंत्र के जीवंत होने का ठोस प्रमाण बनकर उभरा है.

भरत भूषण को लिखें.

अंतरराष्‍ट्रीय मीडिया ने कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के उद्धाटन समारोह को भव्‍य करार दिया. समापन समारोह भी बेहद दिलचस्‍प व मनभावन ठहराया जाएगा. इस तरह देशवासियों की दिली इच्‍छा पूरी होती नजर आ रही है.

हमने देखा कि भारत अब परंपरागत खेलों के दायरे से काफी आगे निकल चुका है. खासकर जब हम ट्रैक एंड फील्‍ड, जिमनास्टिक और तैराकी में सफलता पर नजर डालते हैं. छोटे शहरों और गांवों से आनेवाले खिलाडि़यों की सफलता ने भारत का दमखम जाहिर कर दिया है. इसने दिखा दिया है कि खेल देश में समरसता कायम करने में कारगर साबित हो सकता है. देश की महिला खिलाडि़यों ने बड़ी संख्‍या में पदक जीतकर हमें गौरवान्वित होने का अवसर दिया है. इनमें से कई तो अपने परिवार और बच्‍चों की देखरेख करती हैं, साथ ही साथ कड़ा प्रशिक्षण भी लेती हैं. देश में अब नए खेल सितारों का उदय हो चुका है. आशा है कि ये खिलाड़ी गांवों, शहरों और नगरों में कई लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बन सकेंगे.

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खेलों के आयोजन के दौरान दिल्‍ली नगर ने भी बहुत कुछ पाया है. दिल्‍ली को एयरपोर्ट का नया टर्मिनल मिला है. मेट्रो का नेटवर्क पूरे राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में फैल चुका है, वह भी नियत समय-सीमा के भीतर. दिल्‍ली को अचानक नई सड़कें, बेहतर फुटपाथ, फ्लाईओवर और अंडरपास मिल गए. राजधानी में सार्वजनिक यातायात प्रणाली में काफी सुधार हो चुका है. खेलों के आयोजन के समय ही नई लो-फ्लोर बसें भी चलनी शुरू हो चुकी हैं. साथ ही वैसी 2,000 वातानुकूलित बसें भी काफिले में शामिल हो चुकी हैं, जो खिलाडि़यों और अधिकारियों को लाने-ले जाने में शामिल थीं.{mospagebreak}करीब सभी स्‍टेडियमों को नए सिरे से बनाया जा चुका है या उसे दुरुस्‍त किया गया है, जो अब एनसीआर के लिए शान हैं. दिल्‍ली में अब खिलाडि़यों के लिए बेहतरीन चिकित्‍सा केंद्र खुल चुका है. पूरी योजना के साथ खेलों के लिए शानदार बुनियादी ढांचा तैयार हो चुका है. सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के सहयोग से इन योजनाओं को अमलीजामा पहनाया गया और खेलों की सारी सुविधाएं मुहैया कराई गईं. हजारों स्‍कूली बच्‍चे, जिन्‍होंने स्‍टेडियम या अपने टीवी सेट पर इन खेलों को ध्‍यानपूर्वक देखा, वे भी खेलों के लिए अपने कदम बढ़ाने को प्रेरित होंगे. बाद में यही बच्‍चे अपने स्‍कूल के माध्‍यम से या अपने प्रयासों से इन सुविधाओं का लाभ पा सकेंगे.

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कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के आयोजन ने नागरिक सुविधाओं के लिए जिम्‍मेदार संस्‍थाओं की बेहतर कार्यक्षमता को भी उजागर कर दिया है. इन्‍होंने दिखा दिया कि सफाई का क्‍या मतलब होता है और मिलेजुले प्रयास से क्‍या कुछ हासिल किया जा सकता है. हमारी ट्रैफिक पुलिस ने भी अब जान लिया है कि केवल चालान काटने की योजना से यातायात-व्‍यवस्‍था नहीं सुधर सकती है. सड़क पर ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी ज्‍यादा अहमियत रखती है.{mospagebreak}दिल्‍ली पुलिस ने भी अपवाद के तौर पर ही सही, विनम्र होना सीख लिया है. 'दुनिया हमें देखकर क्‍या कहेगी', इस भय ने भी हमें जिम्‍मेदारियों का काफी एहसास कराया. क्‍या खेलों के समापन के बाद यह सब समाप्‍त हो जाएगा? आशा तो यही है कि हम इसे आने वाले वक्‍त में भी जीवंत रख पाएंगे. कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स के दौरान हमने दुनिया के सामने जो नम्र और अतिथि सत्‍कार में निपुण होने की छवि पेश की है, वह आगे भी बरकरार रखने में हम सक्षम हैं.

इन सबके बावजूद, किसी को भी यह नहीं भूलना चाहिए कि खेलों के आयोजन के साथ कई नकारात्‍मक चीजें भी जुड़ी हुई हैं. नियंत्रक और महालेखापरीक्षक कार्यालय, प्रवर्तन निदेशालय, और केंद्रीय जांच ब्‍यूरो को गड़बडि़यों की जांच की इजाजत जरूर मिलनी चाहिए. इन गड़बडियों के लिए जवाबदेही भी तय की जानी चाहिए. व्‍यवस्‍था में पहले से ही वैसे तत्‍व मौजूद हैं, जो एक-दूसरे पर दोष मढ़ने में माहिर हैं. केवल ऐसा नहीं होना चाहिए कि कुछ नौकरशाहों को बलि का बकरा बना दिया जाए. जांच का उद्देश्‍य ऐसा होना चाहिए, जिससे सार्वजनिक संस्‍थाएं और इनके प्रमुख्‍ा को ज्‍यादा जवाबदेह बनाया जा सके.

(भरत भूषण 'मेल टुडे' के एडीटर हैं.)

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