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कांग्रेस के जमाने से सत्ता के खिलाफ मुखर रहे कर्नाड, मोदी को बताया था असहिष्णु

गिरीश कर्नाड के निधन से साहित्य और सिनेमा जगत में शोक की लहर है. अपने फिल्म और साहित्य करियर में गिरीश कर्नाड ने कई उपलब्धियां प्राप्त कीं. उन्हें अपने काम के लिए साथ साथ एक्टिविज्म के लिए भी जाना जाता था.

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गिरीश कर्नाड
गिरीश कर्नाड

बात 60 के दशक की है. जब राजा ययाति पर चर्चित ड्रामा लिखने वाले एक 22 वर्षीय नाटककार को नए विषय की तलाश थी. युवा नाटककार के जेहन में एक विचार कौंधता है. सोचा कि क्यों न तुगलकी फरामानों के लिए चर्चित 14 वीं शताब्दी के सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक पर केंद्रित एक नाटक लिखा जाए, जिसमे देश की राजनीति की तस्वीर झलके. दिल्ली की सल्तनत पर करीब 26 वर्षों तक राज करने वाला सुल्तान तुगलक अपने अजीबोगरीब फैसलों के लिए जाना जाता था. चाहे राजधानी को दिल्ली से दौतलाबाद ले जाने का फैसला रहा हो या फिर चांदी की जगह तांबे के सिक्कों की ढलाई.

1964 में कन्नड़ भाषा में आए गिरीश कर्नाड के नाटक तुगलक ने तहलका मचा दिया. नाटकों के मंचन की दुनिया में इसकी गूंज आज भी सुनाई देती है. एक इंटरव्यू में गिरीश कर्नाड ने कहा था, "कोई नाटक समय विशेष से जुड़ा नहीं होता. मुझे खुशी है कि दर्शक अभी भी तुगलक को प्रासंगिक पाते हैं."

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जिस वक्त गिरीश कर्नाड ने तुगलक नामक चर्चित नाटक लिखा था, उस वक्त देश, आजादी के समय के गांधीवादी मॉडल से नेहरूवियन मॉडल की तरफ शिफ्ट कर चुका था. नाटक के कई दृश्यों को देखने के बाद कुछ लोगों को लगा कि यह देश में नेहरूवादी मॉडल की आलोचना है. वहीं 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या की घटना से भी इस नाटक को जोड़कर देखा गया. दरअसल, एक दृश्य में दो सुरक्षा कर्मियों  एक 'मजबूत स्तंभ' को लेकर यह कहते दिखाए गए कि यह अपनी कमजोरियों से खुद नष्ट हो जाएगा.

1938 में जन्मे गिरीश कर्नाड के पूरे सफर को देखें तो वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी रहे. उन्होंने खुद को महज एक्टर, फिल्मकार, लेखक और नाटककार की भूमिका तक ही सीमित नहीं रखा. वह कलाकार के साथ चर्चित एक्टिविस्ट भी रहे. सरकार किसी की भी हो, वह हमेशा मुखर रहे. राजनीतिक मसलों पर भी बेबाक राय रखते थे.सत्ता का विरोध उनके स्वभा का स्थायी भाव रहा.

जब कांग्रेस की भी आलोचना की

2014 के लोकसभा चुनाव में भले ही गिरीश कर्नाड बेंगलूरु सीट से कांग्रेस प्रत्याशी नंदन नीलकेणि के समर्थन में कैंपेनिंग करने उतरे थे, मगर उन्होंने मोदी की सफलता का ठीकरा कांग्रेस की अगुवाई वाली पिछली यूपीए सरकार पर फोड़ने में कोताही नहीं बरती. उन्होंने कहा था कि कांग्रेस की खराब नीतियों और कमजोर प्रदर्शन के कारण ही मोदी को सफलता मिली. हालांकि, जुलाई 2014 में दिए बयान में उन्होंने यह भी कहा था कि नरेंद्र मोदी हमारे प्रधानमंत्री हैं, इसे हमें स्वीकार करना होगा. उन्होंने कहा था- मैने गोधरा दंगों के बाद उनकी आलोचना की थी, मगर उसके बाद उन्होंने कोई बुरा काम नहीं किया. सुशासन प्रदान किया. हमें जनमत का सम्मान करना चाहिए.

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पीएम मोदी को बताया था असहिष्णु

गिरीश कर्नाड हमेशा सत्ता के खिलाफ मुखर रहे.  चाहे 60 के दशक में लिखे चर्चित नाटक के जरिए नेहरू की नीतियों की आलोचना की बात हो या फिर जनता के दिलों में पैठ बनाने में यूपीए सरकार की विफलता का. वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रखर आलोचक रहे. टीपू सुल्तान के बहाने जारी राजनीति पर कर्नाड ने अपना गुस्सा जाहिर किया था. दरअसल, साल 2015 में गिरीश कर्नाड ने कर्नाटक में टीपू सुल्तान की जयंती के जश्न पर कहा था कि बेंगलुरु इंटरनेशनल एयरपोर्ट का नामकरण केम्पा गौड़ा की बजाए टीपू सुल्तान के नाम पर होना चाहिए था.

टीपू सुल्तान पर गिरीश के इस बयान के बाद उनके खिलाफ काफी लोग खड़े हो गए थे और उनकी खूब आलोचना हुई थी. इतना ही नहीं गिरीश को जान से मारने की धमकियां भी मिलने लगी थीं. ये विवाद काफी लम्बा चला था और फिर गिरीश को अपनी कही बात के लिए माफी भी मांगनी पड़ी थी. बाद में उन्होंने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को एक इंटरव्यू दिया. इस इंटरव्यू में कर्नाड ने नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा था और उन्हें लोगों की असहिष्णुता की वजह बताया था.

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RIP Girish Karnad He made a move -The Lamp in the Niche (English, 1989) on Sufism and the Bhakti movement. #GirishKarnad #Sufinama #Sufism

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इंटरव्यू में गिरीश ने कहा था, "मैंने सरकार से केम्पा गौड़ा एयरपोर्ट का नाम टीपू सुल्तान के नाम पर बदलने को नहीं कहा था. मैंने ये कहा था कि टीपू सुल्तान के नाम पर अगर उसका नाम रखा जाता तो अच्छा होता, क्योंकि वे एक स्वतंत्रता सेनानी थे. अगर मैं टीपू सुल्तान के नाम पर एयरपोर्ट का नाम रखने की बात कहता तो ये मेरी बेवकूफी होती. मुझे पता है कि एक अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट का नाम आप यूं ही बदल नहीं सकते हैं."

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उन्हें मिली धमकियों और देश में बढ़ती असहिष्णुता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा था, "असहिष्णुता होती है जब सरकार और नरेंद्र मोदी जैसे लीडर इसे बढ़ावा देते हैं. जब दादरी एपिसोड हुआ था तब मोदी ने एक हफ्ते तक कुछ नहीं कहा था. ये बातें असहिष्णुता को बढ़ावा देने वाली हैं. यह आधिकारिक असहिष्णुता है और मैं इसकी निंदा करता हूं और ऐसी बातों को रोका जाना चाहिए."

साल 2014 के लोकसभा चुनाव के समय भी गिरीश कर्नाड मोदी के खिलाफ थे. उन्होंने अपने साथी लेखक यू आर अनन्तमूर्ति के साथ मिलकर मोदी का विरोध किया था. इस मामले में बीजेपी ने कर्नाड और अनन्तमूर्ति का विरोध किया और ये विवाद काफी बड़ा हो गया था.

कांग्रेस के भी निशाने पर आए थे कर्नाड

मैसूर के पूर्व शासक टीपू सुल्तान की तुलना मराठा शासक छत्रपति शिवाजी से किए जाने पर वह कांग्रेस के भी निशाने पर रहे थे. जब महाराष्ट्र के कांग्रेस विधायक नितेश राणा ने उन पर हमला बोलते हुए टिप्पणी के लिए माफी मांगने को कहा था. हालांकि बाद में गिरीश कर्नाड ने टीपू विवाद से जुड़े मसले पर घमासान मचने के बाद माफी भी मांग ली थी.

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