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लिव इन रिलेशन और इससे पैदा बच्‍चों के अधिकार के लिए बने कानून: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप और इससे पैदा हुए बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए संसद से समुचित कानून बनाने को कहा है. कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के एक मामले में फैसला देते हुए ऐसे रिश्तों की परिभाषा नए सिरे से गढ़ी है. कोर्ट ने कई मुद्दों पर अपना नजरिया भी दिया है.

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सुप्रीम कोर्ट
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सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप और इससे पैदा हुए बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए संसद से समुचित कानून बनाने को कहा है. कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप के एक मामले में फैसला देते हुए ऐसे रिश्तों की परिभाषा नए सिरे से गढ़ी है. कोर्ट ने कई मुद्दों पर अपना नजरिया भी दिया है.

सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐसे मामले में ये फैसला दिया है जिसमें युवती ने जानते बूझते हुए शादीशुदा युवक से लिव इन रिलेशन बरकरार रखा. इस दौरान युवक ने युवती से लाखों का उधार भी लिया जो चुकाया नहीं गया. आखिरकार युवक के इरादों से तंग आकर युवती ने अपने साथी पर घरेलू हिंसा का आरोप लगाते हुए गुजारा भत्ता की गुहार कोर्ट से लगाई. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस के एस राधाकृष्णन और पिनाकी चंद्र घोष ने अपने फैसले में साफ कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में रहना ना तो अपराध है ना ही पाप. कोई किसी के साथ शादी करके रहे या बिना शादी के... ये उसका निजी फैसला है. लेकिन कोर्ट ने ये भी साफ किया कि लिव इन रिलेशनशिप के हरेक मामले को एक ही पलड़े पर नहीं रखा जा सकता.

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कोर्ट ने कहा कि बिना शादी के युवक-युवती साथ रहें ये तो ठीक है लेकिन किसी शादीशुदा और बाल बच्चों वाले युवक के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहना और फिर गुजारा भत्ता की मांग करना उचित नहीं है. क्योंकि इसका सीधा असर वैध पत्नी और संतानों पर पड़ेगा. ये उनके साथ अन्याय होगा. शादीशुदा होने पर लिव इन रिलेशन में रह रही साथी को पत्नी का दर्जा नहीं मिल सकता. वो पत्नी से नीचे ही रहेगी. लेकिन ये सरकार की जिम्मेदारी है कि ऐसे रिश्तों से पैदा होने वाले बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए संसद में समुचित कानून बनवाये. क्योंकि ऐसे हालात में सबसे ज्यादा बुरा असर ऐसे बच्चों पर ही पड़ता है.

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