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'लिव इन रिलेशनशिप में महिला को गुजरा भत्ता नहीं'

सुप्रीम कोर्ट ने सहजीवन (लिव इन रिलेशन) संबंधों के बारे में दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ऐसे रिश्ते को निभा रही महिला साथी कुछ मापदंडों को पूरा करने की स्थिति में ही गुजारा भत्ते की हकदार हो सकती है और केवल सप्ताहांत एक दूसरे के साथ बिताने या रात भर किसी के साथ गुजारने से इसे घरेलू संबंध नहीं कहा जा सकता.

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सुप्रीम कोर्ट ने सहजीवन (लिव इन रिलेशन) संबंधों के बारे में दिए गए एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि ऐसे रिश्ते को निभा रही महिला साथी कुछ मापदंडों को पूरा करने की स्थिति में ही गुजारा भत्ते की हकदार हो सकती है और केवल सप्ताहांत एक दूसरे के साथ बिताने या रात भर किसी के साथ गुजारने से इसे घरेलू संबंध नहीं कहा जा सकता.

न्यायाधीश मार्कन्डेय काट्जू और टी एस ठाकुर की पीठ ने कहा कि गुजारा भत्ता पाने के लिए किसी महिला को चार शर्ते पूरी करनी होंगी-

1- भले ही वह अविवाहित हो. इनमें युवक युवती को समाज के समक्ष खुद को पति पत्नी की तरह पेश करना होगा.
2- दोनों की उम्र कानून के अनुसार शादी के लायक हो.
3- उम्र के अलावा भी वे शादी करने योग्य हों जिनमें अविवाहित होना भी शामिल है.
4- वे स्वेच्छा से एक दूसरे के साथ रह रहे हों और दुनिया के सामने खुद को एक खास अवधि के लिए जीवनसाथी के रूप में दिखाएं.

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पीठ ने कहा कि हमारी राय में, घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा संबंधी अधिनियम के लाभ पाने के लिए सभी सहजीवन संबंधों को वैवाहिक संबन्धों जैसी श्रेणी में नहीं माना जाएगा. इस लाभ को पाने के लिए हमने जो उपरोक्त शर्ते बतायी हैं उन्हें पूरा करना होगा और इसे सबूत के जरिए साबित भी करना होगा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति की कोई ‘रखल’ है जिसकी वह वित्तीय जिम्मेदारी उठाता है और उसका इस्तेमाल मुख्य रूप से सेक्स की संतुष्टि के लिए करता है या बतौर नौकरानी के रखता है तो हमारी नजर में यह ऐसा संबंध नहीं होगा जिसे वैवाहिक संबन्धों जैसा माना जा सके.

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