जाति आधारित जनगणना कराने के बारे में विचार के लिए गठित मंत्रिसमूह राजनीतिक रूप से अत्यंत संवेदनशील इस मुद्दे पर गुरुवार को किसी नतीजे पर पहुंचने में विफल रहा.
सूत्रों ने बताया कि वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता वाले मंत्रिसमूह ने 90 मिनट की बैठक के दौरान इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की लेकिन कोई फैसला नहीं लिया जा सका. सूत्रों ने बताया कि जिन मुद्दों पर चर्चा की गयी, उनमें जाति आधारित जनगणना कराने के फायदे और नुकसान शामिल थे.
समझा जाता है कि मंत्रिसमूह ने जाति आधारित जनगणना कराने के किसी फैसले की सूरत में इस प्रक्रिया को संचालित करने की रूपरेखा पर भी चर्चा की. सरकार ने पिछले महीने तय किया था कि इस विवादास्पद मुद्दे पर विचार के लिए मंत्रिसमूह का गठन किया जाएगा. सपा, राजद और जद यू जैसे दल जाति को जनगणना में शामिल करने का समर्थन कर रहे हैं.
उन्होंने इस मांग को लेकर संसद के बजट सत्र के दौरान कार्यवाही में बाधा भी डाली थी. इन दलों द्वारा संसद के मानसून सत्र के दौरान भी यह मुद्दा उठाये जाने की संभावना है. उधर संसद में जाति आधारित जनगणना का समर्थन कर चुकी भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दबाव में अब इससे पीछे हटती नजर आ रही है. इस बारे में गुरुवार को पूछे जाने पर भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने कुछ साफ कहने से इनकार कर दिया. {mospagebreak}
उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा इस बारे में फैसला लिये जाने के बाद ही वह कोई टिप्पणी करेंगे. इस मुद्दे पर कांग्रेस के भीतर भी अंतर्विरोध हैं. जाति आधारित जनगणना इससे पहले 1931 में की गयी थी. मुखर्जी के अलावा मंत्रिसमूह में गृह मंत्री पी चिदंबरम, कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली, मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल, अक्षय उर्जा मंत्री फारूक अब्दुल्ला, कृषि मंत्री शरद पवार, रेल मंत्री ममता बनर्जी और कपडा मंत्री दयानिधि मारन शामिल हैं.
जाति आधारित जनगणना के सबसे मुखर समर्थक मोइली बैठक शुरू होने के कुछ ही देर बाद चले गये जबकि अब्दुल्ला, पवार और ममता बैठक में शामिल नहीं हुए. जाति को जनगणना में शामिल करने के मुद्दे पर बहस छिडी हुई है. इसका विरोध करने वाले कह रहे हैं कि इससे समाज जाति के आधार पर बंटेगा जबकि इसकी वकालत करने वालों की दलील है कि इससे समाज के पिछडे और निचले तबके के लोगों तक संसाधन का वितरण निष्पक्ष रूप से हो सकेगा.
खबर है कि चिदंबरम ने सुझाव दिया था कि मौजूदा जनगणना प्रक्रिया के दूसरे दौर में जाति आधारित जनगणना को शामिल किया जाना चाहिए और इसे बायोमीट्रिक कार्ड आंकडों से संबद्ध किया जाना चाहिए ताकि व्यावहारिक बाधाएं दूर हो सकें.